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नेहरू जी मुझे बचा लो! आदरणीय नेहरू जी

राजनैतिक व्यंग्य-समागम

1. नेहरू जी मुझे बचा लो! : विष्णु नागर

आदरणीय नेहरू जी,

स्मार्ट हलचल|मैं इधर-उधर की बात नहीं करूंगा, सीधे टापिक पर आऊंगा। आप इकसठ साल पहले इस दुनिया से कूच कर गए थे। उसके बाद 13 नेता प्रधानमंत्री बन चुके हैं, मगर पिछले 11 साल से भी अधिक समय से आपके नाती-पोतों की उम्र का एक 74 वर्षीय बूढ़ा – जो अपने को जवान समझने का मुगालता पाले हुए है- आपसे बहुत अधिक परेशान रहने लगा है। उसे आपकी बेटी इंदिरा गांधी और आपके नाती राजीव गांधी से खास शिकायत नहीं, मगर आपसे है। उसे लगता है उसकी सारी समस्याओं की जड़ आप हैं। आप नहीं होते, तो इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री नहीं होतीं। वह नहीं होतीं, तो राजीव गांधी प्रधानमंत्री नहीं होते और आज राहुल गांधी और प्रियंका गांधी उसके सामने चुनौती बनकर खड़े नहीं होते।

उसे लगता है कि आप न होते, तो भारत में लोकतंत्र न होता, सेकुलरिज्म न होता, समाजवाद का, बराबरी का सपना न होता, तो सभी लुटेरों के बहुत पहले से बहुत मजे होते! आप और गांधी जी न होते, तो 1947 में ही भारत ‘हिन्दू पाकिस्तान’ बन जाता! आप न होते, तो यहां मुसलमान गिनती के सौ रह जाते, जो आज हद से हद दस हजार हो जाते। तब उन्हें दबाना-कुचलना और आसान हो जाता। किसी को कानों-कान खबर नहीं होती कि ये जिंदा हैं या मर खप चुके हैं!

आप न होते, गांधी और अंबेडकर न होते, तो दलित आज इतने अधिक दलित न होते कि इनमें से एक भी सिर उठाने की सैकड़ों सालों तक हिम्मत न कर पाता। आप और बाबा साहेब अंबेडकर न होते, तो यह संविधान न होता, मनुवाद ही भारत का संविधान होता और तब सब कुछ कितना आसान, कितना सरल होता! तब हिंदुस्तान को हिंदूस्थान बनाना बाएं हाथ का खेल होता! विरोध की हरेक आवाज़ का गला घोंटना बेहद सहज होता! हिंदू राष्ट्र घोषित करना और उसका चक्रवर्ती सम्राट खुद को घोषित करना कठिन न होता। तब सिर पर मुकुट धारण करना हास्यास्पद नहीं, स्वाभाविक होता। कुर्सी को सिंहासन समझने की बजाय सिंहासन पर बैठने का अधिकार होता। तब बामन, बामन होते, बनिया, बनिया, ठाकुर, ठाकुर और दलित केवल दलित होते। सब वर्ण व्यवस्था के हिसाब से चलते। इसे उम्मीद है कि तब भी यह मुकुटधारी राजा बन सकता था!

इस हफ्ते तो यह बूढ़ा आपसे इतना अधिक खफा था कि उसने संसद में आपको 14 बार कोसा, तब जाकर इसका कलेजा थोड़ा ठंडा पड़ा। वैसे तो वह जब से पद पर बैठा है, यही सब कर रहा है। अक्सर ही वह अपनी ‘अक्ल’ का कुछ ज्यादा ही इस्तेमाल करने लगता है और फंस जाता है। वह सदा झूठ बोलता है और उसका झूठ वहीं धर लिया जाता है। वह मन ही मन संकट की इस घड़ी में हनुमान जी की जगह नेहरू जी आपका नाम-स्मरण करता है कि हे प्रभु, अब आप ही संकटमोचक हो। आओ और बचाओ मुझे। जब उसे भरोसा हो जाता है कि नेहरू जी ने उसकी अरज सुन ली है, तो बहस पहलगाम में आतंकवादी हमले पर होती है, मगर वह आपका नाम जपना शुरू कर देता है। दुनिया उसके इस बचकानेपन पर हंसती है, तो हंसे। वह जानता है कि मैं हूं ही हास्यास्पद। मैं जब भी मुंह खोलूंगा, दुनिया को हंसने का सामान दूंगा। कुछ दूंगा, यह सोचकर वह खुश रहता है।

उसकी मजबूरी समझो नेहरू जी। उसे उसकी गरीबी ने सच के साथ खड़े होने की हिम्मत नहीं दी, झूठ के साथ खड़े होने की कायरता दी। संघ में रहा, तो पढ़ने- लिखने से उसका वास्ता नहीं रहा। आज तक उसे फाइल तक पढ़ना नहीं आता! दिल, दिमाग और आंखें जिनके पास है, उनसे इसे नफ़रत है। इसीलिए उसने आपको मुसलमान साबित करने की कोशिश की। इसीलिए उसने आपको अय्याश सिद्ध करने की प्रयत्न किया। बड़े सेठों के हाथों बिकने के अलावा वह आज तक कुछ कर नहीं पाया। इस कारण सब कुछ होकर भी उसके पास आज कुछ नहीं है। इसकी उसमें जबरदस्त कुंठा है। वह बेचने और खरीदने से आगे कभी न जा सका। सब कुछ होकर भी प्रापर्टी डीलर होकर रह गया। लोगों को ठगने-कुचलने से आगे बढ़ न सका। दुनिया घूम-घूम कर इसने यही जाना कि आज भी भारत के नाम पर किसी की पूछ है, तो वे गांधी और नेहरू हैं। यह जानकार वह जलकर राख हो जाता है।

आप उसकी इस मनःस्थिति को समझें। जिसकी ‘अबकी बार सरकार’ बनाने यह अमेरिका गया था, वही ट्रंप एक के बाद एक इस पर कड़ी मार, मार रहा है। वह इकतीस बार कह चुका है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम उसी ने करवाया। इसका जवाब देने के काबिल भी ट्रंप ने इसे नहीं छोड़ा। फिर भारतीय आयात पर 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगाकर इसकी और फजीहत कर दी। बची-खुची कमी उसने भारत की अर्थव्यवस्था को मुर्दा घोषित करके कर दी। इधर उसने यह भी कह दिया है कि ये मोदी, मेरे किसी बयान का, किसी ट्वीट का जवाब नहीं देता। पूरी तरह चुप रहता है। इसने मुझे लड़ाई रुकवाने का शुक्रिया तक नहीं दिया! मैं अपनी इस बेइज्जती को कभी नहीं भूलूंगा। जिसके लिए लोग कहते हैं कि मुझे नोबेल मिलना चाहिए, उस पर ये चुप बैठा है! ट्रंप अड़ा हुआ है कि हमारा ये सेवक खुलेआम मंजूर करे कि युद्ध विराम मैंने करवाया है। अभी तो ट्रंप और घेरेगा‌ और संकट पैदा करेगा। यह खुंदकी है, तो वह इससे भी बड़ा खुंदकी है।

इस संकट में वह बार-बार आपका नाम स्मरण करेगा और नये-नये झूठ सामने लाएगा। आपके पीछे छुपने की कोशिश करेगा, मगर ट्रंप को इससे क्या? वह न गांधी को जानता है, न नेहरू को। वह सिर्फ मोदी को जानता है।

इधर हमारा यह प्रधान सेवक उम्र के 75 वें पड़ाव पर पहुंच रहा है, उधर इसके संकट बढ़ते जा रहे हैं। तो नेहरू जी, ये अपना फ्रस्ट्रेशन आप पर ही निकालेगा बेचारा। इसकी बातों पर कान न देना, अपने सामने बच्चा समझकर इसे माफ कर देना। इसका ‘कल्याण’ करने के लिए देश की 140 करोड़ जनता है। ये सब पर गाज गिराएगा और एक दिन वही गाज इसी पर भी गिरेगी। उस दिन इसकी कराह भी नहीं निकलेगी। शेष तो आप समझते ही हो, कुशल ही कुशल है।

(कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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2. गोडसे कौन? हिंदू आतंकवाद, आतंकवाद ना भवति! :राजेंद्र शर्मा

गोडसे कौन था? वही नाथूराम गोडसे। वही नाथूराम गोडसे, जिसे महात्मा गांधी की हत्या के लिए फांसी की सजा दी गयी थी। शायद हमसे शुरू से ही गलती हो रही है। हम गोडसे का नाम इस तरह कैसे ले सकते हैं – नाथूराम गोडसे? गोडसे नाम के आगे जी तो लगाया ही जाना चाहिए था। यह अमृत काल है। राम राज्य भी आ चुका है। पुरानी वाली आजादी के बाद लिखा गया झूठा इतिहास बदला जा रहा है। जिन देशभक्तों को पिछले इतिहास में भुला दिया गया था, उन्हें याद किया जा रहा है। जिन देशभक्तों को लोगों की नजरों से छुपा दिया गया था, उन्हें खोजा जा रहा है। सावरकर जी का वीरत्व स्थापित किया जा चुका है। अब चेले, गोडसे जी की देशभक्ति साबित किए जाने की बारी है।

साध्वी प्रज्ञा ने तो कई साल पहले ही एलान कर दिया था कि अगर गांधी देशभक्त थे, तो गोडसे भी देशभक्त थे। कितनी सही बात है। एकदम समदर्शितापूर्ण। दोनों देशभक्त। अपने-अपने तरीके से दोनों देश की सेवा में रत। क्या हुआ कि एक देशभक्त ने दूसरे देशभक्त को गोली मार दी। एक नहीं तीन गोलियां मारीं, मगर उससे भी क्या? गोलियां खाने वाला देशभक्त मर गया, उससे भी क्या? था तो आखिरकार, दो देशभक्तों के बीच का मामला ही। देशभक्त भी ऐसे-वैसे नहीं, अंगरेजों के जमाने वाले। हमें क्या अधिकार है दो देशभक्तों के झगड़े में टांग अड़ाने का? हमें क्या अधिकार है, किसी को हत्यारा और किसी को मकतूल कहने का? हमें क्या अधिकार है, किसी को खलनायक और किसी को शहीद मानने का?

इस मसले का निपटारा अब हो ही जाना चाहिए। अमृत काल में इसका निपटारा अब और लटका नहीं रहने दिया जा सकता। देखा नहीं कैसे अमित शाह के संसद में इसका एलान करने भर की देर थी कि ‘हिंदू आंतकवादी नहीं हो सकता है’, सेकुलर बिरादरी ने जवाब के नाम पर नाथूराम गोडसे को आगे कर दिया है।

उस पर कह रहे हैं कि अमित शाह की बात तो गलत हो नहीं सकती, अभी-अभी कथावाचक, प्रदीप मिश्र ने उन्हें शंकर का अवतार घोषित किया है। जरूर हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता होगा। जरूर हिंदुओं में कोई मैन्यूफैक्चरिंग फॉल्ट होगा, जो उन्हें आतंकवादी बनने से रोकता होगा। शंकर के अवतार से बेहतर यह बात और कौन जान सकता है? फिर इससे तो मोदी जी भी असहमत नहीं हो सकते हैं, जो पहले ही विष्णु के अवतार घोषित हो चुके हैं। अब बस योगी जी ब्रह्मा के अवतार घोषित हो जाएं, फिर तो हिंदुओं के आतंकवादी नहीं हो सकने पर महा-त्रयी की ही मोहर लग जाएगी। इसमें अगर कोई देरी हो रही है, तो सिर्फ इसलिए कि योगी जी की उम्र, ब्रह्मा जी से मैच नहीं खाती है। दाढ़ी भी नहीं है। और मोदी जी विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच अदला-बदली करने के लिए तैयार होने से रहे।

खैर! सेकुलर वाले हुज्जत कर रहे हैं कि शाह जी सही हैं, तो गोडसे कौन था? हिंदू था या महात्मा गांधी की हत्या करने वाला आतंकवादी था? अब हिंदू था तो हत्यारा आतंकवादी हो नहीं हो सकता। और हत्यारा आतंकवादी था, तो हिंदू नहीं हो सकता। तब गोडसे था कौन? इस सवाल का जवाब जरूरी है, वर्ना गोडसे की गोली से गांधी का सीना छलनी हुआ सो हुआ, शाह जी का अवतारत्व भी छलनी हो जाएगा! अवतार शंकर का और वचन सरासर झूठे!

वैसे गोडसे और गांधी का यह पूरा किस्सा सच ही है, इसकी क्या गारंटी है? यह किस्सा पुरानी आजादी के टैम का है। उसमें भी नेहरू के राज का। माना कि सरदार पटेल भी इस किस्से की तस्दीक करते थे। सिर्फ तस्दीक ही नहीं करते थे, उन्होंने तो इसे सच मनवाने के चक्कर में, आरएसएस जैसे सच्चरित्र संगठन पर पाबंदी ही लगा दी थी। उनका तो कहना था कि गोली भले गोडसे ने चलायी हो, पर कारतूस में बारूद सावरकर और गोलवलकर के लोगों ने भरा था। पर इसका तो कोई प्रमाण नहीं है कि यही सरदार पटेल के वास्तविक विचार थे। बेचारे सरदार भी क्या करते? नेहरू पीएम बन बैठे और सरदार नंबर-दो रह गए। मामूली गृहमंत्री। बेचारे को नेहरू की हर बात माननी पड़ती थी। उनकी तबियत भी कुछ ठीक नहीं रहती थी।

नेहरू ने कहा गोडसे ने गांधी को मारा था, सरदार को भी हां में हां मिलाकर कहना पड़ा कि गोडसे ने ही गांधी को मारा था। सारी दुनिया को भी यही मानना पड़ा कि गोडसे ने गांधी को मारा था। और जो आरएसएस देश-दुनिया को बता सकता था कि गोडसे हिंदू था और हिंदू आतंकवादी हत्यारा नहीं हो सकता है, उस पर पाबंदी लगी हुई थी। सच को दबा दिया गया। हिंदू को आतंकवादी हत्यारा बना दिया गया।

लेकिन, अब और नहीं। दूसरी आजादी के बाद नहीं। अमृत काल में नहीं। आज नहीं तो कल, एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों से सच सामने आ ही जाएगा। दुनिया को पता चल ही जाएगा कि गोडसे ने गांधी को नहीं मारा था। गोडसे गांधी को मार ही नहीं सकता था। गोडसे हिंदू था और हिंदू आतंकी हत्यारा हो ही नहीं सकता। गांधी को किसी और ने मारा होगा और तुष्टीकरण के लिए नेहरू ने गोडसे का नाम लगा दिया, जो एक हिंदू था। वैसे शोध का विषय तो यह भी है कि क्या गांधी को वाकई गोली ही लगी थी? इस पर तो खैर काफी राष्ट्रवादी शोध कर भी चुके हैं कि गोली खाकर गिरते-गिरते गांधी के आखिरी शब्द ‘‘हे राम’’ नहीं थे। जय श्रीराम तो बिल्कुल ही नहीं थे। उनके आखिरी शब्द थे, ‘‘हाय राम’’, जो अचानक चोट लगने पर किसी भी साधारण मनुष्य की प्रतिक्रिया होती है।

वैसे हो तो यह भी सकता है कि गांधी की हत्या के लिए गोडसे पर दोष मढना, एक गहरे हिंदू-विरोधी षडयंत्र का हिस्सा रहा हो। जरूर इसके पीछे मकसद बाद में हिंदुओं को आतंकवादी कहकर बदनाम करना होगा। और यह भी कि असली आजादी के बाद जब अमित शाह यह कहें कि हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता, तो उनकी बात काटने के लिए गोडसे का नाम लिया जा सके। पर अब यह झूठ और नहीं चलेगा। अब तो अदालतों ने भी मानना शुरू कर दिया है कि हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता है। मालेगांव केस में तभी तो साध्वी प्रज्ञा समेत सब छूट गए। वह दिन दूर नहीं है, जब एक बार फिर गांधी केस चलाया जाएगा और गोडसे को बाईज्जत बरी कर सारी दुनिया से मनवाया जाएगा कि हिंदू आतंकवाद, आतंकवाद ना भवति।

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