शाहपुरा@(किशन वैष्णव)गांव के तेजाजी चौक में चल रहे सप्तदिवसीय श्री रामकथा और गौ सुरभि यज्ञ के पांचवे दिन भगवार श्री राम के चरित्र का वर्णन करते हुए कथावाचक पंडित केदार महाराज ने कहा की दुनिया में माता पिता की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नही है पता पिता के आशीर्वाद और सेवा में चारो धाम की यात्रा का फल प्राप्त होता है अगर किसी सेवक पुत्र ने अपने माता की सही चितमन से सेवा की है और माता पिता की आत्मा उससे खुश हैं तो उसके लिए चारधाम की यात्रा के बराबर है स्वर्ग का रास्ता उसके लिए खुला होगा। पंडित केदार महाराज ने अपनी कथा में कहा की वृद्धजनों को सर्वदा अभिवादन अर्थात सादर प्रणाम, नमस्कार,चरण स्पर्श तथा उनकी नित्य सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल-ये चारों बढ़ते हैं।उम्र के साथ साथ मानव को मोह माया त्याग कर भक्ति भाव में भी समय देना चाहिए।कथावाचक केदार महाराज के मुखारविंद से श्री राम कथा का सजीव चित्रण का भक्तों ने अनुभव प्राप्त करते हुए कथा के पांचवे दिन राजा दशरथ की रानी केकई द्वारा राजा दशरथ से 2 वरदान मांगे गए जिसमे जब रानी केकई मंथरा की बातों में आ गई और
मंथरा ने कैकेई को राजा दशरथ से दो वरदान मांगने को कहा था, जिसमें एक था प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का बनवास और दूसरा पुत्र भरत के लिए सिंहासन।मंथरा की बातों में आकर रानी कैकई ने सारे वस्त्र-आभूषण त्याग कर मलिन वस्त् धारण कर लिया और कोप भवन में जाकर बैठ गईं.वही भगवान राम के चरित्र का सुंदर वर्णन करते हुए कथावाचक पंडित केदार ने कहा भगवान श्री राम ने 14 वर्ष वनवास जाने की बात पर पलट कर कोई जवाब नही दिया ऐसा होता है आज्ञाकारी पुत्र कुल की मर्यादा को रखने के लिए हर बात को सहर्ष स्वीकार कर लेते थे भगवान श्री राम।वही आजकल की पीढ़ी के कथावाचक पंडित ने कहा की आज कल की नई पीढ़ी माता पिता की बात कहा मानती है उन्हे भी भगवान श्री राम के चरित्र कथा से कुछ सीखना चाहिए।रामायण हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है।इसमें रचित सभी गुण जीवन के लिए हितकारी हैं।कहा कि ये सभी गुण व्यक्ति को सत्य व सफलता के मार्ग बताते हैं। रामायण में भगवान श्रीराम के गुणों का उल्लेख किया गया है। साथ ही उनके जीवन के संघर्षों का जिक्र है। कहा कि रोजाना रामायण का पाठ करने से जीवन के सही मोल का पता चलता है।साथ ही मनुष्य के सभी कष्ट भी खत्म हो जाते हैं। रामायण केवल धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि मनुष्य को जीवन की सीख भी देती है।भगवान श्रीराम व सीता माता के वनवास के दौरान कुटिया में रहने का उदाहरण देते हुए बताया कि एक महल की अपेक्षा एक कुटिया में जीवन यापन कई गुना शांतिपूर्ण होता है। उन्होंने बताया कि जीवन की मोहमाया के जंजाल से कुटिया में जीवन कई गुना सुंदर होता है जैसे श्रीराम ने अयोध्या के ऐश्वर्य पूर्ण जीवन को त्यागकर वन में वास किया वो भी एक कुटिया में।उन्होंने बताया कि भगवान के अपराधी को तो क्षमा हो सकती है लेकिन साधु संतों के प्रति किए गए दुर्व्यवहार की कभी क्षमा नहीं मिलती है।दुनिया जितना हमे अच्छा समझती है उतने अच्छे हम होते नहीं है। सूर्पणखा का प्रसंग देते हुए बताया कि जहां पर भक्ति होती है वहां पर वासना का वास नहीं होता है अर्थात भक्ति को ही सर्वोपरी बताया। आचार्य ने श्रद्धालुओं को गांव भांवता के नाम की व्याख्या की जिसमे बताया कि मन में भाव विभोर की भावना को ही भांवता कहा गया है।आचार्य ने राजनीति व धन के बारे में बताया कि नीति के बिना कभी राज नहीं चलता है और धर्म के बिना कभी धन नहीं टिकता। इस अवसर पर संगीतमय कथा में सैकड़ो महिला पुरुष भक्त मौजूद रहे।
आज के जमाने में माता पिता की स्थिति दयनीय होती जा रही है..
कथावाचक पंडित केदार महाराज ने माता पिता के साथ आज अधिकतर हो रहे वाकया को सामने रखते हुए कहा की आज वृद्धाश्रमों की बढ़ती हुई संख्या और तीर्थस्थानों में उम्रदराज भिखारियों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वृद्ध माता-पिता की दशा कितनी दयनीय हो गई है।कितनी लज्जा की बात है कि जिन माता-पिता ने अपनी संतान के लिए अनेक प्रकार के कष्ट सहते हुए उन्हें पढ़ाया,सभी सुविधाएं उपलब्ध कराईं,स्वयं दुख सहते हुए संतान को आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयत्न किए परंतु वही संतान जीवन के अंतिम समय में उनको छोड़कर दूर रह रही है।युवा यह नहीं जानते कि एक दिन वे भी इस हालत में जरूर आएंगे वो भी एक दिन असहाय और वृद्ध होंगे तब वे भी क्या अपनी संतान से इसी व्यवहार की चाह रखेंगे जैसा कि आज वे स्वयं अपने माता-पिता के साथ कर रहे है।पंडित केदार ने अंतिम चरण में कहा की माता पिता की सेवा कर लो नौजवानो जीवन में कुछ साथ नही जायेगा,ये जिंदगी जिसको जीने के लिए आप रात दिन भागदौड़ कर रहे हो एक दिन माटी में मिल जाएगी..माता पिता की सेवा कर धर्म और कर्म को भी समय दीजिए जिससे आगे भी आपके लिए मोक्ष के द्वार खुले मिले।