स्मार्ट हलचल/झुंझुनू (राजस्थान) में 21 नवम्बर 2024 को चौंकाने वाली घटना सामने आई, जिसमें एक 25 वर्षीय मूक-बधिर युवक को मृत घोषित कर दिया गया था। चिकित्सकों ने उसे पूरी तरह से मृत घोषित कर पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए भेज दिया था। जब युवक के पार्थिव शरीर को चिता पर रखा गया, तो अचानक उसकी नब्ज़ चलने लगी और उसने सांस लेना शुरू कर दिया। यह घटना एक अजीब और दुर्लभ मेडिकल स्थिति, ( जिसे लाज़ारस सिंड्रोम कहा जाता है), के रूप में सामने आई। इस घटना ने न केवल झुंझुनू बल्कि पूरे देश को हक्का-बक्का कर दिया और इसने कागजों पर की गई पोस्ट मोर्टम की अति गंभीर चिकित्सकीय लापरवाही को भी उजागर किया। कुछ समय पहले मृत घोषित किए गए व्यक्ति के अचानक जीवित होने ने की घटना ने विश्वभर के समाचार पत्रों की सुर्खियां बटोरते हुए चिकित्सकों एवं चिकित्सक समुदाय पर लापरवाही के सवाल उठाए, जिससे कुछ चिकित्सा पेशेवरों को निलंबित भी किया गया।
इस लेख का उद्देश्य चिकित्सा लापरवाही पर पर्दा डालना नहीं है वरन लाज़ारस सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ स्थिति के बारे में जानकारी साझा करना है जो अति दुर्लभ है.
लाज़ारस सिंड्रोम एक दुर्लभ और रहस्यमय घटना है, जिसमें व्यक्ति, जिसे मृत घोषित कर दिया गया हो, अचानक पुनर्जीवित हो जाता है। इसे मेडिकल भाषा में असफल सी.पी.आर. के बाद स्वतः पुनर्जीवन कहा जाता है। यह घटना तब होती है जब कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सी.पी.आर.) की प्रक्रिया के बाद शरीर में रक्त प्रवाह फिर से शुरू हो जाता है। यह स्थिति डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए एक चुनौती बन सकती है, क्योंकि यह मृत्यु की पहचान करने के मानकों पर पुनः विचार करने के लिए मजबूर करती है।
लाज़ारस सिंड्रोम का नाम बाइबिल के लाज़ारस के उस प्रसंग से लिया गया है, जब यीशु ने लाज़ारस को मृत घोषित करने के बाद पुनर्जीवित किया था। चिकित्सा की दुनिया में यह तब होता है जब किसी व्यक्ति को मृत घोषित किया जाता है और कुछ समय बाद, रक्त प्रवाह फिर से सामान्य हो जाता है, जिससे व्यक्ति पुनर्जीवित हो सकता है। इसे मेडिकल समुदाय में “स्वतः पुनर्जीवन” भी कहा जाता है। हालांकि यह घटना बहुत ही दुर्लभ है, लेकिन इसके बारे में कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है और यह अभी भी एक रहस्यमय और अनसुलझा मुद्दा है।
लाज़ारस सिंड्रोम के कारणों को पूरी तरह से समझना अभी बाकी है, लेकिन कुछ संभावित कारकों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। जब सी.पी.आर. के दौरान एड्रेनालाईन जैसी दवाइयां दी जाती हैं, तो उनका असर धीरे-धीरे शरीर पर पड़ता है और कभी-कभी ये दवाइयां दिल की धड़कन को फिर से शुरू कर सकती हैं, जिससे व्यक्ति पुनर्जीवित हो सकता है। इसके अतिरिक्त, सी.पी.आर. के दौरान छाती पर दबाव डाला जाता है, जिससे रक्त प्रवाह को सामान्य रूप से बढ़ाया जा सकता है। जब सी.पी.आर. की प्रक्रिया रुक जाती है, तो रक्त प्रवाह फिर से शुरू हो सकता है और जीवन लौट सकता है। इसके अलावा, शरीर के प्राकृतिक शारीरिक प्रणाली, जैसे कि हृदय और रक्त प्रवाह, कभी-कभी अचानक सही तरीके से काम करने लगते हैं और दिल फिर से धड़कने लगता है, जिससे व्यक्ति पुनर्जीवित हो सकता है।
भारत में भी लाज़ारस सिंड्रोम के कुछ मामले सामने आए हैं जो चिकित्सा समुदाय और आम जनता के लिए चौंकाने वाले रहे हैं। दिनाँक 21 नवम्बर 2024 को झुंझुनू में एक 25 वर्षीय मूक-बधिर युवक का उदाहरण एक ही मामाला नहीं है जिसे डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए शव को ले जाते समय उसकी नब्ज़ चलने लगी और उसने सांस लेना शुरू कर दिया। लाज़ारस सिंड्रोम के अन्य दुर्लभ और अद्भुत मामले पहले भी संज्ञान में आए हैं। इसी वर्ष 2024 में बिहार के बेगूसराय जिले में भी एक महिला, रामवती देवी, जिन्हें सांस की समस्या के कारण मृत घोषित कर दिया गया था, अंतिम संस्कार के दौरान जीवित हो उठी। माना जाता है कि परिवहन के दौरान होने वाले झटकों ने उनके मृत घोषित किए शरीर को पुनर्जीवित कर दिया। इसी तरह, महाराष्ट्र के बारामती जिले में 2021 में 76 वर्षीय शकुंतला गायकवाड़, जो कोविड -19 से पीड़ित थीं, अस्पताल में बेहोश हो गईं और उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। लेकिन अंतिम संस्कार की तैयारी के दौरान उन्होंने अपनी आँखें खोल दीं और रोने लगीं।
दुनिया भर में भी लाज़ारस सिंड्रोम के कुछ अद्भुत मामले सामने आए हैं। रूस में वर्ष 2011 में एक महिला को मृत घोषित किया गया था, लेकिन अंतिम संस्कार के दौरान वह अचानक जीवित हो उठी, हालांकि बाद में सदमे के कारण उनकी मौत हो गई। अमेरिका में 2007 में एक महिला को मृत घोषित किया गया था, लेकिन कुछ समय बाद जब परिवार ने शव की तैयारी शुरू की, तो वह अचानक जाग गईं। चिकित्सकों का कहना था कि यह घटना सी.पी.आर. की विफलता और दवाओं के प्रभाव के कारण हुई थी। इसी तरह, ब्रिटेन में 2008 में एक मरीज को हार्ट अटैक के बाद मृत घोषित किया गया, लेकिन 27 मिनट बाद वह पुनः जीवित हो गए। डॉक्टरों का मानना था कि उनके शरीर में अवशिष्ट रक्त प्रवाह के कारण यह पुनर्जीवन हुआ।
लाज़ारस सिंड्रोम एक अत्यंत दुर्लभ घटना है, और दुनिया भर में अब तक 80 मामलों में इसे दर्ज किया गया है। यह घटना तब होती है जब डॉक्टर मृत्यु की पुष्टि करने के बाद, अचानक रक्त प्रवाह और शारीरिक क्रियाओं का पुनः शुरू होना संभव हो जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना मुख्य रूप से कार्डियक अरेस्ट, गंभीर रक्तचाप, या अधिक दबाव के कारण हो सकती है। इसके बावजूद, यह घटनाएँ चिकित्सा विज्ञान के लिए एक रहस्य बनी हुई हैं, क्योंकि इनमें से अधिकांश मामलों में पुनर्जीवित व्यक्ति कुछ समय बाद पुनः मर जाते हैं।
लाज़ारस सिंड्रोम की रोकथाम के लिए मृत्यु की पुष्टि करने के कड़े मानकों और प्रक्रियाओं को अपनाया जाना चाहिए। मृत्यु की पुष्टि के लिए यह आवश्यक है कि दिल की धड़कन और श्वास का पूरी तरह से रुक जाना सुनिश्चित किया जाए। इसके अलावा, मस्तिष्क गतिविधियों की पुष्टि करना भी आवश्यक होता है। मृत्यु की पुष्टि के बाद, पुनः परीक्षण करना भी महत्वपूर्ण होता है ताकि इस प्रकार की दुर्लभ घटना से बचा जा सके।
लाज़ारस सिंड्रोम एक रहस्यमय घटना है जो डॉक्टरों और चिकित्सा जगत के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होती है। यह हमें यह समझने की आवश्यकता बताती है कि मृत्यु की पुष्टि करने में कोई भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। यह घटना हमारे शरीर में छिपी हुई रहस्यमय शक्तियों को उजागर करती है, जो सामान्य समझ से परे होती हैं। यह घटना जीवन और मृत्यु के बीच की सीमाओं को और भी अस्पष्ट बना देती है, और हमारे विश्वासों और ज्ञान की सीमाओं को चुनौती देती है। सभी मेडिकल चिकित्सकों को गंभीर रोगियों का उपचार करते समय पूरी जिम्मेदारी से उपचार करना चाहिए एवं डेथ घोषित करते समय सम्पूर्ण परीक्षण कर मृत्यु की घोषणा करनी चाहिए जिससे जनता जनार्दन एवं समाज में चिकित्सकों की गरिमा एवं प्रतिष्ठा बनी रहे.
डॉ. सुरेश पाण्डेय