भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश,पिता ने डॉ.अंबेडकर के साथ अपना था बौद्ध धर्म,क्या है जस्टिस गवई की जिंदगी में डॉ. अंबेडकर की भूमिका,जाने- क्या है सीजेआई की स्पेशल पावर ?कितना मिलता है,पेंशन और सुविधाएं ?
मदन मोहन भास्कर
स्मार्ट हलचल|भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के तौर पर न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने आज पद संभाल लिया। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण से पहले जस्टिस गवई ने अपनी मां कमलताई गवई का आशीर्वाद लिया और उनके पैर छूकर भावुक क्षण साझा किया। विगत माह कानून मंत्रालय ने जस्टिस गवई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की अधिसूचना जारी की थी। 16 अप्रैल को सीजेआई खन्ना ने केंद्र सरकार से उनके नाम की सिफारिश की थी। जस्टिस गवई का कार्यकाल छह महीने का रहेगा । 23 दिसंबर को सेवानिवृत्त होंगे। जस्टिस बीआर गवई साल 2016 में नोटबंदी को लेकर दिए गए फैसले का हिस्सा रहे। जिसमें कहा गया था कि सरकार को करेंसी को अवैध घोषित करने का अधिकार है। इसके अलावा जस्टिस गवई बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दिए आदेश का भी हिस्सा रहे और इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर फैसला देने वाली पीठ का भी हिस्सा रहे। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना 13 मई मंगलवार को सेवानिवृत्त हो गए। जस्टिस खन्ना ने कहा कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई आधिकारिक पद नहीं संभालेंगे ।
भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश बनें जस्टिस बीआर गवई
पिता ने डॉक्टर अंबेडकर के साथ अपना था बौद्ध धर्म
जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश है और आजादी के बाद देश में दलित समुदाय से वे दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में उनका कार्यकाल छह महीने का होगा। जस्टिस बीआर गवई के पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई ने भारत रत्न संविधान निर्माता डॉ.बीआर अंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था। उनके परिवार और शुभचिंतकों के लिए यह एक ऐतिहासिक क्षण रहा। उनकी मां कमलताई ने मीडिया से बातचीत में कहा, मेरा बेटा डेयरडेविल है, उसे कोई झुका नहीं सकता। वह देश के लोगों को पूरी ईमानदारी से इंसाफ देगा ।
भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश
जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन भारत के मुख्य न्यायाधीश बने थे। जस्टिस बालाकृष्णन साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे।
जस्टिस गवई की जिंदगी में डॉ. अंबेडकर की भूमिका
संविधान को सर्वोच्च बताने वाले जस्टिस गवई ने कई बार बताया है कि सकारात्मक सोच ने कैसे उनकी पहचान को आकार दिया है। 2024 में उन्होंने एक भाषण दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि पूरी तरह से डॉक्टर अंबेडकर के प्रयासों का परिणाम है । मेरे जैसा कोई व्यक्ति जो एक झुग्गी के नगरपालिका के स्कूल से पढ़कर इस पद तक पहुंच सका। उन्होंने अपने भाषण को जय भीम के नारे के साथ खत्म किया था।
कितने समय का होगा जस्टिस गवई का कार्यकाल
जस्टिस गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा। 23 दिसंबर 2025 को 65 वर्ष की आयु होने पर जस्टिस गवई का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। वह वर्तमान सीजेआई खन्ना के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं।
पिता रहे हैं बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। जस्टिस गवई के पिता दिवंगत आरएस गवई भी एक मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता और बिहार और केरल के पूर्व राज्यपाल रहे। जस्टिस गवई ने अपने वकालत करियर की शुरुआत साल 2003 में बॉम्बे उच्च न्यायालय में बतौर एडिश्नल जज से की थी। इसके बाद साल 2005 में वे स्थायी जज नियुक्त हुए। जस्टिस गवई ने 15 वर्षों तक मुंबई, नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की पीठ में अपनी सेवाएं दीं।
जस्टिस बीआर गवई का करियर
16 मार्च 1985 को वकालत शुरू करने वाले न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील के रूप में कार्य कर चुके हैं। उन्होंने अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में सेवा दी। 17 जनवरी 2000 को उन्हें नागपुर खंडपीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। 14 नवंबर 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने और 12 नवंबर 2005 को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त हुए। 24 मई 2019 को उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। न्यायमूर्ति गवई सर्वोच्च न्यायालय में कई ऐसी संविधान पीठों में शामिल रहे।जिनके फैसलों का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा। दिसंबर 2023 में उन्होंने पांच जजों की संविधान पीठ में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा।
जस्टिस बीआर गवई के बड़े फैसले
राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई-2022
जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने 30 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी, यह मानते हुए कि तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर राज्यपाल ने कोई कार्रवाई नहीं की थी।
वणियार आरक्षण को असंवैधानिक घोषित करना
तमिलनाडु सरकार को वणियार समुदाय को विशेष आरक्षण देने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया, क्योंकि यह अन्य पिछड़ा वर्गों के साथ भेदभावपूर्ण था।
ईडी निदेशक के कार्यकाल का अवैध विस्तार –
जस्टिस गवई की बेंच ने प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध करार दिया और उन्हें 31 जुलाई 2023 तक पद छोड़ने का निर्देश दिया था।
बुलडोजर कार्रवाई पर रोक
जस्टिस गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि केवल आरोपी या दोषी होने के आधार पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना असंवैधानिक है। कार्रवाई बिना कानूनी प्रक्रिया के नहीं कर सकते,अगर होती है तो संबंधित अधिकारी जिम्मेदार होगा।
मोदी सरनेम केस में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को राहत दी थी। उन्हें इस केस में दो साल की सजा के बाद लोकसभा से अयोग्य करार दिया गया था। सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता शीतलवाड़ को जमानत दी। दिल्ली शराब घोटाले में दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत दी। दिल्ली शराब घोटाले में बीआरएस नेता के कविता को भी जमानत दी।
महाराष्ट्र के दिग्गज नेता था जस्टिस गवई के पिता
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वह अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई महाराष्ट्र के दिग्गज नेताओं में से एक थे और वे 1964 से लेकर 1994 तक महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे।
उनके पिता विधान परिषद के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और विपक्ष के नेता के पद पर भी चुने गए थे। वे 1998 में अमरावती से 12वीं लोकसभा के लिए भी चुने गए थे। इसके साथ ही अप्रैल 2000 से लेकर अप्रैल 2006 तक जस्टिस गवई के पिता महाराष्ट्र से राज्य सभा के लिए भी चुने गए थे। मनमोहन सिंह की सरकार ने जून 2006 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया था। बिहार के अलावा वे सिक्किम और केरल के भी राज्यपाल रहे। अंबेडकरवादी राजनीति करने वाले रामकृष्ण सूर्यभान गवई ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापना भी की थी।
जस्टिस गवई घर के कामों में करते थे मां की मदद
जस्टिस बीआर गवई को बचपन में लोग भूषण कहकर पुकारते थे और पिता के राजनीति में होने के कारण उन्हें राजनीतिक गतिविधियों के लिए अक्सर घर से बाहर रहना पड़ता था। ऐसे में उनका पालन-पोषण मां कमलाताई की देखरेख में ही हुआ। अपने भाइयों में वे सबसे बड़े थे। जिस वजह से उन्हें जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी पड़ी। जस्टिस गवई बचपन में घर के कामकाज में अपनी मां की मदद भी किया करते थे। उनके अंदर समाज सेवा का हुनर बचपन से ही था। जस्टिस गवई का बचपन अमरावती की एक झुग्गी बस्ती फ्रेजरपुरा में ही बीता और वहीं के नगरपालिका के स्कूल से उन्होंने पढ़ाई की। मराठी माध्यम के स्कूल में जमीन पर बैठकर उन्होंने कक्षा सात तक की पढ़ाई की। इसके आगे की पढ़ाई उन्होंने मुंबई, नागपुर और अमरावती में की।
जस्टिस गवई की शिक्षा
जस्टिस गवई ने बीकॉम के बाद कानून की पढ़ाई अमरावती विश्वविद्यालय से की। लॉ की डिग्री लेने के बाद 25 साल की उम्र में उन्होंने वकालत शुरू की। इस दौरान वो मुंबई और अमरावती की अदालतों में पेश होते रहे। इसके बाद उन्होंने बांबे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच का रुख किया और वहां वह सरकारी वकील भी रहे। भूषण रामकृष्ण गवई को 2001 में जज बनाने का प्रस्ताव दिया गया था। उन्हें 2003 में बांबे हाई कोर्ट का एडिशनल जज और 2005 में स्थायी जज बनाया गया।
क्या हैं सीजेआई की स्पेशल पावर?
भारतीय संविधान देश के मुख्य न्यायाधीश को कुछ स्पेशल पावर भी देता है। नियम कहता है कि सीजेआई “रोस्टर के मास्टर” के रूप में भी काम करते हैं। इसका मतलब है इनके पास बड़े मामलों को विशेष पीठों को सौंपने और सुप्रीम कोर्ट में उनकी सुनवाई का कार्यक्रम तय करने का अधिकार है। सीजेआई कोलेजियम सिस्टम के मुखिया होते है। वो कोलेजियम सिस्टम जो जजों की नियुक्ति से लेकर उनके ट्रांसफर तक का अधिकार रखता है ।कोलेजियम सिस्टम का जिक्र न तो भारत के संविधान में है और न ही संसद के किसी अधिनियम में है ।यह सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई प्रणाली है, जिन्हें ‘जजेस केस’ कहते हैं। कॉलेजियम सिस्टम देश के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों का एक ग्रुप है। इस सिस्टम के ये 5 लोग मिलकर तय करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में कौन जज होगा ,कौन नहीं । सीजेआई की प्रशासनिक जिम्मेदारियों का जिक्र सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013 में किया गया है. ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ के रूप में मुख्य न्यायाधीश न्यायालय की अलग-अलग पीठों को मामले आवंटित करते हैं और संविधान पीठ बनाने के लिए न्यायाधीशों का चयन करते हैं, जो कानून के महत्वपूर्ण सवालों पर निर्णय लेते हैं. चीफ जस्टिस को मामलों को सूचीबद्ध करने की शक्ति भी प्राप्त है।
कितना वेतन, पेंशन और सुविधाएं?
देश के मुख्य न्यायाधीश को हर महीने 2लाख 80 हज़ार रुपये बतौर वेतन मिलता है। 16लाख 80 हज़ार रुपये प्रति वर्ष पेंशन के रूप में मिलता है।इसके साथ महंगाई भत्ता और 20 लाख रुपए ग्रेच्युटी मिलती है। 10 लाख रुपये एकमुश्त फर्निशिंग अलाउंस के तौर पर मिलते हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को आवास के रूप में दिल्ली में सबसे उच्च श्रेणी यानी टाइप VIII का बंगला मिलता है।ड्राइवर के साथ सरकारी गाड़ी मिलती है। बंगले की 24 घंटे सुरक्षा के साथ नौकर और क्लर्क भी मिलते हैं। इसके अलावा सरकारी गाड़ी के लिए हर महीने 200 लीटर तक ईंधन, पीएसओ भी मिलता है। सीजे आई यात्रा भत्ता के भी हकदार होते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर साल 2022 में संशोधन हुआ। केंद्र सरकार की तरफ से जारी बयान में बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश को 6 महीने तक बिना किराए का टाइप VII आवास मिलेगा। यह आवास ऐसे सांसदों को मिलता है जो पहले केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। रिटायर होने के बाद सीजेआई को एक साल तक 24 घंटे सुरक्षा मिलती है।