सांवर मल शर्मा
आसींद । भीलवाड़ा जिले के लाछुड़ा में स्थित गंगोत्री धाम में जारी सात दिवसीय कथा का मंगलवार को अंतिम दिन था। समापन अवसर पर शिव महापुराण की मर्मज्ञ पूज्या कृष्णप्रिया जी ने कहा है कि देवादिदेव महादेव अत्यंत कृपालु है.. भगवान शिव जी पर एक लोटा जल चढ़ा देने मात्र से ही हमारी सभी इच्छाएं और कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसके लिए आवश्यक है कि जब हम जल चढ़ाएं निष्कपट भाव और विश्वास से चढ़ाएं। जैसे नारियल पेड़ अपने अनुकूल भूमि पर उगता और पोषित होता है। उसी प्रकार महादेव के प्रति जिसके मन में अकाट्य श्रद्धा होती है, माता पिता के संस्कार उच्च होते हैं, अच्छे कर्म होते हैं उन्हीं व्यक्ति को भगवान शिव की कृपा एवं भक्ति सहज़ ही प्राप्त होती है।भगवान को वही प्राप्त कर सकता है जिसमें शिव के प्रति अत्यंत श्रद्धा है..
” शिवजी बाघंबर वाले भोला बाघंबर वाले, आओ जी आओ महाराज बाघंबर वाले ” कथा की शुरुआत में शिव को बहुत ही प्यारे भजन के साथ बुलाया गया जिसमे सभी भक्तों ने बड़ी ही श्रद्धा भाव से भोलेनाथ का स्मरण किया।
देवी जी ने कहा कि- भगवान आपके बाहरी क्रियाओ को नहीं देखते कि आप शरीर से क्या कर रहे हैं.. माला करना भजन कीर्तन करना कि सब बाहरी लोगों को दिखाने के लिए हो सकता है लेकिन भगवान तो आपके मन को देखते हैं। आपके पास कुछ अर्पित करने के लिए ना भी हो तो भी आप सच्चे मन से अपने भावों को अर्पित करेंगे तो उसी में वह रीझ जाते हैं। जैसे एक पिता कोई चीज लाकर अपने बच्चों को दे और उसमें से एक बच्चा वही चीज अपने पिता को खिलाये। तो पिता का मन गदगद हो जाएगा कि मेरा बालक मुझे प्रेम करता है.. इस प्रकार हमारे पास जो कुछ भी है सब भगवान का दिया हुआ है अगर हम उसे भगवान को अर्पित करते हैं तो वह हमारा प्रेम और भाव देखकर ही प्रसन्न हो जाते हैं।
आगे कथा में उन्होंने कहा कि – जब दुनिया में धर्म की हानि होती है तब भगवान शिव आगे आकर धर्म की, लोगों की रक्षा करते हैं। शिव की विशेष कृपा देख कर सब लोगों ने शिव का महत्व जाना और मंदिर जाना आरम्भ किया । जिन मंदिरों में धूल जमी हुई थी, उन मंदिरों में लोग एक लोटा जल लेकर भगवान शिव की स्तुति कर रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है भक्ति में बहुत शक्ति है इससे दुनिया बदल सकती है। .ये सब देवाधिदेव भगवान शिव की विशेष कृपा का प्रमाण है।
आगे कथा में देवी जी ने बताया कि सुख और आनंद दो अलग-अलग चीज हैं सुख भौतिक और सांसारिक होता है लेकिन आनंद आध्यात्मिक होता है। सुख संसार में मिलता है किंतु आनंद भगवान के चरणों में मिलता है। सुख क्षणिक होता है। एक कामना पूरी होने पर दूसरे कामना जन्म लेती है। जो वस्तु हमें पहले सुख दे रही थी फिर वह सुखद नहीं लगती। लेकिन आनंद स्थाई होता है। समय के साथ बढ़ता ही जाता है। सुख बाहर ढूंढने का विषय है और आनंद अपने भीतर की खोजा जाता है। जब आप अपने आप में और ईश्वर में खो जाएंगे तब आपको असीम आनंद की अनुभूति होगी। सुख का तो दुख हो सकता है लेकिन आनंद का तो विलोम है ही नहीं। उससे तो परमानंद ही प्राप्त होगा। जो भगवान के चरणों में जोड़े गए उनके जीवन में आनंद है और जो संसार में फंसी हैं उनके जीवन में सुख हो सकता है लेकिन आनंद नहीं।
देवी जी ने कहा कि किसी संत या भगवान के पास जाकर अपने पुण्य का बखान ना करें कि हमने यह किया हमने वह किया यहां में ऐसे भक्ति करते हैं बल्कि अपने अवगुणों का बखान करें अपनी गलतियां उन्हें बताएं.. अगर आप सच्चे हृदय से गिलानी में भरकर अपनी गलतियां उन्हें बताएंगे तो तक्षण वह पाप विनष्ट हो जाते है। जब आप पुण्य का बखान करते हैं तो उनका फल आधा हो जाता है और जब आप अपने आप गुना और पापों का बखान करते हैं तो वह क्षम्य हो जाते हैं। श्री शिव महापुराण की कथा आपके मन को पवित्र रहती है और ईश्वर को उजागर करती है। इसीलिए कथाओं को हरक्षण सुनते रहना चाहिए।
गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि – गुरु को ईश्वर तुल्य समझ कर ही उनकी सेवा करनी चाहिए क्योंकि गुरु वो सीढ़ी है जो हमें भगवान तक पहुंचती है उनका साक्षात्कार कराती हैं। गुरु के बिना भगवान को प्राप्त करना आसान नहीं है। गुरु और संतों के पास जब भी जाए अपने अहंकार और सदैव गुरु पर अपनी सच्ची श्रद्धा रखनी चाहिए। क्योंकि जब तक गुरु के प्रति सच्चा भाग नहीं होगा तब तक भगवान के प्रति भाव बनने वाला नहीं है। भगवान भोलेनाथ सबसे बड़े गुरु हैं। किसी भी ग्रंथ को सर्वप्रथम उन्हीं ने कहा है। चाहे वह रामायण हो या भागवत कथा।
आजकल चाहे मंदिर में हो चाहे किसी अन्य कार्य में सब जगह VIP वाला सिस्टम चल गया है। सबसे आरामदायक यात्रा करके आते हैं और सबसे पहले दर्शन पाते हैं। लेकिन याद रखें भगवान के यहां पर सभी एक समान है बल्कि जो अधिक तपस्या करके आएगा भगवान उसकी पहले सुनते हैं। इसीलिए आप चाहे जिस भी पद पर हैं भगवान के दर पर जाते हुए सारे पद और अहंकार छोड़कर जाए। और एक सामान्य भक्त की भांति भगवान के दर्शन करें। उसी में सच्चा आनंद है। अगर आपका धन अच्छे कामों से प्राप्त हुआ है तो आपका धन अच्छे कामों में, लोगो की सेवा इत्यादि में लगेगा और भक्ति भाव में भी सदा मन रत रहेगा।
शिवलिंग को ध्यान केंद्र कहा जाता है क्यूंकि जब आप शिवलिंग की पिंडी पर जल चढ़ाते हैं तो आपके विचार शून्य हो जाते हैं। मुख में नमः शिवाय का जाप होता है और शिवजी पर चढ़ाई हुई जलधारा ना टूटे इसके लिए ध्यान करते हैं। इस प्रकार एक साथ मन, तन और वाणी तीनों शुद्ध हो जाते हैं। जब हम शिव की पूजा करते हैं तो उनके शक्ति हमें प्रवेश करती है जो कि हमारे लिए कल्याणकारी होती है। जिस प्रकार हमारे भारत देश का प्रतीक तिरंगा है उसी प्रकार शिवलिंग साक्षात भोलेनाथ का प्रतीक है। उनकी पूजा करने से सारे संसार की पूजा हो जाती है। भगवान राम भगवान कृष्ण ने भी असंख्यों शिवलिंग की स्थापना की हैं। इसलिए चाहे आप किसी भी भगवान को मानते हो लेकिन आपको शिव की पूजा अवश्य करनी चाहिए। उन्हीं से सब कुछ उत्पन्न है और उन्हें में विलीन।
भोलेनाथ तो सदैव से ही सबको सब कुछ देते आए हैं। भगवान नारायण को उन्होंने सुदर्शन चक्र प्रदान किया, उन्हीं से सारे वेद शास्त्र और कथाओं का सृजन हुआ है।
आज लोग भोलेनाथ के विषय में इतना जान क्या-क्या बातें करते हैं। अपने आप गुना को भगवान भोलेनाथ पर सौंप देते हैं और गांजा और चिलम इत्यादि पीकर स्वयं को भोलेनाथ का भक्त बताते हैं। ये सब कार्य अत्यंत निंदनीय है अपनी विषय भोग के लिए भगवान के नाम का आडंबर करते हैं। यह अपराध बिल्कुल क्षम्य नहीं है। जो भगवान भोलेनाथ की सच्चे मन से भक्ति करते हैं और उनके आश्रय लेते हैं उन्हें कभी किसी के सामने झुकने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि उन्हें अगिनत सुख संपदा प्राप्त होती हैं।
आगे कथा में देवी जी ने कहा कि सदैव घर परिवार में शांति और प्रेम का माहौल रखें। किसी ने कुछ कह दिया तो उसे सुनकर टाल दे। घर परिवार के मामलों में किसी तीसरे को हस्तक्षेप करने का हक ना दें। दूसरों का काम है लड़ाई झगड़ा करवाना मजे लेना लेकिन उनकी बातों में आकर आप अपना घर ना बिगाड़े। आप बहुत भाग्यशाली है कि आपके परिवार नसीब हुआ है वरना दुनिया में न जाने कितने लोग हैं जिनके पास परिवार नहीं है। इसीलिए परिवार के लोगों में भी भगवान का भाव करके सभी के साथ प्रेम से रहे क्योंकि अगर आप परिवार के चार लोगों को खुश नहीं कर सकते तो आप भगवान को क्या खुश करेंगे। आप हमेशा चाहते हैं कि पहले सामने वाला हमें प्रेम करें, पहले सामने वाला हमारा सम्मान करें, पहले सामने वाला हमारे चार बातें सुन उसके बाद हम करेंगे लेकिन ऐसा कभी नहीं होने वाला। सर्वप्रथम खुद को झुकाए, खुद को बदलने कभी पूरी दुनिया अपने आप बदल जाएगी क्योंकि प्रेम में सबको वश में करने की ताकत हैऔर किसी चीज में नहीं।
आगे कथा में देवी जी ने कहा कि आपको किसी भी प्रकार का दुख है कमी है, तो उसे भगवान से कहें क्योंकि अगर आप संसार के लोगों से कहेंगे तो वह उसका मजाक बनाएंगे और आपकी कमजोरी किसी दूसरे को देना सही बात नहीं है। रोना है तो भगवान के सामने रोये क्योंकि वह कर सकते हैं जो कोई सोच भी नहीं सकता। केवल वही है जो कि आपका सच्चे हितेशी ही हैं। संसार के लोगों के सामने तो केवल मुस्कुराए सामने वाला इसी टेंशन में रहेगा कि इसे किस बात की खुशी है। जीवन में केवल वही हर समय मुस्कुरा सकता है जिसे अपने महादेव पर पूर्ण विश्वास है।
आगे कथा में 12 ज्योतिर्लिंग के विषय में विस्तृत वर्णन करते हुए पूजा देवी जी ने कहा कि- “भगवान शिव, जो स्वयं में महाकाल हैं, जिनका काल भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता, जिनके दर्शन मात्र से मोक्ष प्राप्ति होती है। वह त्रिकालदर्शी हैं, भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता हैं। पृथ्वी पर वह ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विद्यमान हैं। हमारे भारत में अलग-अलग जगहों पर उनके 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं, जिनके दर्शनों से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, दुख दूर होते हैं, धन-संपदा, वैभव, प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति प्रतिदिन इन 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम जपता है, वह सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। मनोकामना की पूर्ति के लिए इन ज्योतिर्लिंगों के नामों का जाप किया जाता है।”
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग: इसे पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थापित है। दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दिया था, तब इससे मुक्ति के लिए चंद्रमा यहां पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था।
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर स्थापित है। इस पर्वत को कैलाश के समान दर्जा प्राप्त है।
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थापित है। यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां की भस्म आरती की जाती है अकाल मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए यहां भगवान शिव की पूजा करने से लाभ मिलता है।
4. ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ॐकारेश्वर में स्थापित है, जो नर्मदा तट पर स्थित है।
5. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग जिस स्थान पर स्थापित है, वह वैद्यनाथ धाम के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
6. भीमशंकर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर भीमा नदी के किनारे स्थापित है। यह ज्योतिर्लिंग मोटेश्वर महादेव के नाम से भी प्रसिद्ध है।
7. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग: यह तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थापित है। भगवान श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व यहां पर शिवलिंग स्थापित की थी और भगवान शिव की अराधना की थी। इस वजह से इसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहा गया। यह चार धामों में से एक है।
8. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित है। भगवान शिव का एक नाम नागेश्वर भी है यानि नागों के ईश्वर।
9. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है, यह ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ के नाम से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि भगवान शिव काशी के राजा हैं, और वे यहां के लोगों की रक्षा करते हैं।
10. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में है गौतम ऋषि और गोदावरी नदी ने भगवान शिव से यहां पर निवास करने का निवेदन किया था, जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हो गए।
11. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग: भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ सबसे ऊंचाई पर स्थित है, यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है।
12. घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के पास वेसल गांव में स्थापित है।
सारी दुनिया में किए गए व्रत, दान का पुण्य भले फलदायी न हो, लेकिन भगवान शिव को चढ़ाया गया समर्पण, बेलपत्र, अक्षत और जल का फसल आपके साथ जीवन भर रहेगा. उसका पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है. शिव पुराण के अनुसार शिवकथा का स्थल कैलाश का प्रतीक होता है। भक्तों की भक्ति और शिव की पावन कथा इस क्षेत्र को साक्षात कैलाश पर्वत बना देती है।
इस प्रकार भगवान भोलेनाथ की अनेक मनमोहन कहानियों का वर्णन करते हुए समापन दिवस की कथा का विश्राम किया गया। कथा के अंतिम दिवस पर देवी जी एवं सभी लछोड़वासी भावुक नजर आए। देवी जी ने सभी लोगों से आग्रह किया कि वह अपने इस अमूल्य जीवन को शिव भक्ति, देश सेवा और सत्कर्मों में लगाये।