Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगभारत में आस्था का महाकुंभ और विदेशों में बढ़ती नास्तिकता

भारत में आस्था का महाकुंभ और विदेशों में बढ़ती नास्तिकता

सुभाष आनंद
स्मार्ट हलचल/इन दिनों प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है, जहां देश विदेश से करोड़ों लोग आ रहे हैं और पुण्य स्नान का लाभ उठा रहे हैं। यहां आने वाले लोग सनातन धर्म में भरपूर आस्था रखते हैं। एक ओर प्रयागराज के महाकुंभ में आस्था का समुन्दर उमड़ रहा है वहीं दूसरी ओर शेष विश्व में नास्तिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
प्रोफेसर डेविड बूथ का कहना है कि पिछले 40-50 वर्षों में पश्चिमी देशों में धर्म के नाम पर आस्था निरंतर कम हुई है, लेकिन भारत,पाकिस्तान,ईराक ,ईरान में धर्म पर आस्था बढ़ती दिख रही है। वैसे यह भी सत्य है कि दुनिया में आस्था कभी भी समाप्त नहीं हो सकती कम अवश्य हो सकती है।
भारत से बाहर शेष विश्व में जिस प्रकार नास्तिक लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो क्या वहां धार्मिक होना अतीत की बात हो जाएगी,इस प्रश्न का उत्तर मुश्किल ही नहीं बल्कि बहुत मुश्किल है।
कैलिफोर्निया में क्लेरमांट के पिटजुर कालेज में सामाजिक विज्ञान के प्रोफेसरों ने एक सर्वे किया है और उनका कहना है कि दुनिया भर में नास्तिक लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है और धार्मिक आस्था में कमी आ रही है। इस तथ्य की पुष्टि गैल्प इंटरनेशनल ने भी की है। गैल्प इंटरनेशनल ने 2020 से 2024 तक 97 देशों में एक लाख से अधिक लोगों को अपने सर्वे में शामिल किया।

नास्तिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है
सर्वे में कहा गया है कि जिन 100 देश के लोगों को शामिल किया गया, उनके अनुसार धर्म के नाम पर उनकी आस्था बहुत तीव्रता से कम हो रही है । धर्म को मानने वालों की संख्या 76 फ़ीसदी से कम होकर अब 64% तक रह गई है । खुद को नास्तिक बताने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। विश्व में नास्तिकों की संख्या 26 % को पार कर चुकी है,
सर्वे से पता चला है कि चीन में 91% लोग नास्तिक है,जापान में 86%, स्वीडन में 78%, चैक रिपब्लिकन में 75%, यूके में 72 फीसद, बेल्जियम में 71%, एस्टोनिया में 70.8%, ऑस्ट्रेलिया में 70%, नार्वे में 70%, डेनमार्क में 68% नास्तिक हैं। सर्वे के नुसार नास्तिकों की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि उन देशों में हुई है जो अपने नागरिकों को आर्थिक, राजनीतिक और अस्तित्व की ज्यादा सुरक्षा देते हैं।

100 वर्ष पहले जापान, ब्रिटेन, नीदरलैंड, जर्मनी,फ्रांस जैसे देशों में धर्म को उच्च स्थान दिया जाता था, अब इन देशों में ईश्वर को मानने वालों की संख्या बड़ी तेजी से कम हो रही है। दूसरी ओर रूढ़िवादी देशों में धर्म के नाम पर आस्था बढ़ रही है।
वही , ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों का कहना है कि नास्तिकों के बढ़ने के कारण धर्म कभी समाप्त नहीं होगा, हां शनै: शनै: कम जरूर हो जाएगा, मौलवी,पंडित ,धर्मगुरु, प्रचारकों और पादरियों का कहना है कि जैसे-जैसे विश्व में नास्तिकों की संख्या बढ़ रही है त्यों त्यों धरती पर पाप बढ़ रहे हैं जिससे आगे दु:ख बढ़ेगा।
धर्मगुरुओं का कहना है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन से विश्व पर संकट बढ़ेगा और प्राकृतिक संसाधनों की कमी होगी । वह चाहते हैं कि दुनिया की परेशानियां चमत्कारिक ढंग से दूर हों ,हम शांतिपूर्वक ढंग से जीवन का निर्वाह करें , ऐसा तब ही होगा जब धर्म हमारे आसपास रहेगा। ऐसा इसलिए है कि मानव के विकास के दौरान ईश्वर की जिज्ञासा हमारी प्रजाति के तांत्रिका तंत्र से बची रहती है। इसको समझने के लिए दोहरी प्रक्रिया के सिद्धांत को समझने की जरूरत है ।
मनोवैज्ञानकों का कहना है कि हमारे दो विचार सिस्टम है ,सिस्टम एक और सिस्टम दो। सिस्टम दो अभी-अभी विकसित हुआ है ,यह अपने-अपने दिमाग की उपज है जो हमारे दिमाग में बार-बार गूंजती है। कभी चुप हो जाती है कभी योजना बनाने और यांत्रिक रूप से सोचने को मजबूर करती है।
दूसरा सिस्टम एक सहज ,स्वाभाविक और ऑटोमेटिक है। यह बातें इंसान के जीवन में नियमित विकसित होती रहती है । इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि इंसान कहां पैदा हुआ है वह अस्तित्व का तंत्र या सिस्टम बिना सोचे समझे हमें बिना ज्यादा प्रयास किये सजीव और निर्जीव चीजों की पहचान करने की क्षमता देता है। बच्चों को माता-पिता की पहचान कराता है। यह दुनिया को बेहतर ढंग से समझने, प्राकृतिक आपदाओं या अपने करीबियों की मौत की घटनाओं को समझने में मदद करता है। इंसान स्वाभाविक तौर पर मानना चाहता है कि वह किसी बड़ी तस्वीर का हिस्सा है और जीवन पूर्ण रूप से निरर्थक नहीं है।
हमारा मन उद्देश्य और स्पष्टीकरण के लिए लालायित रहता है, धार्मिक विचारों को अपनाना मनुष्य के लिए सबसे कम प्रतिरोध का रास्ता है। धर्म से छुटकारा पाने के लिए आपको मानवता में कुछ मूलभूत बदलाव लाने होंगे। ईश्वर के प्रति आस्था की बात करें तो 25% अमेरिकन किसी चर्च से संबंध नहीं रखते ,लेकिन सर्वे में 62 फ़ीसदी ने बताया कि वह ईश्वर में विश्वास रखते हैं ,32% ने बताया कि वह धार्मिक प्रवृत्ति के लोग हैं। दुनिया भर के सर्वे के पश्चात कुछ लोगों ने कहा है कि उन्हें ईश्वर में कोई यकीन नहीं, अभी तक उसे किसी ने देखा नहीं है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि अलौकिक सजा एक परिकल्पना है तो मुल्ला,मौलवियों ,पादरियों ,पंडितों,धर्म गुरुओं का कहना है कि धर्म इंसानों से कभी दूर नहीं जा सकता ,धर्म मनुष्य के दिलों में डर और प्रेम दोनों बनाए रखता है।

भारत में क्यों ज्यादा है आस्तिक?
एक प्रश्न के उत्तर में यह बताया गया है कि भारत में 90% लोग आस्तिक हैं और केवल 10 फ़ीसदी लोग नास्तिक हैं। भारत में लोग धर्म गुरुओं और डेरो से भी जुड़े हुए हैं । सिखों का गुरुद्वारे में अथाह विश्वास है। उसी प्रकार इस्लाम धर्म से जुड़े मुस्लिम समाज भी मस्जिदों में सजदा करते है। ईसाई लोग अपने पवित्र गिरजाघर में जबकि हिंदू किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ने के बजाए अपने घरों में और धार्मिक स्थलों पर ईश्वर आराधना में विश्वास रखते हैं। हर समाज में अनेक धर्मगुरु हैं। धर्मगुरु अपने-अपने धर्म का प्रचार करने में लगे हुए हैं । केवल 10 % लोग ही यहां नास्तिक हैं

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