भीलवाड़ा । भीलवाड़ा अपनी अनूठी और खास परंपराओं के लिए जाना जाता है जो देश ही नहीं विदेशों में भी इसके लिए मशहूर है भीलवाड़ा में शीतला सप्तमी पर निकलने वाली मुर्दे की सवारी हो या दिवाली के अगले दिन होने वाली गधों की पूजा इनमे से एक प्रसिद्ध परंपरा है रंगतेरस पर होने वाली नाहर नृत्य की जो भीलवाड़ा के मांडल कस्बे में किया जाता है । ये अनूठा नजारा साल में एक ही बार देखने को मिलता है। वो भी सिर्फ राम और राज के समक्ष। भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में इस नाहर नृत्य का साल में एक ही बार आयोजन होता है। मौका होता है रंग तेरस का। इस दिन मांडल कस्बे के लोगों के लिए दीपावली जैसा उत्सव होता है और इस उत्साह का मुख्य आकर्षण होता है ये ‘नाहर नृत्य’। इस खास नृत्य के इतिहास की बात करें तो सबसे पहले यह नृत्य मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए पेश किया गया था। मौका था शाहजहां के भीलवाड़ा प्रवास का । उनका पड़ाव यहीं मांडल में डाला गया था। लेकिन तब से यानी करीब 412 साल पहले शुरू की गई यह परम्परा आज भी अनवरत जारी है। इस नृत्य की खासियत यह है कि इसके कलाकार अपने पूरे शरीर पर रुई लपेट कर नाहर (शेर)का स्वांग रचते हैं। इसलिए इसे नाहर नृत्य का नाम दिया गया। नाहर नृत्य मांडल कस्बे में मुग़ल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए शुरू हुआ। अब ये नाहर (शेर) नृत्य प्रतिवर्ष होली के बाद रंग तेरस के दिन होता है । सालों से नाहर नृत्य मांडल कस्बे का प्रमुख त्योहार बन चुका है। देश में अपनी तरह का ये अनूठा नृत्य पारम्परिक वाद्य यत्रों की धुनों के बीच प्रस्तुत किया जाता है। चार सौ बारह साल पहले 1614 में शाहजहां मांडल पहुंचे थे। उनका पड़ाव उदयपुर जाते समय रास्ते में यहां डाला गया था। शाहजहां मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने उदयपुर जा रहे थे। तभी मुगल बादशाह शाहजहां मांडल में रुके थे। उस समय उनके मनोरंजन के लिए यह नाहर नृत्श पेश किया गया। लेकिन यहां के कलाकारों ने इसे आज भी जीवंत रखा हुआ है। साल में एक बार इसे प्रस्तुत किया जाता है। मांडल के राजस्थान लोक कला केंद्र के अध्यक्ष रमेश बूलिया कहते हैं कि यह नाहर नृत्य नरसिंह अवतार का रूप है। 1614 ईस्वी में मुगल बादशाह शाहजहां के समक्ष उस समय मांडल गांव वालों ने अपने नरसिंह अवतार का प्रदर्शन कर शाहजहां को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इस बार गुरुवार को 412वें नाहर नृत्य का आयोजन किया जाएगा । यह त्योहार मांडल कस्बे के लिए दीपावली जैसा त्योहार है। इस दिन हमारी बहन, बेटियां और दामाद सभी गांव आते हैं। यह त्योहार आपसी भाईचारे की एक बहुत बड़ी मिसाल है। सुबह से ही लोग रंग खेलते हैं। जहां दिन में बेगम और बादशाह की सवारी निकाली जाती है। हर बार चार कलाकार नाहर बनते हैं। नाहर नृत्य करने वाले कलाकार कहते हैं वे बरसों से शरीर पर रुई लपेटकर शेर का स्वांग वाला नाहर नृत्य करते आ रहे है । हम बरसों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं। हमारे शरीर पर 4 किलो रुई लपेटी जाती है। सिंग लगा कर पूरा नरसिंह का अवतार बनाया जाता है। पहले हमारे दादाजी फिर पिताजी अब वर्तमान में हम भी इस परंपरा को निभा रहे हैं ।’ अपने आप में अनूठा ये नाहर नृत्य बरबस ही लोगों को ध्यान खींच लेता है। बरसों से यहां के लोग इसे जिंदादिली के साथ पेश करते हैं। त्योहार की तरह इसे मनाया जाता है। मांडल उपखंड अधिकारी छोटू लाल शर्मा ने बताया कि कस्बे का पारंपरिक ऐतिहासिक प्रसिद्ध नाहर महोत्सव को मांडल महोत्सव के रूप में भव्य रूप से मनाया जाएगा ये भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बा वासियों के लिए दिवाली से भी अधिक महत्वपूर्ण माना जाने वाला पर्व हैं जो कि होली के 13 दिन बाद रंग तेरस के ऊपर मनाए जाने वाला नाहर महोत्सव है जिसको इस बार मांडल विधायक उदय लाल भड़ाना के अथक प्रयास से प्रशासनिक सहयोग से मांडल महोत्सव के रूप में पूर्व राजस्थान सरकार में राजस्व मंत्री रामलाल जाट के प्रयास से 33 लाख से अधिक के बजट से निर्मित स्टेडियम में आयोजित किया जा रहा हैं । इस मांडल महोत्सव कार्यक्रम में कस्बे के आस पास के लोगों के साथ ही उप मुख्यमंत्री डॉ प्रेम चंद बैरवा सहित कई जनप्रतिनिधि जिला प्रशासन ओर जिले से आए अतिथियों के मौजूदगी में किया जाएगा ।