सुनील बाजपेई
कानपुर। यहां जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान बादशाही नाका थानाध्यक्ष द्वारा कथित रूप से महंत को गाली देने और बाद में इसी मुद्दे को लेकर थाना प्रभारी को सस्पेंड करने के बाद ही रथ यात्रा निकालने के मुद्दे ने धार्मिक आस्था और भगवान पर विश्वास तथा उनके भक्त होने को लेकर को कई सवालों को आध्यात्मिक चर्चा का भी विषय बना दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि आध्यात्मिक दृष्टिकोण के मुताबिक भगवान का वास्तविक भक्त और धार्मिक वह व्यक्ति होता है जो अपने स्वार्थ पूर्ण अहम को संतुष्ट करने वाला कार्य बाद में और भगवान की पूजा, उपासना ,आराधना, वंदना या फिर यात्रा आदि से जुड़े कर्तव्य का निर्वहन सबसे पहले करता है। यानी वास्तविक धार्मिक और भगवान का भक्त वह कदापि नहीं, जो भगवान का कार्य करने से पहले अपने स्वार्थ पूर्ति वाला काम करता है ,जिसके लिए भगवान से बड़ा उसका अभिमान और उसका कार्य होता है। वह कार्य जिसके जरिए अपने प्रभाव और अपने वर्चस्व को लोगों के बीच हर हाल में बनाए रखना चाहता है।
कुछ ऐसी ही सत्यता वाला प्रकरण यहां की जगन्नाथ रथ यात्रा का भी है। जिसमें पहले भगवान का कार्य नहीं वर्चस्व और अपना प्रभाव दिखाने से संदर्भित अपनी स्वार्थ पूर्ति वाला काम पहले किया गया।
इस कथन का संबंध बादशाही नाका थानाध्यक्ष द्वारा कथित रूप से महंत को गाली देने और इसी बात को लेकर थानाध्यक्ष को सस्पेंड कर देने के बाद ही जगन्नाथ रथ यात्रा निकाले जाने से है। यहीं पर सवाल उठाया जा रहा है कि अगर महंत और उनके समर्थक वास्तव में भगवान जगन्नाथ के वास्तविक भक्त या फिर उन पर आस्था रखने वाले वास्तविक धार्मिक लोग थे तो फिर उन्होंने थानाध्यक्ष को सस्पेंड कराने के बाद ही यात्रा क्यों निकाली ? मतलब भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकालने वाले धार्मिक कार्य से थाना प्रभारी को सस्पेंड कराने वाला कार्य बड़ा कैसे हो गया ? अगर यह सच नहीं तो थानाध्यक्ष को सस्पेंड करने वाला कार्य पहले और भगवान जगन्नाथ का कार्य बाद में क्यों किया ? अगर यह वर्चस्व और प्रभाव साबित करने वाला स्वार्थ नहीं था तो थाना प्रभारी को सस्पेंड कराने के लिए भगवान जगन्नाथ की यात्रा को माध्यम क्यों बनाया ?
यह कार्य जगन्नाथ यात्रा को संपादित करने के बाद क्यों नहीं किया जा सकता था ?
यह सब सवाल इसलिए क्योंकि आध्यात्मिक दृष्टिकोण के मुताबिक भगवान का वास्तविक भक्त और धार्मिक वह व्यक्ति होता है जो अपने स्वार्थ पूर्ण अहम को संतुष्ट करने वाला कार्य बाद में और भगवान की पूजा, उपासना ,आराधना, वंदना या फिर यात्रा आदि का सबसे पहले करता है। यानी वास्तविक धार्मिक और भगवान का भक्त वह कदापि नहीं, जो भगवान का कार्य करने से पहले अपने स्वार्थ पूर्ति वाला काम करता है।
रही महंत को गाली देने के बदले थाना प्रभारी को सस्पेंड कराने की बात तो महंत का आरोप हर दृष्टिकोण से झूठ की सीमाएं तोड़ने वाला है या नहीं ? महंत बैठक में थे या नहीं ? गाली गलोज करना तो दूर क्या उनकी आरोपित थाना प्रभारी से मुलाकात भी हुई थी या नहीं ? क्या सीसीटीवी फुटेज से भी थानाध्यक्ष द्वारा महंत को गाली देने की बात प्रमाणित होती है ? क्या निलंबित किये गये थानाध्यक्ष लगाए गए आरोपों के संदर्भ में बिल्कुल निर्दोष है या फिर दोषी ? या फिर अपना वर्चस्व और प्रभाव दिखाने की तमन्ना पूरी करने की नापाक कोशिशें पुलिस को फर्जी आरोपों का शिकार बनाने से बाज नहीं आ रही हैं ? इन सवालों का जवाब तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा। फिलहाल थाना प्रभारी बादशाही नाका के निलंबन वाली मांग को जिस तरह से जगन्नाथ रथ यात्रा में बाधक नहीं बनने दिया गया। मतलब ऐसा नहीं किया गया कि जांच में सभी आरोपों में दोषी पाए जाने पर ही थानाध्यक्ष को निलंबित किया गया। जांच बाद में और थानाध्यक्ष को निलंबित करके भगवान जगन्नाथ की यात्रा को संपादित करने का कार्य पहले किया गया। इसीलिए भगवान के वास्तविक भक्त और वास्तविक धार्मिक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, डीजीपी राजीव कृष्ण और यहां के पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार हैं। या फिर वह लोग, जिन्होंने भगवान जगन्नाथ की यात्रा तब तक नहीं निकलने दी, जब तक बगैर जांच के ही थाना प्रभारी को सस्पेंड नहीं कर दिया गया। इसका सटीक जवाब वह सभी जानते हैं , जिन्हें आध्यात्मिकता, धार्मिकता और भक्ति मार्ग की समझ बहुत गहराई से है।