जमकर तारीफ हुई मांडलगढ़ की बदनाम गलियों की, कसा तंज डेढ़ घंटे चले स्वागत कार्यक्रम पर
मांडलगढ़ क्षेत्र की जनता सौभाग्यशाली है कि बिना किसी व्यवस्था के भी किसी प्रकार की हानि नहीं हुई
लगता है जनप्रतिनिधि, अधिकारियों व पुलिस प्रशासन का आपस में समन्वय नहीं है
सोचने वाली बात
क्या यह जनचर्चा वास्तविकता पर है या केवल टाइमपास
मांडलगढ़, स्मार्ट हलचल। मांडलगढ़ नगर पालिका द्वारा हर साल की भांति इस साल भी दशहरा महोत्सव कार्यक्रम किया गया जो अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया । घनी मत रही किसी प्रकार का कोई हादसा नहीं हुआ जिस तरह से कार्यक्रम हुआ लग रहा था जनप्रतिनिधि और अधिकारियों में भी आपस में समन्वय नहीं है। पुलिस प्रशासन की लचर व्यवस्था। लाइटिंग की कमी, कवि सम्मेलन देर से प्रारंभ होना, प्रारंभ होते से ही कवि का मांडलगढ़ की गंदगी और स्वागत सत्कार कार्यक्रम पर तंज कसना काबिले तारीफ था।
आयोजनकर्ता खुद अपना स्वागत करवा रहे और अपने लोगों का स्वागत कर रहे । अंधा बांटे रेवड़ियां…..।
मंच पर क्षेत्र के सबसे बड़े जनप्रतिनिधि के साथ वर्तमान सरकार बीजेपी के सभी कार्यकर्ताओं को बार-बार आमंत्रित किया जा रहा था।
यानी हर गली के कार्यकर्ता और हर घर के कार्यकर्ता को मंच पर बुलाया जा रहा था, अच्छी बात है लेकिन मंच पक्का था टुटा नहीं। पर यह अच्छी बात तब और ज्यादा अच्छी होती की जनता ने इन पर विश्वास जताया है और अभी शासन में है तो जो सबसे बड़ी समस्या मांडलगढ़ की है, जिसके संबंध में वर्तमान व निवर्तमान विधायक गोपाल खंडेलवाल ने जनता के बुलावे पर साथ लग कर ज्ञापन दिया और कांग्रेस सरकार को उस समय कोसा और कहां है की निकम्मी कांग्रेस सरकार, भ्रष्ट सरकार मेरी सुनती नहीं है. हमारी सरकार आने दो मैं यह कर दूंगा, मैं वह कर दूंगा…. कहा, जनता ने आपकी बात पर विश्वास कर आपको दोबारा से जिताया सरकार भी आप ही की है, अब सुशासन हैं,भ्रष्टाचार नहीं है, निकम्मी सरकार नहीं है, तो अब जो मूल समस्या है उन पर आपका ध्यान क्यों नहीं है या अब भी सरकार आपकी सुनती नहीं है। सुशासन अच्छी और बिना भ्रष्टाचार की सरकार में क्या बजरी खनन, अवैध खनन बंद हो गए हैं या भ्रष्टाचार से चल रहे हैं ।
दशहरा मैदान के पास ही अनैतिक, दैहिक व्यापार होता है, जिस पर आज तक कोई अंकुश नहीं लग सका विधायक ने अपने पिछले कार्यकाल में दावे किए थे सब खोखले साबित हो रहे हैं।
दशहरा मैदान से फलासिया रोड की तरफ रेलवे अंडरपास तक गाड़ियां खड़ी थी और पीछे तक हो सकती थी लेकिन वहां और ज्यादा रिस्क होने से… और इस तरफ से अत्यधिक जनता ग्रामीण इलाकों से इस महोत्सव को देखने आती है, उस तरफ एक भी लाइट नहीं थी ना कोई सुरक्षा व्यवस्था थी।
सभी गाड़ी मोटरसाइकिल अंधेरे में खड़ी थी सभी इधर कार्यक्रम में व्यस्त थे उधर अंधेरे का और सुनसान जगह का कोई भी फायदा उठा सकता था।
सबसे बड़ी बात किसी को भी गाड़ी को रेलवे स्टेशन की तरफ नहीं ले जाने दिया जा रहा था उनकी मजबूरी थी इधर खड़ी करने की अगर किसी की गाड़ी चोरी हो जाती तो इसका पुलिस प्रशासन जिम्मेदार होता ? जिम्मेदारी छोड़ो रिपोर्ट दर्ज करने में भी आनाकानी होती।
आजकल आए दिन कई मोटरसाइकिल की चोरी हो रही है पुलिस की रिकवरी रेट बहुत कम है। जब पुलिस चोरियों को बरामद करने में नाकाम हो रही है, ऐसे में उनकी यह व्यवस्था और बढ़ावा देने जैसी है। अगर रोड खुला रखा जाता तो हो सकता है व्यक्ति सुरक्षित जगह देखकर अपनी गाड़ी पार्क करते लेकिन पुलिस ने दशहरा मैदान की बाउंड्री के पास रोड बंद कर दिया ।
ऐसे ही रावण दहन के समय कई व्यक्ति को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह रावण में ही घुस जाएंगे। वह तो अच्छा है की कम बजट या कमीशन कुछ भी कह ले इतनी आतिशबाजी और आग वगैरा नहीं थी जिससे कोई हादसा नहीं हुआ दशहरा मैदान के दोनों तरफ रोड जाम रहे ,जाम की स्थिति में कई व्यक्ति फस गए जो महोत्सव में भाग लेने पहुंच ही नहीं पाए। पुलिस प्रशासन को ऐसे मौके पर विशेष व्यवस्था करनी चाहिए थी लेकिन व्यवस्था के बजाय अव्यवस्था ज्यादा की।
यही हाल लाइटिंग व्यवस्था की भी थी जिस तरह से आतिशबाजी और महोतस्व का प्रचार प्रसार किया जाता है, ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला। अव्यवस्था के चलते कार्यक्रम लेट प्रारंभ हुआ काफी समय स्वागत सत्कार में बीत गया जबकि जनता कवी सम्मेलन के लिए आई थी, जब कवियों का मंच पर मौका आया जिनके लिए क्षेत्र की जनता आई थी तो बारिश ने सारा मामला बिगाड़ दिया यानी की भगवान भी चाहते थे कि सब व्यक्ति अपने घर जाए ताकि कोई बड़ा हादसा नहीं हो। कुल मिलाकर जनता को निराशा हाथ लगी स्वागत सत्कार समारोह को झेल कर जाना पड़ा. क्या यह जनचर्चा वास्तविकता पर है या केवल टाइमपास बताए…….