बाह्य पूजा नहीं, अंतर्मन की निर्मलता ही मोक्ष का मार्ग — विभाश्री माताजी
संयम और शुद्ध विचारों से बनता है जीवन मंगलमय — आर्यिका श्री 105 विभाश्री माताजी
कोटा। स्मार्ट हलचल|रिद्धि-सिद्धि नगर स्थित श्री चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान गणिनी आर्यिका श्री 105 विभाश्री माताजी ने बुधवार को अपने प्रभावशाली प्रवचन में कहा कि व्यक्ति को सद्गुणों से अपने जीवन को आलोकित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, क्षमा और मैत्री जैसे गुण मनुष्य को जीवन के उच्चतम शिखर तक पहुंचाते हैं।
माताजी ने कहा कि सम्यक दृष्टि, ज्ञान और आचरण के माध्यम से ही आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। उन्होंने जीवन में संयम, शुद्ध विचार और ब्रह्मचर्य को सर्वोपरि बताया। उन्होंने कहा कि मनुष्य को अपने कर्मों की शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि बाह्य पूजा तभी सार्थक होती है जब अंतरात्मा निर्मल हो।
आर्यिका श्री ने कहा कि जैसे गंदे पात्र में भरा हुआ जल स्वच्छ नहीं हो सकता, वैसे ही दूषित मन से की गई आराधना भी निष्फल रहती है। अतः आत्मशुद्धि ही सच्चे पूजन का आधार है। उन्होंने धर्म के वास्तविक स्वरूप को आत्मा की शुद्धि से जोड़ा और कहा कि जब तक मनुष्य भीतर से निर्मल नहीं होता, तब तक मोक्ष मार्ग का द्वार नहीं खुलता।अंत में उन्होंने उपस्थित श्रद्धालुओं से आग्रह किया कि वे अपने जीवन में सदाचार, करुणा और धर्मनिष्ठा को अपनाकर समाज में सच्चे आदर्श प्रस्तुत करें।इस अवसर पर सकल दिगंबर समाज के महामंत्री पदम बड़ला, मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, मंत्री पंकज खटोड, कोषाध्यक्ष ताराचंद बड़ला, पारस कासलीवाल, पारस लुहाड़िया, पारस आदित्य, सेवानिवृत्त न्यायाधीश जितेन्द्र कुमार, निर्मल अजमेरा, महावीर बड़ला, राजकुमार पाटनी, नरेन्द्र कासलीवाल, अजीत गोधा, वर्धमान कासलीवाल, अनिल मित्तल, मनीष सेठी, संजय लुहाड़िया सहित बड़ी संख्या में जैन समाज के श्रद्धालु उपस्थित रहे।


