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जिन शासन ने सभी जीवों को तारने का काम किया: आचार्य निपुणरत्न सूरी

रोहित सोनी

आसींद । धर्म की साधना विनय ओर विवेक से होती है , जीवन में यह नही है तो धर्म नही किया जा सकता है। धर्म रूपी दीपक को विवेक प्रज्जवलित रखता है। इंद्रियों के माध्यम से ही ज्ञान , दर्शन , चारित्र मिलता है,और इंद्रियों के जाल में फस भी सकते है। आध्यात्मिक जीवन में धर्म को अपनाना चाहिए जिससे ही मोक्ष की और अग्रसर हो पायेंगे। उक्त विचार मेवाड़ देशोंद्वारक आचार्य जितेंद्र सूरी म.सा. के शिष्य आचार्य निपुण रत्न सूरी म.सा. ने महावीर भवन के प्रवचन हाल में धर्म सभा में व्यक्त किए। मेवाड़ के तीन तीर्थों की 2025 में होने वाली प्रतिष्ठा निमित एवम भगवान आदिनाथ के जन्म कल्याणक एवम दीक्षा महोत्सव दिवस पर 65 आयंबिल की सामूहिक तपस्या की गई।

धर्मसभा में कहा कि स्पर्श इंद्रिय की पराधीनता से हाथी महावत के अंकुश में आ जाता है। रसना इंद्रिय की पराधीनता से मछली अपने प्राण खो देती है। सूघने की पराधीनता से मधु मक्खी प्राण खो देती है। अच्छा दिखने प्रकाश के लोभ में पंतगीया एवम मधुर संगीत सुनने के लोभ में हिरण प्राण से अलग हो जाता है। मनुष्य को पांचों इंद्रियां, मन सभी मिला है उस पर नियंत्रण रखना जरूरी है। आचार्य ने कहा कि क्रोध करने से प्रीति का नाश होता है। मान करने से विनय गुण का नाश होता है। माया छल कपट करने त्रियच योनि की प्राप्ति होती है एवम सरलता का नाश होता है। लोभ करने से सर्व विनाश होता है, जीवन में कभी लोभ नही करे। इस प्रकार छोटे छोटे नियम लेकर विषय कषाय से बचे एवम आत्मा का उत्थान करे।
आचार्यश्री का चातुर्मास विजयनगर में है जहा पर 12 जुलाई को मंगल प्रवेश होगा। आसींद में निर्माणाधीन वासु पूज्य स्वामी जैन श्वेतांबर मंदिर का निर्माण आपकी निश्रा में ही किया जा रहा है। आसींद में धर्मसभा प्रातः 8.30 बजे से प्रवचन हाल में नियमित चल रही है।

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