भीलवाड़ा । भीलवाड़ा शहर सहित जिले भर में शनिवार को मुस्लिम समुदाय ने बकरीद का त्यौहार परंपरागत तरीके और हर्षोल्लास से मनाया । जिले भर की ईद गाहो और मस्जिदों में मुस्लिम धर्मावलंबियों ने ईद की नमाज अदा की । खुदा की इबादत में सिर झुके और देश में अमन चैन की दुआ मांगी । सुबह मुस्लिम नए रंग-बिरंगी पोशाकों में ईद की नमाज अदा करने ईदगाह व मस्जिदों में पहुंचे। जामा मस्जिद, जवाहर नगर, सांगानेर, पुर, गांधीनगर मस्जिद में भी नमाज अदा की। ईद की नमाज से पहले आलीमों ने इंसान को सही रास्ते पर चलने का आह्वान किया । भीलवाड़ा शहर में प्रमुख रूप से सांगानेरी गेट स्थित ईदगाह पर शहर काजी ने ईद की नमाज अदा करवाई उसके बाद समाज के लोगो ने एक दूसरे को गले लगाकर बकरीद की बधाई दी और घरों में बकरो की कुर्बानी दी गई और अनेक प्रकार के लजीज व्यंजन बनाए गए। इससे पूर्व शनिवार सुबह शहर काजी की सवारी निकाली गई । इस दौरान बड़ी संख्या में मोमिन समाज के लोग जिसमे युवा, बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं शामिल थे । त्यौहार के मद्देनजर शहर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस प्रशासन भी लगातार गश्त करता रहा । जगह जगह पुलिस जवानों को तैनात किया गया और अधिकारी स्थित पर निगरानी बनाए रखे । एसपी धर्मेंद्र सिंह ने शहर में किसी प्रकार की अप्रिय घटना न हो उसके लिए पुलिस अधिकारियों आवश्यक दिशा निर्देश दिए । स्थानीय प्रशासन ने भी समाज के लोगो को ईद उल अजहा पर्व की बधाई और शुभकामनाएं दी ।
बकरीद का महत्व और इतिहास
बकरीद को ईद-उल-अजहा या कुर्बानी की ईद के नाम से भी जाना जाता है। यह इस्लाम धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व हज यात्रा के समापन पर मनाया जाता है, जो इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। बकरीद हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म वही है जिसमें त्याग, सच्चाई और इंसानियत की भावना हो। इस दिन मुसलमान कुर्बानी की रस्म निभाकर उस ऐतिहासिक घटना की याद करते हैं जब पैगंबर इब्राहीम ने अल्लाह की आज्ञा पर अपने बेटे की कुर्बानी देने की तैयारी की थी। यह त्योहार हमें यह संदेश देता है कि अल्लाह की राह में खुद को समर्पित कर देना ही सच्ची भक्ति है।
इस्लामी कैलेंडर चंद्रमा की स्थिति पर आधारित होता है, इसलिए त्योहारों की तिथियां हर साल बदलती रहती हैं। इस बार सऊदी अरब में 27 मई को जिल-हिज्जा का चांद दिखाई दिया, जिसके अनुसार वहां बकरीद 6 जून को मनाई गई । भारत में यह पर्व 7 जून, शनिवार को मनाया गया । यह दिन इस्लामी महीने जिल-हिज्जा की 10वीं तारीख को आता है, जिसे हज का अंतिम और सबसे पुण्यदायक दिन माना जाता है।
बकरीद का मूल भाव पैगंबर इब्राहिम की उस परीक्षा से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने प्रिय पुत्र इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी देने का निश्चय किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार पैगंबर इब्राहीम को एक रात सपना आया, जिसमें उन्हें अपने सबसे प्यारे बेटे की कुर्बानी देने को कहा गया।
उन्होंने इसे अल्लाह की आज्ञा मानकर पालन किया और अपने बेटे को लेकर कुर्बानी के लिए निकल पड़े। जब उन्होंने बेटे की आंखों पर पट्टी बांधी और बलिदान देने लगे, तब अल्लाह ने उनकी परीक्षा को सफल मानते हुए इस्माइल को बचा लिया और उसकी जगह एक मेंढ़ा (भेड़) भेज दिया। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि सच्चे दिल से की गई भक्ति और समर्पण को अल्लाह स्वीकार करता है।
बकरीद केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह आत्म-त्याग, सच्चे इरादों और इंसानियत की शिक्षा देने वाला पर्व है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अल्लाह पर विश्वास बनाए रखते हुए दूसरों की मदद करना और अपने स्वार्थ को त्यागना ही असली धर्म है ।