भीलवाड़ा । राजेश जीनगर
प्रदेश में लगातार सक्रिय मानसुन से जहां एक और हालात भयावह रूप ले रहें हैं। कई जिलों में बाढ़ के हालात हैं। यहां तक दिल्ली के कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने के बाद तीन छात्रों की मौत तक हो गई बावजूद इसके भीलवाड़ा जिला प्रशासन गंभीर नहीं आ रहा है और इसी का नतीजा है की शहर में संचालित कोचिंग सेंटरों की किसी तरह की व्यवस्थाओ की जांच नहीं की जा रही है।जबकि बरसात से लगातार बिगड़ते कुछ जिलों के हालात को लेकर जिला प्रशासन ने बच्चों की परेशानी को देखते हुए स्कुलो तक की छुट्टियां तक कर दी है। लेकिन यहां छात्र छात्राओं से लाखों रूपए लेकर संचालक उनको क्या सुविधाएं दे रहे हैं। ये देखने की किसी को फुर्सत नहीं तो जैसे जिम्मेदारों को इससे कोई लेना-देना भी नहीं। शिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में कोचिंग संस्थानों के लिए नई गाइडलाइंस जारी की है। क्या उस गाईडलाइन की पालना की जा रही है। इसका भी कभी जायजा नहीं लिया गया। नई गाइडलाइंस में कोचिंग संस्थानों से कहा गया है कि छात्र-छात्राओं को एडमिशन से पहले पूरी जानकारी दें, बाद में किसी तरह का कोई बदलाव ना किया जाए साथ ही कोचिंग संस्थानों में 16 साल से कम उम्र के छात्र-छात्राओं का एडमिशन नहीं दिया जा सकता। ऐसा नहीं पाए जाने पर कोचिंग सेंटर के रजिस्ट्रेशन और रेगुलेशन 2024 के लिए दिशा निर्देश व सख्त कार्रवाई के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजें गए हैं। दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में हुए दर्दनाक हादसे के बाद चर्चा यहां तक है की देश में कोचिंग संस्थान महज एक धंधा बनकर रह गए हैं, जिसका ताजा और दुखद उदाहरण हमारे सामने है। सवाल यह है कि कोचिंग सेंटरों को इतनी मनमानी करने की छूट कैसे है? क्या देश में कोचिंग सेंटर चलाने के लिए कोई नियम कानून है ? अगर है तो उसका पालन क्यों नहीं होता? दूसरा सवाल यह है कि अगर नियमों का उल्लंघन हो रहा है तो उसे रोका क्यों नहीं गया? क्या सिस्टम ऐसी घटनाओं का इंतजार करता है कि जब जान-माल का नुकसान होगा, तभी मामले को शांत करने के लिए कथित कार्रवाई की जाएगी ? वहीं दुसरी और एनसीआरबी की एक रिपोर्ट की मानें तो 18 वर्ष से कम उम्र के छात्र-छात्राओं द्वारा आत्महत्या मामलों में परीक्षा में असफलता सबसे बड़ा कारण रहा। कोचिंग संस्थानों द्वारा मोटी मोटी भारी भरकम फिस वसुले जाने के बाद भी 100 में से 20 ही अच्छे अंको से पास हो पाते हैं, बाकी के 80 के भविष्य की कोई गारंटी नहीं। वहीं दूसरी और बढ़ते कोचिंग सेंटर सरकारी व गैर सरकारी शिक्षा निती पर भी बड़ा सवाल खड़ा करते हैं की आखिर कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई की आवश्यकता क्यों, जबकी राज्य सरकारें सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर सुधारने और छात्रों के बेहतर भविष्य के लिए अनेकों योजनाएं चलाकर बेहतर परीक्षा परिणाम के लिए सतत् प्रयत्नशील है।
*कोचिंग सेंटर के बाल वाहिनियों तक की जांच नहीं*
शहर में संचालित अधिकतर कोचिंग संस्थानों में दुर दराज से आने जाने वाले छात्र छात्राओं के लिए की गई बाल वाहिनियों की व्यवस्था कितनी दुरूस्त है, बाल वाहिनी की कितनी क्षमता है और कितने बिठाकर ले जाए जा रहें है। आरटीओ फिटनेस, चालक के रिकॉर्ड, बच्चों द्वारा लाए जा रहे दुपहिया वाहनों के आईसेंस व अन्य दस्तावेजों की जांच नहीं होने से छात्र छात्राओं, अभिभावकों व कोचिंग संस्थानों के संचालकों की बड़ी लापरवाही देखने को मिल रही है। इसी का नतीजा है की कुछ समय पुर्व एक बड़े कॉचिंग सेंटर का छात्र छात्राओं से खचाखच भरा ऑटो पलट गया और कई छात्र छात्राओं को गंभीर चोंटे तक आई। लेकिन कोचिंग सेंटर के संचालक की मिलिभगत से कहीं कोई मामला दर्ज नहीं हुआ।