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मरीजों की मौत, लापरवाही या अव्यवस्था, ये बड़ा सवाल, क्या कर रहे है, जिले के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार ??

राजेश जीनगर

भीलवाड़ा। धरती के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सकों के हाथों से आखिर मरीजों को जान क्यों गंवानी पड़ रही है, इसके लिए प्रबंधन की लापरवाही जिम्मेदार है या हॉस्पिटल की अव्यवस्था, ये बड़ा सवाल है। वहीं दुसरी और नामी हॉस्पिटल में मरीजों की मौत पर जिले के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी गंभीर क्यों नहीं है। गत् दिनों शहर के सबसे बड़े आधुनिक व्यवस्थाओं से लेस मानें जाने वाले रामस्नेही हॉस्पिटल में हॉस्पिटल की ही एक स्टाफ की मौत हो गई। जिसको लेकर गुस्साए परिजनों ने प्रबंधन के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन किया। ज्ञात रहे की इसी चिकित्सालय में कुछ समय पुर्व भी महिला स्टाफ का वॉशरूम में शव मिला था। जबकि अब अक्सर विवादों में रहने वाले सिम्स हॉस्पिटल में हुई एक फोजी की मौत को लेकर व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े हो गए हैं की इलाज के नाम पर मोटी रकम वसुल लिए जाने के बाद भी आखिर ये खिलवाड़ क्यों और कब तक ?
हांलांकि की पुर्व में अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस नामी कृष्णा हॉस्पिटल, ब्रजेश बांगड़ हॉस्पिटल व केशव पोरवाल हॉस्पिटल में इलाज के दौरान मरीजों को अपनी जान गंवानी पड़ी और मरिज के परिजनों द्वारा प्रर्दशन हो चुके हैं। बावजूद इन प्रर्दशनों को ज़िले के जिम्मेदार गंभीरता से लेने को तैयार नहीं और ना ही इन हॉस्पिटल के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही करने को तैयार नहीं। जिसके चलते विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाए जाए तो ग़लत नहीं होगा। क्योंकि ऐसे हॉस्पिटल में मरीजों की मौत की सत्यता सामने नहीं आ पाती है तो वहीं परिजनों को मुआवजे का प्रलोभन देकर प्रबंधन अपनी करतुतों पर पर्दा डालने का भरकस प्रयास करते हैं। जबकि परिजनों द्वारा हंगामा ज्यादा बरपा तो मौके की नजाकत को देखते हुए विभाग फौरी टीम बनाकर जांच का आदेश दे देता है। इसके बाद लीपापोती हो जाती है और जांच की कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाती, जिससे ऐसे अस्पतालों का मनोबल और बढ़ जाता है। जानकारों की मानें तो इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की सुस्त कार्यशैली भी जिम्मेवार है।क्योंकि इन निजी चिकित्सालयों का संचालन कैसे किया जा रहा है, किस तरह का स्टाफ लगा है। क्या क्या खामियां हैं कोई देखने वाला नहीं है। अगर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार समय समय पर निजी चिकित्सालयों में कार्यरत डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ व यहां लगे उपकरणों की जांच करें तो शायद मरीजों की मौत के खेल पर अंकुश लगाया जा सकता है और जांच के दौरान मिली खामियों पर सख्त कार्रवाई करे तो प्रबंधन को भी सबक मिल सकता है।

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