महेंद्र कुमार सैनी
—->यह किला राजस्थान के ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है, लेकिन इसकी अनदेखी हो रही है।
—–>किले तक पहुंचने का रास्ता और किले की छतें भी जर्जर होने के कगार पर।
स्मार्ट हलचल/नगर फोर्ट ऐतिहासिक और पर्यटक दृष्टि से टोंक जिले में उपखंड उनियारा क्षेत्र का ककोड का किला अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पर प्रशासनिक उपेक्षा के कारण यह महत्वपूर्ण किला गर्त में खोता जा रहा है। ककोड़ का किला राजस्थान के टोंक जिले में उनियारा तहसील के ककोड़ गांव में स्थित एक ऐतिहासिक किला है। यह किला टोंक से लगभग 20 किलोमीटर और उनियारा से 15 किलोमीटर की दूरी पर टोंक-सवाई माधोपुर मार्ग पर अरावली पर्वत श्रृंखला की लगभग 200 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है।इतिहासकारों के अनुसार,दूसरी-तीसरी शताब्दी में यहां मालवों का शासन था, और ककोड़ नगर को मालवों ने अपनी राजधानी बनाया था। ऐसा माना जाता है कि इस किले का निर्माण भी मालवों द्वारा कराया गया था। कुछ विशेषज्ञों ने किले की स्थापत्य कला को देखकर इसे सम्राट अशोक के समकालीन भी बताया है।बाद में यह किला उनियारा के राव राजाओं (नरुका-कछवाह वंश) के प्रशासनिक निवास और परगने के रूप में कार्य करता था। किला कछवाह वंश से अपना संबंध रखता है। उनियारा राजवंश के राजाओं ने ककोड़ किले को अपनी राजधानी बनाकर प्रशासनिक कार्य यहीं से किया।
ककोड़ का युद्ध (1759):
1759 में ककोड़ में एक महत्वपूर्ण युद्ध हुआ था, जिसमें मराठा साम्राज्य के मल्हार राव होल्कर की सेना (जिसका नेतृत्व गंगाधर तात्या कर रहे थे) और जयपुर के सवाई माधो सिंह के राजपूत सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई। इस युद्ध में राजपूत पक्ष के कई वीर योद्धाओं ने वीरगति प्राप्त की, और अंततः होल्कर की जीत हुई।
किले की विशेषताएं
किला चार मंजिला है और इसमें लगभग 60 कमरे थे। किले के अंदर कई महत्वपूर्ण संरचनाएं थीं:
दो प्राचीन कुंड और तारा व हाड़ी नामक दो बावड़ियां – तारा बावड़ी में 9 ढाणे हैं, जिससे इसे “9 ढाणों की बावड़ी” भी कहते हैं गणेश मंदिर – किले के अंदर एक प्राचीन गणेश मंदिर था जो शासकों के आराध्य देव के रूप में पूजनीय था।
किले मे 8 से 12 बुर्ज – सुरक्षा और निगरानी के लिए बनाए गए थे।
किले मे तोप से दुश्मन पर हमला करने के लिए तोप चलाने के स्थान बनाया गया था। और एक बड़ी घट्टी (पत्थर की चक्की) भी ककोड किले मे मिली है।ककोड के किले मे सुरंगे बनी हुई थी,जो उनियारा गढ से किले तक जाती थी। हालांकि अधिकतर अब मिट्टी से भर गई है। दो छत्रियां – किले के रक्षकों की स्मृति में बनाई गई हैं।
वर्तमान में किले की स्थिति
वर्तमान में, ककोड़ का किला अत्यंत जीर्ण-शीर्ण और खंडहर की अवस्था में है। यह जिले के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक होने के बावजूद दिन-ब-दिन और अधिक खराब होता जा रहा है। किले की अधिकांश छतें गिर चुकी हैं। कमरे और दीवारें टूट-फूट गई हैं।किले तक पहुंचने का रास्ता भी खराब हो गया है और सीढ़ियां टूट चुकी हैं।किले मे जंगली पेड,बबूल उगे हुए है।किले में न तो कोई चौकीदार है और न ही कोई रखरखाव करने वाला है। किला अपराधियो की पनाह स्थली बना हुआ है। धन प्राप्त करने की चाहत में लोगों ने किले को खोखला कर दिया है।गणेश प्रतिमा को असामाजिक तत्वों ने खंडित कर दिया था, बाद में उनियारा के पूर्व दरबार राव राजा राजेंद्र सिंह ने पुनः गणेश प्रतिमा की स्थापना कर प्रतिष्ठा करवाई थी। कला प्रेमी रमेश जांगिड उनियारा ने कहा की सरकार द्वारा इस किले का रखरखाव नहीं किया जा रहा है।
इस बेजोड़ स्थापत्य कला के किले को बचाने और संरक्षित करने की तत्काल आवश्यकता है।अन्यथा यह ऐतिहासिक धरोहर पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी।


