जानिए- रॉ चीफ की सैलरी, मिलने वाली सुविधांए और जिम्मेदारियां ?
RAW क्या होता है?
मदन मोहन भास्कर
भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) को अब नया प्रमुख मिल गया है। केंद्र सरकार ने 28 जून 2025 को वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी पराग जैन को रॉ का नया चीफ नियुक्त किया है।पराग जैन 1989 बैच के पंजाब कैडर से हैं और मौजूदा प्रमुख रवि सिन्हा की जगह लेंगे, जिनका कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो रहा है। पराग जैन कार्यकाल दो वर्षों के लिए निर्धारित किया गया है।
कौन हैं पराग जैन?
पराग जैन इस समय एविएशन रिसर्च सेंटर (ARC) के डायरेक्टर के रूप में काम कर रहे हैं। खुफिया जगत में उन्हें पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ हुए एक अहम ऑपरेशन ‘सिंदूर’ में निर्णायक भूमिका निभाई थी। इस ऑपरेशन के तहत उन्होंने पाकिस्तान की आर्म्ड फोर्स से जुड़ी गोपनीय जानकारियां जुटाई थीं।अपने करियर में वे कई अहम जिम्मेदारियों को निभा चुके हैं। वे चंडीगढ़ के एसएसपी रह चुके हैं साथ ही कनाडा और श्रीलंका में भारतीय मिशन में सेवाएं दे चुके हैं। जम्मू-कश्मीर में भी उनकी तैनाती हुई थी जहां उन्होंने आतंकवाद विरोधी अभियानों में सक्रिय योगदान दिया। खुफिया और सुरक्षा तंत्र में दो दशक से अधिक का अनुभव रखने वाले पराग जैन अब देश की सबसे अहम खुफिया एजेंसी का नेतृत्व करेंगे।जैन, भटिंडा, मानसा, होशियारपुर में SSP, चंडीगढ़ SSP और लुधियाना DIG रहे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने और बालाकोट ऑपरेशन के दौरान अहम भूमिका निभाई. वह पंजाब में DGP भी रह चुके है।
रॉ चीफ की सैलरी और सुविधाएं
रॉ के प्रमुख की सैलरी केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव स्तर के अधिकारियों के समान होती है। उन्हें हर महीने लगभग 2.5 लाख रुपये वेतन मिलता है। इसके साथ-साथ महंगाई भत्ता (DA), आवास भत्ता (HRA), यात्रा भत्ता (TA) और मेडिकल जैसी सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। इन सभी सुविधाओं को मिलाकर उनकी कुल मासिक आय 3.5 लाख रुपये से 4 लाख रुपये तक हो सकती है।
रॉ चीफ की जिम्मेदारियां क्या होती हैं?
रॉ का चीफ देश की बाहरी खुफिया जानकारी जुटाने, विदेशी रणनीतिक मामलों पर नजर रखने और आतंकवाद से जुड़े अंतरराष्ट्रीय खतरों से निपटने की रणनीति बनाने का काम करता है। देश की सुरक्षा नीति और गुप्त अभियानों में उनकी भूमिका बेहद अहम होती है। इसके अलावा, अन्य देशों के साथ खुफिया आदान-प्रदान और विदेशों में मौजूद भारतीय खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना भी रॉ चीफ की जिम्मेदारियों में शामिल होता है।
सुपर जासूस’ के नाम से पहचान रखने वाले
इंटेलिजेंस सर्किल में आईपीएस पराग जैन को ‘सुपर जासूस’ भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि वो HUMINT यानी इंसानों की मदद से खुफिया जानकारी निकालने के साथ-साथ, TECHINT यानी तकनीक की मदद से खुफिया जानकारी जुटाने में भी सक्षम हैं। पावर कॉरिडोर और खुफिया हलकों में ‘सुपर जासूस’ के रूप में चर्चा में रहने वाले पराग जैन अपने साथ RAW में इंसान आधारित खुफिया इंटेलिजेंस (HUMINT) और तकनीक आधारित खुफिया इंटेलिजेंस (TECHINT) का अनुभव लेकर आ रहे हैं। वे अपने कामकाज के दौरान दोनों इंटेलिजेंस को बेहद प्रभावी तरीके से मिक्स कर चुके हैं और इसका उपयोग कर चुके हैं।अधिकारियों का कहना है कि यह संयोजन कई हाई स्टेक वाले ऑपरेशनों के लिए महत्वपूर्ण रहा है।
धारा 370 हटाने में अहम योगदान
आईपीएस पराग जैन ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने और बालाकोट एअरस्ट्राइक जैसे महत्वपूर्ण ऑपरेशन में भी योगदान दिया है। उनकी विशेषता विशेष रूप से पाकिस्तान डेस्क को संभालने में रही है।
आईपीएस पराग जैन की RAW में क्या है भूमिका
आईपीएस पराग जैन वर्तमान में रॉ के एविएशन रिसर्च सेंटर (ARC) के प्रमुख हैं, जो हवाई निगरानी समेत अन्य कामों से संबंधित है। भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी जैन अपनी नई भूमिका में रॉ में दो दशकों से अधिक का अनुभव लेकर आए हैं।उनके करियर में पंजाब में आतंकवाद के चरम के दौरान महत्वपूर्ण परिचालन योगदान शामिल है, जहां उन्होंने विभिन्न जिलों में एसएसपी और पुलिस उप महानिरीक्षक के रूप में कार्य किया।
ARC के प्रमुख से RAW चीफ तक का सफर
पराग जैन फिलहाल RAW की एविएशन रिसर्च सेंटर (ARC) के प्रमुख हैं, जो हवाई निगरानी और टोही अभियानों की जिम्मेदारी संभालता है। वर्तमान में वे एजेंसी में दूसरे सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं।
अंतरराष्ट्रीय मिशनों में अहम योगदान
आईपीएस पराग जैन ने श्रीलंका और कनाडा में भारतीय मिशनों में भी सेवाएं दी हैं। इस दौरान उन्होंने विदेशों में सक्रिय खालिस्तानी आतंकी नेटवर्क्स पर नजर रखी और महत्वपूर्ण सूचनाएं सरकार तक पहुंचाईं।
राष्ट्रीय सुरक्षा में निर्णायक योगदान
बता दें कि एक अनुभवी खुफिया अधिकारी के तौर पर पराग जैन ने राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशी खुफिया से जुड़े कई संवेदनशील पदों पर अपनी दक्षता साबित की है। उनकी नियुक्ति से उम्मीद है कि भारत की खुफिया एजेंसी आने वाली चुनौतियों का मजबूती से सामना करेगी। भारत के नए RAW चीफ पराग जैन का नेतृत्व ऐसे समय में होगा जब वैश्विक हालात तेजी से बदल रहे हैं। उनकी एक्सपटीज और अनुभव भारत की रणनीतिक और खुफिया जरूरतों को मजबूती प्रदान करने में सहायक होंगे।
कनाडा और श्रीलंका में कर चुके हैं भारत का प्रतिनिधित्व
वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा व्यवस्थित और विवेकशील बताए जाने वाले जैन ने अपने पूरे करियर में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। उन्हें 1 जनवरी, 2021 को पंजाब में पुलिस महानिदेशक (DGP) के पद पर प्रमोट किया गया था, हालांकि वे तब केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर सेवारत थे और इस प्रकार उन्हें केवल नाममात्र के लाभ ही मिले थे। उन्हें केंद्रीय डीजीपी के समकक्ष पद पर नियुक्त किया गया, जो राष्ट्रीय खुफिया ढांचे में नेतृत्व के लिए उनकी साख को रेखांकित करता है। जैन इससे पहले कनाडा और श्रीलंका में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
RAW क्या होता है?
RAW का पूरा नाम अनुसंधान और विश्लेषण विंग (Research and Analysis Wing – RAW) है । भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) को देश की आंख और कान माना जाता है. इसकी स्थापना 1968 में की गई थी और तब से लेकर अब तक ये एजेंसी भारत की सुरक्षा, रणनीति और विदेशी खुफिया मामलों में अहम भूमिका निभाती आ रही है।
RAW की स्थापना कब हुई?
रॉ का पूरा नाम रिसर्च एंड एनालिसिस विंग है। रॉ भारत की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसी है। 1962 में भारत-चीन युद्ध और 1965 में भारत-पाक युद्ध के बाद रॉ एजेंसी बनाई गई थी।
रॉ एजेंट कैसे बनें
RAW में सीधी भर्ती नहीं होती है । रॉ एजेंट बनने के लिए पहले से किसी अन्य सरकारी सेवा में होना जरूरी होता है। मुख्य रूप से इसके लिए सिविल सेवाओं, सशस्त्र बलों (Army, Navy, Air Force), पैरा मिलिट्री फोर्सेस, IB (इंटेलिजेंस ब्यूरो) और केंद्रीय सेवाओं (IAS, IPS, IRS वगैरह) के अनुभवी अधिकारियों को चुना जाता है. सबसे ज्यादा रिक्रूटमेंट IPS और IB से होती है। इसके अलावा, कई बार RAW के फ्रंट ऑर्गनाइजेशन ‘Research and Analysis Services (RAS)’ के जरिए ग्रुप-A स्तर के अफसरों को डेप्युटेशन पर लिया जाता है।
कैसे होती है भर्ती
RAW में जाने के लिए उम्मीदवार को पहले UPSC सिविल सेवा परीक्षा या फिर Defence Services Examination (CDS) के जरिए किसी प्रतिष्ठित सरकारी सेवा में प्रवेश लेना होता है। इसके बाद उन्हें कुछ सालों तक सेवा का अनुभव हासिल करना होता है. अगर अधिकारी की योग्यता, रिकॉर्ड, गोपनीयता और विश्लेषणात्मक क्षमताएं RAW के मानकों पर खरी उतरती हैं, तो उसे इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के जरिए इंटरनल स्क्रीनिंग प्रोसेस से बुलाया जाता है। कई बार कैबिनेट सचिवालय के अंतर्गत अलग से कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर रिक्रूटमेंट भी की जाती है, लेकिन वो काफी सीमित और गोपनीय होती हैं।
गुमनाम होकर करना होता है काम
इसलिए अगर कोई रॉ एजेंट बनने का सपना देखता है, तो सबसे पहला कदम होता है UPSC, CDS या CAPF जैसी परीक्षा पास करना, फिर सालों तक ईमानदारी से सरकारी सेवा देना और उसके बाद ही चयन प्रक्रिया का हिस्सा बनना रॉ में नौकरी न केवल चुनौतीपूर्ण होती है बल्कि यह एक ऐसा कार्यक्षेत्र है, जहां देश के लिए चुपचाप काम करना सबसे बड़ा सम्मान होता है. बिना किसी शोहरत और बिना किसी खुली पहचान के काम करना होता है ।