माहे रमजान में रोजेदार पर बरसती हैं खुदा की रहमतें – शाह आलम
स्मार्ट हलचल/सामूहिक इबादत व इफतारी से आपसी भाईचारा ,मोहब्बत में इजाफा होता है।
रमजान का पहला असरा हुआ पूरा,मगफिरत का दूसरा असरा हुआ शुरू,रोजेदार इबादतों में मशगूल
काछोला 22 मार्च -काछोला जामा मस्जिद के मौलाना मोहम्मद शाह आलम ने बताया की रमजान उल मुबारक तशरीफ ला चुका है रहमत वाला पहला असरा पूरा हो चुका और दूसरा असरा शुरू हो चुका है। यह महीना इबादत,रहमत और बरकत वाला महीना है। रमजान उल मुबारक में ही जहां कुरान शरीफ नाजिल हुआ वही तीन अशरों के कारण भी यह खास महीना माना जाता है। रमजान के 30 दिनों को तीन हिस्से में बांटा गया है,असरा का अर्थ 10 दिन से है।
माह के पहले दस दिनों तक अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों की बारिश करता है। इसके बाद के दस दिन यानी दूसरे अशरे में अल्लाह अपने बंदों के गुनाह माफ करता है, जबकि तीसरा अशरा दोज़ख की आग से निजात दिलाता है।
शुक्रवार को मौलाना मोहम्मद शाह आलम ने रोजेदारों को कहा कि हदीसे पाक में है कि इस महीने में जहन्नम के दरवाजे़ बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत के दरवाजे़ खोल दिए जाते हैं। शैतान को जकड़ दिया जाता है। रमजान के महीने में जिस तरह रोजा़ रखना मर्द और औरत के लिए फर्ज़ है, उसी तरह तरावीह की नमाज़ पढ़ना भी सुन्नते मोअककदा यानी जरूरी है।
वही मौलाना आलम ने कहा की सामाजिक नज़रिए से भी रोजे का महत्व कम नहीं है, खानपान और रहन-सहन से जुड़ी तमाम पाबंदियों के बीच जहां रोजेदारों के बीच से समाज में सादगी, त्याग और संयम,भाईचारा,मोहब्बत का संदेश प्रसारित होता है। वही सामूहिक इबादत व इफ्तारी से भाईचारा व मोहब्बत में इजाफा होता है। रोज़ा खाने-पीने और तमाम इंसानी आदतों पर रोजेदार को मन पर काबू रखने की ताकत को बढ़ाता है और दूसरे इंसानों की भूख, प्यास व दर्द को समझने से इंसानी जज्बा भी पैदा करता है।माहे रमजान को लेकर युवा,बुजुर्ग,मासूम बच्चे सहित ख्वातीन माँ, बहिने रोजा इफ्तारी,सेहरी,रोजा,नमाज,कुरान की तिलावत,इबादत,में पीछे नही है।इस मौके पर सदर हाजी शरीफ मोहम्मद मंसुरी,हाजी रमजान अली बिसायती,रफ़ीक़ मोहम्मद मंसुरी,मोहम्मद यूनुस रँगरेज,मुबारिक हुसैन मंसुरी,मुबारिक रँगरेज,फिरोज मेवाती,नन्हे खान,आरिफ रँगरेज,शाहरुख मंसुरी,साहिल रँगरेज,सोएब मंसुरी,बंटी आसिफ,कालू,शाहिद,सहित आदि सैकड़ो रोजेदार मौजूद थे।