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भारत के बारह ज्योतिलिंगों में उज्जैन के महाकालेश्वर का अपना एक अलग ही महत्व

भगवान महाकालेश्वर

अंजनी सक्सेना

स्मार्ट हलचल|भारत में ज्योतिलिंगों की उपासना,आराधना एवं दर्शनों की परंपरा बहुत प्राचीन है। भारत में प्रतिष्ठित ज्योतिर्लिंगों के बारे में यह मान्यता है कि ये स्वयं भू है और शिव की इस धराधाम में प्रगट ॐ ज्योति के प्रतीक हैं। भारत के बारह ज्योतिलिंगों में उज्जैन के महाकालेश्वर का अपना एक अलग ही महत्व है। अनेक पुराणों के अतिरिक्त संस्कृत साहित्य में भी महाकालेश्वर के महत्व के अनेक वर्णन मिलते हैं। कालिदास ने रघुवंश तथा मेघदूत में महाकालेश्वर की वंदना की है। भास, भवभूति तथा बाण आदि संस्कृत कवि भी महाकालेश्वर की महिमा प्रतिपादित करने में पीछे नहीं रहे हैं। वामन पुराण, स्कन्दपुराण, मत्स्य पुराण,भविष्य पुराण, और सौर पुराण में भी महाकालेश्वर की उपासना एवं आराधना से संबंधित अनेक कथानक है। वामन पुराण में प्रहलाद द्वारा महाकालेश्वर की वंदना का वर्णन है।
भगवान शिव के उज्जैन में महाकालेश्वर के रूप में प्रकट और प्रतिष्ठितत होने की कथा शिवपुराण में मिलती है। इस कथा के अनुसार दूषण नामक एक राक्षस ने तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया, वरदान लिया तथा तपस्वियों एवं धर्मप्रेमियों को सताने लगा।
उसी समय उज्जैन में एक शिव भक्त ब्राह्मण ने भगवान शिव की उपासना करके इस राक्षस से मुक्ति की प्रार्थना की। शिवजी उस समय समाधि में लीन थे। भक्त की इस पुकार से वे अपनी समाधि छोड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए तथा उन्होंने दूषण नामक राक्षस का वध कर दिया और उज्जैन में ही महाकालेश्वर के नाम से प्रकट और प्रतिष्ठित हो गए।
वैसे उज्जैन में महाकाल की प्रतिष्ठा का एक कारण यह भी माना जाता है कि कभी वह नगर काल (समय) गणना का केन्द्र था। प्राचीन काल में उज्जैन के समय को मानक समय (स्टेण्डर्ड समय) माना जाता था। खगोल शास्त्रियों के अनुसार उज्जैन से कर्क रेखा गुजरी है। तथा यहां अक्षांश और सूर्य की परमक्रांति 24 अंश है। 21 जून को सूर्य, इस नगर के मस्तक पर आता है। संसार के किसी भी अक्षांश पर सूर्य इस स्थिति पर नहीं आता है। उज्जैन की इसी स्थिति से आकर्षित होकर यहां वराहमिहिर सरीखे खगोल शास्त्री एवं ज्योतिषियों ने निवास किया था। महाराजा जयसिंह ने इसीलिए यहां एक वेधशाला स्थापित की थी, जो आज भी विभिन्न ग्रहों ओर नक्षत्रों की गति की गणना करती है। वर्तमान में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रयासों से एक नई वेधशाला स्थापित की गयी है एवं वैदिक घड़ी भी लगाई गयी है।
भौगोलिक स्थिति से भी उज्जैन को भारत का मध्य केन्द्र कहा जाता है,इसीलिए प्राचीन काल में इसे नाभिदेश कहा गया है। कुंभ (सिंहस्थ) की स्थली होने के कारण इसे अमृतस्य नाभि कहा गया है। अपनी इस खगोलीय एवं भौगोलिक स्थिति के कारण उज्जैन कालगणना का केन्द्र बना तथा यहां स्थित एवं प्रतिष्ठित ज्योतिलिंग महाकाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
वर्तमान मंदिर तीन खंड में है। सबसे निचले खंड में भगवान महाकालेश्वर की स्वयं भू प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यह प्रतिमा नागवेष्ठित है। प्रतिमा दक्षिण मुखी है। भारत के बारह ज्योतिलिंगों में दक्षिण मुखी होने का महत्व भगवान महाकाल को ही प्राप्त है। तांत्रिक उपासना में दक्षिण मुखी प्रतिमाएं ही सर्वाधिक आराध्य एवं महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसलिए उज्जैन प्राचीन काल से ही तंत्र साधना का केन्द्र रहा है। भगवान महाकाल के अतिरिक्त हर सिद्धि ,कालभैरव, भतृहरि गुफा, गढ़कालिका आदि उज्जैन में प्रतिष्ठित देवी देवता तांत्रिकों के उपास्य देव रहे हैं।
भगवान महाकाल का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग जिस जलहरी में प्रतिष्ठित है, नए चांदी का बना है। जिस गर्भगृह में महाकाल प्रतिष्ठित है, वहां पूरा ही शिव की परिवार विराजमान है। महाकाल, प्रतिमा के उत्तर में पार्वती, पूर्व में कार्तिकेय तथा पश्चिम में गणेश जी की प्रतिमाएं दीवारों
में बने आलों में प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के बाहर शिव के वाहन नंदी की प्रतिमा है। इस गर्भगृह में दो दीप निरंतर जलते रहते हैं।
महाकाल मंदिर के प्रांगण में एक छोटा सा तालाब है। जिसे कोटि चक्र तीर्थ कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस सरोवर के जल के स्पर्शमात्र से कोटि अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।
मंदिर के दूसरे खंड में भगवान ओंकारेश्वर का शिवलिंग प्रतिष्ठित है। सबसे ऊपरी एवं तीसरे खंड में नाग चंद्रेश्वर की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। यह प्रतिमा जिस स्थान पर प्रतिष्ठित है वह वर्ष में एक बार सिर्फ नागपंचमी के दिन दर्शनार्थ खुलता है। शेष 364 दिन यह बंद रहता है। यह प्रतिमा जिस स्थान पर प्रतिष्ठित है उसकी बाहरी दीवारों पर देवी देवताओं की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है। महाकाल मंदिर के प्रांगण में स्वप्नेश्वर महादेव का भी एक मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन से बुरे स्वप्नों का दोष निवारण हो जाता है। महाकाल के मंदिर के दक्षिणी भाग में अनादि कालेश्वर एवं वृद्ध महा – कालेश्वर के मंदिर है।
महाकालेश्वर मंदिर में भगवान शिव का तीन बार श्रृंगार होता है, आरती होती है तथा भोग लगाया जाता है। इसमें प्रातःकाल चार बजे होने वाली भस्म आरती बहुत प्रसिद्ध है। इस आरती में धोती पहन कर शामिल हुआ जाता है। भगवान महाकाल का श्रृंगार भस्म से किया जाता है तथा यह भस्म निरंतर जलती हुई चिता से प्राप्त की जाती है।

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