Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगमनुष्य स्वयं होता है अपने भाग्य का निर्माता

मनुष्य स्वयं होता है अपने भाग्य का निर्माता


कर्म ही है जिससे भाग्य बदल सकते है

 मदन मोहन भास्कर

स्मार्ट हलचल ।परिस्थितियों का हमारे ऊपर बड़ा प्रभाव पड़ता है। आस- पास का जैसा वातावरण होता है,वैसा बनने और करने के लिए मनोभूमि का रुझान होता है और साधारण स्थिति के लोग उन परिस्थितियों के साँचे में ढल जाते हैं। घटनाएँ हमें प्रभावित करती हैं, व्यक्ति का प्रभाव अपने ऊपर पड़ता है। इतना होते हुए भी यह मानना पड़ेगा कि सबसे अधिक प्रभाव अपने विश्वासों का ही अपने ऊपर पड़ता है। परिस्थितियाँ किसी को तभी प्रभावित कर सकती है, जब मनुष्य उनके आगे सिर झुका दे। यदि उनके दबाव को अस्वीकार कर दिया जाए तो फिर कोई परिस्थिति किसी मनुष्य को अपने दबाव में देर तक नहीं रख सकती। विश्वासों की तुलना में परिस्थितियों को प्रभाव निश्चय ही नगण्य है।

लोगों को कहते हुए सुना होगा कि भाग्य की रचना भगवान करते हैं और कर्म-रेखाएँ जन्म से पहले ही लिख दी जाती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि” तकदीर के आगे तदवीर की नहीं चलती। ये किंवदंतियाँ सच नहीं हो सकती, जन्म से अंधा, अपंग उत्पन्न हुआ या अशक्त, अविकसित व्यक्ति के सामने ऐसी विपत्ति आ खड़ी होती है, जिससे बच सकना या रोका जा सकना अपने वश में नहीं होता। जैसे- अग्निकाण्ड, भूकम्प, युद्ध, महामारी, अकाल- मृत्यु दुर्भिक्ष, रेल, मोटर आदि का पलट जाना, चोरी, डकैती आदि के कई अवसर ऐसे आ जाते हैं। ऐसी कुछ घटनाओं के बारे में भाग्य या होतव्यता की बात मानकर संतोष किया जाता है। पीड़ित मनुष्य के आंतरिक विक्षोभ को शांत करने के लिए भाग्यवाद की तड़पन दूर करने के लिए डॉक्टर लोग नींद की गोली खिला देते हैं, माफिया का इंजेक्शन लगा देते हैं,कोकीन आदि की फुरहरी लगाकर पीड़ित स्थान को सुन्न कर देते हैं। ये विशेष परिस्थितियों के विशेष उपचार हैं। यदा कदा ही ऐसी बात होती है,इसलिए इन्हें अपवाद ही कहा जाएगा।
आपने ये भी सुना होगा कभी-कभी स्त्रियों के पेट से मनुष्याकृति से भिन्न आकृति के बच्चे जन्म लेते हैं, कभी कभी कोई पेड़ असमय में ही फल- फूल देने लगता है, कभी ग्रीष्म ऋतु में ओले बरस जाते हैं । ये अपवाद है उन्हें कौतुहल की दृष्टि से देखा जा सकता है। परंतु इसको नियम नहीं माना जा सकता इसी प्रकार भाग्य की गणना अपवादों में तो हो सकती है पर यह नहीं माना जा सकता कि मानव जीवन की सारी गतिविधियां ही पूर्वनिर्धारित भाग्य विधान के अनुसार होती है। यदि ऐसा होता तो कर्म और प्रयत्न करने की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती । जिसके भाग्य में जैसा होता है, वैसा जी मिलता और यदि अमिट है तो कर्म करने से भी अधिक क्या मिलता या कर्म न करने पर भी भाग्य में लिखी सफलता अनायास ही क्यों नहीं जाती ।

हमें समझ लेना चाहिए कि कोई किसी का भाग्य नहीं लिखते, हर मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता हैं वही लिखता है । जिस प्रकार कल का जमाया हुआ दूध आज दही बन जाता है, उसी प्रकार कल का पुरुषार्थ या कर्म आज भाग्य बनकर प्रस्तुत होता है। आज के कर्मों का फल आज ही नहीं मिल जाता। उसको परिपक्व होने में, परिणाम प्राप्त होने में,परिणाम निकलने में कुछ देर लगती है। यह देरी ही भाग्य कही जा सकती है। हमारे जीवन में अगणित समस्याएँ उलझी हुई गुत्थियों के रूप में विकसित वेष धारण किए सामने खड़ी हैं। इस कटु सत्य को मानना ही चाहिए। उनके उत्पादक हम स्वयं है और यदि इस तथ्य को स्वीकार करके अपनी आदते,विचारधाराओं,मान्यताओं और गतिविधियों को सुधारने के लिए तैयार हो तो इन समस्याओं को हम स्वयं ही सुलझा सकते हैं। लाखों करोड़ों मील दूर दिन-रात चक्कर काटते हुए अपनी मौत के दिन पूरे करने वाले ग्रह-नक्षत्र भला हमें क्या सुख-सुविधा प्रदान करेंगे?

हम ईश्वर को सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर शरीर को ही भगवान् का मंदिर समझकर मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से इन्द्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम अपनायेंगे, वर्जनाओं से बचेंगे, समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और चारों ओर धूर्तता, स्वच्छता, सादगी को भी अपनायेंगे, परम्पराओं की तुलना में विवेक को महत्व देंगे तो निश्चित रूप से भाग्य बदल जायेगा । कहा भी गया कि कर्म ऐसी चीज है जो भाग्य को बदल सकता हैं । इसलिए हम भाग्य भरोसे न रहकर अपने कर्म पर विशेष ध्यान देंगे क्योंकि – हम बदलेंगे तो युग बदलेगा,
युग बदलेंगे तो देश बदलेगा ।

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