बाबूलाल नागा
स्मार्ट हलचल|भारत में मीडिया को लोकतंत्र का ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ कहा जाता है। पर क्या लोकतंत्र के इस ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ को वो संवैधानिक दर्जा है जो बाकी तीनों स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को है। आमतौर पर मीडिया को लोकतंत्र का ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ चलन-प्रचलन के तौर पर कहा जाता है। लेकिन संवैधानिक रूप से मीडिया कहीं भी ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ के रूप में उल्लेखित नहीं है। केवल इसे एक नाम दे दिया गया है। हालांकि भारत में मीडिया को अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संरक्षण मिलता है, लेकिन इसे संविधान में ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ के रूप में आधिकारिक दर्जा नहीं मिला है।
विदित रहे कि भारत में मीडिया को संवैधानिक दर्जा दिलाने की मांग एक लंबे समय से चली आ रही है, जिसके तहत मीडिया को लोकतंत्र का ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ के रूप में औपचारिक मान्यता और सुरक्षा प्रदान करने की वकालत की जाती रही है। हाल में ही मीडिया को संवैधानिक दर्जा की मांग को लेकर पत्रकार सुरक्षा और कल्याण के लिए प्रतिबद्ध अखिल भारतीय संगठन प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स पंजीकृत (पीसीडब्ल्यूजे) की ओर से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ई-याचिका दायर की गई है। संगठन की ओर से राष्ट्रपति के नाम याचिका भेजकर मांग की है कि ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ (मीडिया) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया जाए, जिससे न्याय, पारदर्शिता और सुशासन को सुदृढ़ किया जा सके। राष्ट्रपति से आग्रह करते हुए मांग की गई है वे ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ को संवैधानिक मान्यता दें ताकि भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुदृढ़ किया जा सके। और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की पारंपरिक तीन शक्तियों के अलावा, मीडिया एक स्वतंत्र संस्था के रूप में काम करता है, जो इन तीनों शक्तियों की निगरानी करता है और उन्हें जवाबदेह ठहराता है। लेकिन आजादी के बाद से लोकतंत्र के इन तीन स्तंभों को संवैधानिक दर्जा मिला हुआ है, जबकि जनता के सुख-दुख में साथ रहने वाली मीडिया को अब तक यह दर्जा नहीं मिल सका है। जबकि मीडिया ने भारतीय लोकतंत्र में लगातार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह सत्ता पर सवाल उठाने, जनहित की आवाज बनने और सूचना के स्वतंत्र प्रवाह को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मीडिया न केवल जागरूकता बढ़ाता है बल्कि जनमत को आकार भी देता है, सामाजिक मुद्दों को उजागर करता है और सरकार पर निगरानी रखता है।
दूसरी तरफ संवैधानिक दर्जा न मिलने से पत्रकारों की सुरक्षा का भी सबसे बड़ा सवाल उभर कर आता है। क्योंकि भारत में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए स्पष्ट और प्रभावी कानून का अभाव है। इसके परिणामस्वरूप पत्रकारों को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक रूप से भी अत्यधिक दबाव का सामना करना पड़ता है। भारत में पत्रकारों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। शक्तिशाली नेताओं, माफिया और अन्य असामाजिक तत्वों द्वारा पत्रकारों को धमकी दी जाती है, उनकी स्वतंत्रता को कुचला जाता है और उन्हें शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ता है। यह घटनाएं न केवल पत्रकारों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालती हैं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया और समाज में स्वतंत्र विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता को भी चुनौती देती हैं। निष्पक्ष पत्रकारिता पर हो रहे इन हमलों के मद्देनजर मीडिया को लोकतंत्र के अन्य तीन स्तंभों की भांति संवैधानिक अधिकार नितांत आवश्यक है।
बहरहाल, मीडिया की आधिकारिक भूमिका को नकारना लोकतंत्र को कमजोर करता है। यदि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका लोकतंत्र के तीन मजबूत स्तंभ हैं, तो मीडिया वह ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ है जो इन्हें संतुलित और जवाबदेह रखता है। इसके बिना लोकतंत्र अधूरा और कमजोर हो जाएगा। मीडिया को संवैधानिक दर्जा देना लोकतंत्र को मजबूत बनाने और मीडिया की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। संवैधानिक रूप से मीडिया को ‘‘चौथा स्तंभ‘‘ का दर्जा देते है तो लोकतंत्र और ज्यादा मजबूती मिलेगी। लोकतंत्र को कहीं ज्यादा परिपक्वता मिलेगी। संवैधानिक मान्यता मिलने से पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित होगी, प्रेस की स्वायत्तता और विश्वसनीयता में वृद्धि होगी, जनता का लोकतांत्रिक संस्थाओं पर विश्वास और गहरा होगा, और लोकतांत्रिक ढांचे में संतुलन व पारदर्शिता आएगी। मीडिया को संवैधानिक दर्जा मिलने से ईमानदार और सच्चे पत्रकारों को गरिमा और स्वतंत्रता के साथ कार्य करने का अधिकार मिलेगा। पत्रकारिता राजनीतिक, कॉर्पोरेट या प्रशासनिक दबावों से सुरक्षित होगी। निष्पक्ष और निर्भीक रिपोर्टिंग के माध्यम से लोकतंत्र के सभी स्तंभों की जवाबदेही सुनिश्चित होगी। नागरिकों के सूचना के अधिकार की रक्षा होगी, जब मीडिया एक संवैधानिक रूप से संरक्षित संस्था बनेगी। भारतीय लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी, ताकि मीडिया पहरेदार बनी रहे, प्रवक्ता नहीं। नैतिक पत्रकारिता को प्रोत्साहन मिलेगा और पेशेवर मानकों को बढ़ावा मिलेगा। अतः अब समय आ गया है कि लोकतंत्र के अन्य तीनों स्तंभों की तरह मीडिया को भी संवैधानिक दर्जा दिया जाए।