♦राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है ?
♦क्या है राष्ट्रीय बालिका दिवस का महत्व, उद्देश्य ?
♦राष्ट्रीय बालिका दिवस की 2025 की थीम क्या है ?
♦राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत कब और किसने की ?
– मदन मोहन भास्कर
स्मार्ट हलचल/राष्ट्रीय बालिका दिवस सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना का प्रतीक नहीं है बल्कि यह एक ऐसा अवसर है जब हम अपनी बेटियों को एक बेहतर भविष्य देने की दिशा में अपने प्रयासों को और तेज कर सकते हैं। यह दिवस याद दिलाता है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के अधिकार हर लड़की का होना चाहिए। इस दिन का सदुपयोग लड़कियों के अधिकारों की रक्षा, उनके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने, और उन्हें समाज में समान स्थान दिलाने के लिए करना चाहिए। इस दिन आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से हम न केवल लड़कियों के अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाते हैं बल्कि उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित भी करते हैं। भारतीय समाज में बालिकाओं के सामने आने वाली असमानताओं के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। बाल विवाह, भेदभाव और लड़कियों के खिलाफ हिंसा जैसे मुद्दों को उजागर और हल करने का प्रयास करता है। लड़कियों को सशक्त बनाने और समाज में उनके सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के महत्व को उजागर करने के लिए, लड़कियों के अधिकारों और अवसरों को बढ़ावा देते हुए उनकी ताकत और क्षमता का जश्न मनाने,लड़कियों को मजबूत, स्वतंत्र और निडर बनाने के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2008 में पहली बार राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना शुरू किया गया था।
क्यों मनाया जाता है 24 जनवरी को ही राष्ट्रीय बालिका दिवस ?
बालिका दिवस को 24 जनवरी के ही दिन इसलिए मानते है क्योंकि 1966 में 24 जनवरी के दिन ही इंदिरा गांधी ने पहली महिला प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। देश में पहली महिला प्रधानमंत्री बनने को उपलब्धि मानते हुए ही 24 जनवरी के दिन को बालिका दिवस के रूप में चुना गया। दूसरा मत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 22 जनवरी 2015 को शुरू की गई बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना की सालगिरह को चिह्नित करने के लिए हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य
राष्ट्रीय बालिका दिवस को हर साल मनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और लड़कियों के खिलाफ भेदभाव करने वाली लैंगिक रूढ़िवादिता को चुनौती देना,लड़कियों को अपनी पूरी क्षमता का अहसास करने के लिए आवश्यक जानकारी, उपकरण और अवसर प्रदान करना तथा लड़कियों को बाल विवाह, कुपोषण और लिंग आधारित हिंसा से बचाने का प्रयास करना है । तीन मंत्रालयों- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से संचालित इस पहल का उद्देश्य गिरते बाल लिंग अनुपात के मुद्दे को भी हल करना है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस का महत्व
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर वार्षिक आयोजन अत्यधिक महत्व रखता है क्योंकि यह लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है और भारत में लड़कियों के सामने आने वाले मुद्दों का समाधान करता है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समर्थन के माध्यम से लड़कियों को सशक्त बनाने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाता है। इस दिवस के कारण प्रत्येक बालिका की क्षमता को पहचाना जाता है और एक ऐसे समाज की वकालत की जाती है जहां लड़कियां समान अवसरों तक पहुंच सकें और सार्थक योगदान दे सकें।
राष्ट्रीय बालिका दिवस की 2025 की थीम क्या है ?
राष्ट्रीय बालिका दिवस की इस साल की थीम ‘सुनहरे भविष्य के लिए बच्चियों का सशक्तीकरण’ है । जब तक बालिकाएँ सशक्त नहीं होंगी तक तक उनका भविष्य सुनहरा नहीं हो सकता। लेकिन सशक्तीकरण के सपने को पूरा करने के लिए हमें सबसे पहले लड़कियों के समक्ष मौजूद चुनौतियों की पहचान करनी होगी और उसके बाद ही इसके निदान के उपायों को मिली सफलता का आकलन किया जा सकता है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस क्या है?
राष्ट्रीय बालिका दिवस एक विशेष दिन है जो महिला और लड़कियों के अधिकारों को प्रमोट करने और सुरक्षित और स्वास्थ्य जीवन की स्थापना करने के लिए समर्पित है। यह दिन गर्व से मनाया जाता है और लड़कियों के शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और भविष्य के विकास की महत्वपूर्ण चुनौतियों को उजागर करता है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत कब और किसने की?
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2008 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी।
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस और राष्ट्रीय बालिका दिवस में अंतर
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर को मनाया जाता है जबकि राष्ट्रीय बालिका दिवस 24 जनवरी को मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस को मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने की थी जबकि राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने की थी। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का मकसद लड़कियों के अधिकारों को बढ़ाना और उन्हें समाज में सम्मान दिलाना है जबकि राष्ट्रीय बालिका दिवस का मकसद लड़कियों के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य, और समग्र कल्याण के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस को मनाने की शुरुआत साल 2012 में हुई थी जबकि राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत साल 2009 में हुई थी। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस को इंटरनेशनल डे ऑफ़ गर्ल चाइल्ड के नाम से भी जाना जाता है।
राष्ट्रीय बालिका दिवस के प्रति समाज की भूमिका
राष्ट्रीय बालिका दिवस सिर्फ एक अवसर नहीं है बल्कि यह हमारे समाज में लड़कियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी और भूमिका को समझने का दिन है। सभी को यह एहसास होना चाहिए कि लड़कियों के अधिकारों की रक्षा केवल सरकार या संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि यह हर नागरिक का कर्तव्य है। बालिका दिवस के दिन यह संकल्प लेना चाहिए कि न केवल लड़कियों के अधिकारों का सम्मान करेंगे बल्कि उन्हें हर स्तर पर प्रोत्साहित भी करेंगे।
बालिकाओं की कौन कौन सी समस्याएँ हैं?
बाल विवाह की समस्या
भारत के कई राज्यों जैसे- पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा आदि में बाल विवाह की दर 40 प्रतिशत से भी अधिक है जबकि असम और झारखंड पीछे नहीं हैं। बाल-विवाह महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी नहीं होने के पीछे सबसे बड़ा कारण है। बाल-विवाह बच्चों से बलात्कार के अलावा कुछ भी नहीं है।सुप्रीम कोर्ट का भी कहना है कि 18 वर्ष से कम उम्र की बच्ची के साथ वैवाहिक संबंधों में यौन संबंध बनाने को भी बलात्कार माना जाएगा। बाल-विवाह एक जटिल समस्या है और इसके लिए सभी स्तरों पर और सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। इस फैसले के बाद भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 27 नवंबर 2024 को देशव्यापी ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान शुरू किया।
ट्रैफिकिंग या बाल श्रम की समस्या
बच्चियों को यौन शोषण और ट्रैफिकिंग का शिकार होने से बचाने की। ड्रग्स और हथियारों के बाद मानव ट्रैफिकिंग दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है।मासूम बच्चियों को प्रेमजाल में फंसा कर, उन्हें शादी का झांसा देकर या उनके परिजनों को बच्चियों को नौकरी दिलाने का आश्वासन देकर बड़े सपने दिखाकर बड़े शहरों में लाया जाता है। इन बच्चियों को या तो बेच दिया जाता है या उन्हें वेश्यावृत्ति या बंधुआ मजदूरी में धकेल दिया जाता है। प्लेसमेंट एजेंसियां भी रोजगार दिलाने की आड़ में इन ट्रैफिकिंग गिरोहों की मददगार हो गई हैं।
यौन शोषण की समस्या
यौन शोषण की शिकार बच्चियों के प्रति समाज में अपेक्षित संवेदनशीलता की कमी है। थाने में मामला दर्ज करने में होने वाली परेशानी और फिर अदालतों में तारीख पर तारीख से पीड़ित बच्चियां समय और पैसा खर्च करने के बाद हौसला तोड़ देती हैं । समाज भी अक्सर उन्हीं पर उंगली उठाता है। इन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने के प्रयासों में भी काफी हद तक कमी है। इसके अलावा ऑनलाइन यौन शोषण एक महामारी बन कर उभर रहा है ।
ऑनलाइन यौन शोषण
बच्चों का ऑनलाइन यौन शोषण एक ऐसा अपराध है जिसे राष्ट्रों की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। सबसे बड़ी बात यह है कि आंकड़ों से इस अपराध की भयावहता का पता नहीं चलता क्योंकि इनमें से ज्यादातर मामलों की जानकारी बाहर नहीं आ पाती है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इन मोर्चों पर भारत में जितने कदम उठाए गए हैं उतने किसी और देश में नहीं। खास तौर से बीते साल कई न्यायिक फैसले ऐसे आए और सरकार ने कुछ ऐसे कदम उठाए जिसके दूरगामी परिणाम होंगे। देश में बाल-विवाह, बाल श्रम, बच्चों की ट्रैफिकिंग और ऑनलाइन यौन शोषण के खिलाफ देश के 26 राज्यों के 416 जिलों में काम कर रहे 250 गैरसरकारी संगठनों के नेटवर्क ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ के सहयोगियों की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह पर न सिर्फ ऐतिहासिक फैसला सुनाया बल्कि इसकी रोकथाम के लिए एक समग्र कार्ययोजना की जरूरत पर भी जोर दिया। सरकारें और न्यायपालिका बच्चियों की सुरक्षा व उनके कल्याण के प्रति संवेदनशील हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर जागरूकता का अभाव है। सबसे बड़ी जरूरत गांवों, कस्बों में लोगों को जागरूक करने की है। तभी ‘सुनहरे भविष्य के लिए बच्चियों के सशक्तीकरण’ का सपना साकार हो पायेगा ।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी की समस्या
चाइल्ड पोर्नोग्राफी बच्चों के अश्लील वीडियो डाउनलोड करना और उन्हें देखना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम और सूचना तकनीक कानून के तहत अपराध है। अदालत ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि वह पॉक्सो कानून में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जगह चाइल्ड सेक्सुअल एक्सप्लायटेटिव एंड एब्यूज मैटीरियल (सीएसईएएम) शब्द का इस्तेमाल करे क्योंकि जमीनी हकीकत और इस अपराध की गंभीरता एवं इसके विस्तार को सही तरीके से परिलक्षित किया जा सके। इस बदलाव का नतीजा ये है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को अब वयस्कों के मनबहलाव के तौर पर नहीं बल्कि अब एक ऐसे गंभीर अपराध के तौर पर देखा जाएगा जिसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा ।
बेटियों के लिए क्या करना चाहिए ?
समानता का घर बनाना
लैंगिक समानता एक मुख्य मूल्य होना चाहिए और यह हमारे दैनिक क्रियाकलापों के प्रति दृष्टिकोण से शुरू होता है। समानता के बारे में केवल बात करना ही पर्याप्त नहीं है सभी को सक्रिय रूप से इसका अभ्यास करना चाहिए। माता-पिता को ज़िम्मेदारियाँ साझा करनी चाहिए। चाहे वह घर के काम हों, वित्तीय निर्णय हों या भावनात्मक समर्थन। जब बच्चे देखते हैं कि कार्य लिंग के आधार पर विभाजित नहीं हैं, तो वे समझते हैं कि लड़के और लड़कियाँ दोनों जीवन के हर क्षेत्र में समान रूप से योगदान दे सकते हैं। सभी को ये सोचना बंद कर देना चाहिए कि कुछ काम सिर्फ़ लड़कों या लड़कियों के लिए होते हैं। लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए, लड़कों को यह सिखाना सबसे ज़रूरी है कि लड़कियाँ वह सब कुछ कर सकती हैं जो वे कर सकते हैं। बच्चों को घर के कामों में मदद करने और काम का बोझ बाँटने से उन्हें नए कौशल सीखने को मिलते हैं। आत्मविश्वास बढ़ाएँ और नौकरी की भूमिकाओं के बारे में सोचे बिना उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें। इससे वो रूढ़िवादी परम्पराएँ ख़त्म होंगी जो वर्षों से चली आ रही हैं ।
आत्मविश्वास और स्वतंत्रता को प्रोत्साहन देना
काम कोई भी हो बच्चों को करने के लिए देना चाहिए । छोटे-छोटे काम जैसे बच्चों को घर के कामों में शामिल करना, बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं। बच्चों को छोटी उम्र में ज़िम्मेदारियाँ देने से न केवल उन्हें महत्वपूर्ण जीवन कौशल सीखने में मदद मिलती है बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है। इससे उन्हें सहयोग, टीमवर्क और एक-दूसरे के प्रति सम्मान का महत्व भी पता चलता है।
सुरक्षा और कल्याण को प्राथमिकता देना
सशक्तिकरण का सुरक्षा से गहरा संबंध है। सशक्त बच्चों,लड़कियों को अपने परिवेश में सुरक्षित महसूस करने की आवश्यकता है। बच्चों को गुड टच/बैड टच के बारे में सिखाने चाहिए । माता-पिता को बच्चों की बात समझ और सुननी चाहिए जिससे लड़कियाँ अपनी चिंताओं को साझा करने में सहज महसूस करें।
सामूहिक जिम्मेदारी
माता-पिता के लिए अपनी बेटियों का पालन-पोषण करना महत्वपूर्ण है। बच्चों में भेदभाव किये बिना सभी बच्चों का पालन-पोषण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सभी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए जिससे सफलता के समान अवसर मिल सकें। ये जिम्मेदारी केवल माता-पिता की नहीं पूरे समाज की जिम्मेदारी है। बालिका दिवस मनाने की बजाए सरकार व समाज को मिलकर ऐसे वातावरण और जागरूकता का निर्माण करना चाहिए जिसमें बालिकायें खुद को महफूज समझ सकें। जब तक बालिकाओं की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था नहीं हो पाएगी तब तक बालिका दिवस मनाने की कोई सार्थकता नहीं है । बालिकाओं पर अत्याचार करने वालों के लिए कठोर से कठोर कानून बनाना कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए जिससे अपराधियों में भय व्याप्त हो और अपराधी कोई भी ऐसा कृत्य नहीं करें जिससे बालिकाओं के सर्वांगीण विकास में कोई बाधा उत्पन्न हो । बालिकाओं के लिए सरकार और पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर समाज को बालिकाओं की शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, अधिकारों आदि का ध्यान रखना चाहिए ।