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मानवता के महान रक्षक भगवान झूलेलाल

अंजनी सक्सेना
स्मार्ट हलचल/भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद् गीता में अर्जुन से कहा है कि जब-जब इस धरती पर धर्म की हानि होती है, अधर्म, अन्याय और अत्याचार में वृद्धि होती है, तब-तब धर्म की स्थापना के लिए मैं या मेरा कोई प्रतिनिधि इस धराधाम पर अवतरित होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की वाणी कितनी सार्थक और सत्य है, इसके अनेक प्रमाण हमारे धर्मग्रंथों में मिलते हैं। इस तरह का ही एक प्रमाण है भगवान झूलेलाल के अवतरण का, जिन्होंने मानवता की रक्षा के लिए अवतार लिया इसीलिए सिन्धी समाज उन्हें भगवान के रूप में स्मरण करता है।
महान देशभक्त,पराक्रमी और बलिदानी राजा दाहर सेन के पराजित होने के बाद भारत के उत्तर पूर्वी भाग (पंजाब और सिंध) पर मुस्लिम आक्रांताओं का शासन हो गया। लेकिन इस भू-भाग पर खलीफाओं का सीधा नियंत्रण नहीं हो सका। इसका प्रमुख कारण यह था कि यह भू-भाग काफी दूर था परिणामस्वरूप खलीफा ने पंजाब एवं सिंध के भू-भाग को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया तथा इस क्षेत्रों को कई नवाबों के आधीन कर दिया। खलीफा इन नवाबों से केवल टैक्स लेते थे। खलीफा का सीधा नियंत्रण न होने के कारण इन नवाबों में से अनेक ने अपनी शक्ति बढ़ा ली तथा वे स्वतंत्र शासक की तरह कार्य करने लगे। धीरे धीरे खलीफा का नियंत्रण भी उन पर ढीला होता गया, कई नवाबों ने कर देना बंद कर दिया और वे निरंकुश होते गए। सिंध के इन निरंकुश नवाबों में सर्वाधिक क्रूर नवाब था ढटे का नवाब। मिरख शाह। उसकी निरकुंशता जब अपनी चरम सीमा पर पहुंची तो उसने यह एलान किया कि उसकी रियासत के तमाम हिन्दू अपना मजहब बदलकर इस्लाम कबूल कर लें।उसने हिन्दुओं से यह साफ-साफ कह दिया था कि यदि उन्होंने अपनी इच्छा से इस्लाम धर्म नहीं अपनाया तो उनसे जबरन इस्लाम कबूल करवाया जाएगा तथा उनकी जमीन जायदाद छीन ली जाएगी। मिरख शाह के इस हुक्म से तमाम हिन्दुओं में दहशत और बैचेनी फैल गई। कुछ हिन्दुओं ने नवाब मिरख शाह से यह प्रार्थना की कि उन्हें कुछ दिन का समय दिया जाय ताकि वे अपने इष्टदेव की आराधना और प्रार्थना करके उनसे इस्लाम धर्म ग्रहण करने की अनुमति प्राप्त कर लें।
अपने वजीर अही की सलाह पर नवाब मिरख शाह ने यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। उनकी धारणा थी कि ये हिन्दू पानी को अपना परमेश्वर मानते हैं तथा मिट्टी और पत्थर की बेजान मूर्तियां पूजते हैं ये पानी, मिट्टी और पत्थर उनकी क्या मदद करेंगे इन्हें आखिर में इस्लाम कबूल करना ही होगा। उन दिनों सिंध भू-भाग के निवासी हिन्दू सिन्धु नदी के उपासक थे तथा इसी के प्रतीक स्वरूप वे जल के देवता वरुण के उपासक थे। सिन्धु नदी एवं वरुण देवता के प्रति अटूट आस्था के फलस्वरूप ये सभी दिन हीन हिन्दू सिन्धु नदी के तट पर एकत्रित हुए। इन सभी ने संकल्प लिया कि यदि नवाब मिरख शाह द्वारा दी गई अवधि में उनके आराध्य वरुण देव ने उनकी करुण पुकार नहीं सुनी तो वे इस्लाम कबूल करने के बजाय सिन्धु नदी में ही कूद कर जल समाधि ले लेंगे। हजारों हिन्दू-स्त्री पुरुष और बालक सिन्धु नदी के तट पर एकत्रित होकर अपने आराध्य देव वरुण देवता की उपासना एवं प्रार्थना करने लगे। सात दिनों तक इन धर्मनिष्ठ नर-नारियों ने न तो कुछ खाया और न कुछ पिया। सिर्फ अपनी तथा अपने धर्म की रक्षा के लिए भगवान वरुणदेव को ही स्मरण करते रहे ।
इस प्रार्थना, उपासना और आराधना का परिणाम सामने आया। हजारों नर-नारियों के आर्तनाद से द्रवित हो, भगवान वरुण देव ने जल वाणी की कि ‘मैं धर्म की रक्षा के लिए आ रहा हूं। सिन्धु नदी के तट पर नसरपुर ग्राम के लाहोणी रतन राय के घर में माता देवकी के गर्भ से मैं जन्म लेने जा रहा हूं। मैं मिरख शाह को ज्ञान दूंगा तथा सिन्ध क्षेत्र में सुख शांति और समृद्धि फैलाऊंगा।’
इस भविष्यवाणी के अनुरूप ईस्वी 951 (संवत् 1007 विक्रमी) में चैत्रमास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुक्रवार के दिन नसरपुर में रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से दिव्य गुणों से युक्त एक पुत्र ने जन्म लिया- जिसका नाम रखा गया उदय चंद्र, उदेराचंद्र उदेरोलाल और ‘अमरलाल’ । यही बालक कालांतर में लाल सांई या झूलेलाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान झूलेलाल की माता का नाम देवकी था, भगवान कृष्ण की मां का नाम भी देवकी था। भगवान कृष्ण के जन्म की भी भविष्यवाणी हुई थी, भगवान झूलेलाल के जन्म की भी। इसी कारण अनेक लोग भगवान झूलेलाल को वरुण देवता के साथ-साथ भगवान श्री कृष्ण का भी अवतार मानते हैं। भगवान झूलेलाल की बाल्यकाल की जो लीलाएं प्रसिद्ध है, उनकी संख्या दर्जनों में हैं। इनमें से एक कथा यह भी हैं कि जब माता देवकी को बालक झूलेलाल को दूध पिलाने के लिए उसका मुंह खोलना चाहा तो बालक ने मुंह नहीं खोला। मां की काफी कोशिशों के बाद जब बालक ने मुंह खोला तो माता देवकी को यह दिव्य दृश्य दिखाई दिया कि बालक के मुंह के भीतर सिन्धु नदी प्रवाहित हो रही है। पर इसके बाद भी बालक ने दूध नहीं पिया। फिर किसी के कहने पर बालक के मुंह में सिन्धु नदी का जल डाला गया, इसके बाद ही झूलेलाल ने अपनी मां का दूध पीना शुरू किया। उधर ढटे के नवाब मिरख शाह को जब भगवान झूलेलाल के अवतार का पता चला तो उसने अपने वजीर अही को सच्चाई का पता लगाने के लिए भेजा। वजीर अही घमंडी दिमाग का व्यक्ति था । वह नसरपुर पहुंचा, लेकिन वहां पहुंचकर वह भी भगवान झूलेलाल का दिव्य अवतार देखकर नतमस्तक हो गया। भगवान झूलेलाल उस समय चांदी के झूले में झूल रहे थे। उन्होंने वजीर अही से कहा कि तुम ढटे नगर पहुंच कर मुझे याद करना मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा। उसने ढटे नगर पहुंच कर देखा कि हजारों अस्त्र-शस्त्र सैनिकों के साथ भगवान झूलेलाल घोड़े पर सवार होकर सिन्धु नदी की विशाल जल धारा को चीरते हुए चले आ रहे हैं। वजीर यह दृश्य देखकर चकित हो गया, उसने मिरखशाह को यह सूचना दी। जब झूलेलाल दरबार में पहुंचे तो उनका स्वागत सत्कार हुआ।
मिरखशाह ने राज्य की शांति और खुशी के लिये अपने उस हुक्म को सही बताया कि सभी हिन्दुओं को मुसलमान हो जाना चाहिए। भगवान झूलेलाल ने मिरखशाह को समझाया कि सभी धर्म इस सृष्टि के रचियता और कर्ता-धर्ता ईश्वर ने ही बनाए है। किसी धर्म को बदलने या किसी धर्म को मिटाने का अधिकार मानव को नहीं है। पर मिरख शाह अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसकी धारणा थी कि भगवान झूलेलाल कोई जादू जानने वाला जादूगर हैं। उसने भगवान झूलेलाल से रात को ठहरने को कहा ताकि दूसरे दिन उन्हें गिरफ्तार किया जा सके। पर रात को भगवान झूलेलाल ने अपना चमत्कार दिखाया। नवाब मिरखशाह और वजीर अही को स्वप्न में यह वाणी सुनाई दी कि यदि झूलेलाल को कैद करने की कोशिश की तो सारा ढटे शहर जलकर राख हो जाएगा तथा मिरख शाह भी उसमें जलकर राख हो जाएगा । मिरखशाह को तो रात में अपने महल की दीवारें हिलती हुई दिखाई दीं। कुछ इतिहासकारों की धारणा यह है कि भगवान झूलेलाल ने अपनी सेना के साथ मिरख पर हमला कर दिया था तथा उसे उसके महल में ही परास्त कर दिया था। बहरहाल भगवान झूलेलाल के प्रयासों और चमत्कारों से नवाब मिरख (जिसे उन दिनों बादशाह मिरख कहा जाता था।) ने हिन्दुओं के बलात् धर्म परिवर्तन का आदेश वापिस ले लिया तथा वह भी भगवान झूलेलाल का मुरीद हो गया। इसके बाद भगवान झूलेलाल ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया। उनका यह एकता प्रयास इतना कारगर हुआ कि सिन्ध और पंजाब में हिन्दू और मुसलमान सभी उन्हें आदर देने लगे। भगवान झूलेलाल ने जब यह जान लिया कि वे जिस कार्य के लिए इस धरती पर आए थे, वह पूरा हो गया है तो वे झेझन नामक नगर के पास एक शेख की जमीन में अलोप हो गए। उनके अलोप होने पर हिन्दू और मुसलमान सभी उन पर अपना हक जमाने लगे। रात में सभी को भगवान झूलेलाल की ओर से आदेश मिला कि जिस स्थान से वे अदृश्य (आलोप) हुए हैं, तथा मिरखशाह मकबरा बनाएगा, वहां पंचज्योति जलाई जाएगी । पास में समाधि बनाई जाएगी। उस शेख को मकबरे की देखरेख की जिम्मेदारी दी गई, जिसकी जमीन में भगवान झूलेलाल अलोप हुए हैं। समाधि तथा मकबरे की ज्योति की देखरेख की जिम्मेदारी हिन्दूओं को मिली। पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत में हैदराबाद शहर के समीप उदेरोंलाल नामक स्टेशन है। (उदेरोलाल भगवान झूलेलाल का ही नाम है।) इस स्टेशन के पास झेझन नामक बस्ती में मिरखशाह द्वारा बनाया गया मकबरा, लालसाहिब की ज्योति, तथा उनकी समाधि आज भी मौजूद हैं, जो मानवता के महान सेवक तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक इस अवतार के चमत्कारों की साक्षी है

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