Homeअध्यात्मशरद पूर्णिमा का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

शरद पूर्णिमा का पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व

विजय कुमार शर्मा

स्मार्ट हलचल|भारतीय संस्कृति में वर्ष भर अनेक पर्व और त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक के पीछे कोई न कोई पौराणिक कथा, धार्मिक विश्वास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण जुड़ा होता है। शरद पूर्णिमा भी ऐसा ही एक अद्भुत पर्व है, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना गया है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी इसका गहरा महत्व है। यह पर्व आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है, जब चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और आकाश में अपनी शीतल चांदनी से धरती को आलोकित करता है।


पौराणिक महत्व

शरद पूर्णिमा का उल्लेख कई पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज की गोपियों के साथ “महारास” का आयोजन किया था। यह रासलीला केवल नृत्य नहीं थी, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक थी। कृष्ण प्रत्येक गोपी के साथ स्वयं उपस्थित हुए, जिससे यह सिद्ध हुआ कि परमात्मा सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान है। इसीलिए इस रात को “रास पूर्णिमा” या “कोजागरी पूर्णिमा” भी कहा जाता है।
स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो लोग जागरण करते हुए भगवान का स्मरण करते हैं, उन्हें धन-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। को-जागर्ति अर्थात् ‘कौन जाग रहा है’ इस वाक्य से ‘कोजागरी’ शब्द बना है। अतः इस रात जागरण करना शुभ माना गया है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु अपने शयन से जागते हैं और पृथ्वी पर कृपा बरसाते हैं। वहीं देवी लक्ष्मी इस रात अपने भक्तों के घर-घर जाकर उन्हें सुख, शांति और वैभव प्रदान करती हैं। इसी कारण लोग इस दिन लक्ष्मी पूजन करते हैं, घरों की सजावट करते हैं और धन की देवी का स्वागत करते हैं।

धार्मिक परंपराएं

शरद पूर्णिमा की रात का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह वर्ष की सबसे अधिक चांदनी वाली रात होती है। इस अवसर पर लोग खुले आकाश के नीचे खीर बनाकर रखते हैं। कहा जाता है कि चांदनी के अमृत समान किरणों के संपर्क में आई खीर औषधि का रूप ले लेती है। रातभर रखी यह खीर अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है। यह परंपरा केवल धार्मिक विश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारणों से भी जुड़ी है।
कई जगहों पर इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके व्रत रखा जाता है और रात्रि में चंद्र दर्शन के साथ पूजा की जाती है। महिलाएं विशेष रूप से इस दिन अपने परिवार के सुख-सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं।

वैज्ञानिक महत्व

शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व अत्यंत रोचक है। खगोल विज्ञान के अनुसार, इस दिन पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति ऐसी होती है कि चांदनी की किरणें सीधे धरती पर विशेष प्रभाव डालती हैं। इस रात का वातावरण अत्यंत शुद्ध और नमीयुक्त होता है, जिससे चंद्र किरणों में एक प्रकार की ऊर्जा और औषधीय गुण समाहित हो जाते हैं।
आयुर्वेद में भी शरद ऋतु को ‘पित्त दोष’ की वृद्धि का काल माना गया है। चांदनी की ठंडक इस दोष को संतुलित करती है। जब खीर या दूध को चांदनी में रखा जाता है, तो उसमें चंद्रकिरणों के सूक्ष्म तत्व प्रवेश करते हैं, जो शरीर में ठंडक और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं। यही कारण है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर का सेवन करने की परंपरा विकसित हुई।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो शरद पूर्णिमा की रात आकाश में नमी की मात्रा बढ़ जाती है। यह नमी जब चांदनी के संपर्क में आती है, तो प्राकृतिक विकिरण प्रभाव पैदा करती है, जो शरीर की त्वचा, आंखों और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। कुछ आधुनिक अनुसंधानों में पाया गया है कि इस रात की चांदनी में सोडियम और कैल्शियम जैसे सूक्ष्म तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए पोषक सिद्ध होते हैं।

ध्यान और स्वास्थ्य से जुड़ा महत्व

शरद पूर्णिमा की चांदनी को “प्राकृतिक थेरेपी” भी कहा गया है। इस दिन खुले आसमान के नीचे बैठकर ध्यान लगाना, प्राणायाम करना या कुछ समय मौन साधना करने से मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह रात अत्यंत शांत और ऊर्जावान मानी जाती है।
कई योगाचार्य बताते हैं कि इस दिन की चंद्र ऊर्जा शरीर की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करती है। नींद न आने की समस्या, मानसिक तनाव, त्वचा रोग या रक्तचाप की असंतुलन जैसी समस्याओं में इस दिन की चांदनी का प्रभाव लाभकारी होता है।

सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

भारत के विभिन्न भागों में शरद पूर्णिमा को अलग-अलग नामों और परंपराओं से मनाया जाता है। बंगाल और ओडिशा में इसे कोजागरी लक्ष्मी पूजा कहा जाता है, जहां लोग लक्ष्मी देवी की आराधना करते हैं। महाराष्ट्र में भी यह दिन “कोजागरी पौर्णिमा” के नाम से प्रसिद्ध है, और लोग दूध या खीर का सेवन करते हैं। उत्तर भारत में इसे शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा कहा जाता है, जबकि दक्षिण भारत में इसे “कौमुदी उत्सव” के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन कई स्थानों पर भजन संध्या, रासलीला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यह रात समाज में प्रेम, एकता और आध्यात्मिकता का संदेश देती है।
शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति और विज्ञान के बीच सामंजस्य का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाती है कि भारतीय परंपराओं में हर धार्मिक कर्मकांड के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक तर्क छिपा होता है। चंद्रमा की ऊर्जा, प्रकृति की लय और मानव स्वास्थ्य के बीच का यह संबंध भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है।
शरद पूर्णिमा की रात केवल चांदनी का आनंद लेने का अवसर नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण और संतुलन का भी प्रतीक है। यही वह क्षण है जब भक्ति, विज्ञान और प्रकृति एक सूत्र में बंध जाते हैं। इसीलिए कहा गया है-
“शरद चंद्र की शीतलता में ईश्वर का आशीष छिपा है,
जो जागता है इस रात, वह जीवन में समृद्धि पा लेता है।”

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
news paper logo
logo
RELATED ARTICLES