परदेशी की 101वीं जयंती पर संगोष्ठी आयोजित
‘साहित्य : चुनौतियां और समाधान’ विषय पर साहित्यप्रेमियों ने रखे विचार
प्रदेश में साहित्य के उत्थान के लिए राजस्थान साहित्य अकादमी प्रतिबद्ध : डॉ. बसंत सिंह सोलंकी
राजस्थान साहित्य अकादमी सचिव डॉ बसंत सिंह सोलंकी रहे मुख्य अतिथि
राजसमंद। स्मार्ट हलचल/राज्य सरकार की राजस्थान साहित्य अकादमी सचिव डॉ बसंत सिंह सोलंकी के मुख्य आतिथ्य में साहित्यकार परदेशी की 101वीं जयंती के उपलक्ष में साकेत साहित्य संस्थान की ओर से सूचना केंद्र में ‘साहित्य : चुनौतियां और समाधान’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। पर्यावरणप्रेमी नानजी भाई गुर्जर, समाजसेवी दिनेश श्रीमाली, राजस्थान साहित्य अकादमी के रामदयाल विशिष्ट अतिथि रहे। कार्यक्रम में जिले के विभिन्न क्षेत्रों से आए साहित्यप्रेमियों ने विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। दिनेश श्रीमाली ने कहा कि साहित्य वर्तमान समय में प्रासंगिक होना चाहिए, कई ऐसे विषय हो सकते हैं जो पुराने समय में प्रासंगिक हो लेकिन आज प्रासंगिक नहीं रह गए हों। साथ ही साहित्यकार की लेखनी बिना किसी दबाव में कार्य करनी चाहिए और एक साहित्यकार को निष्पक्ष होकर अपना लेखन कार्य करना चाहिए। कुसुम अग्रवाल ने बताया कि नई पीढ़ी में साहित्य के प्रति लगाव को बढ़ाना एक चुनौती पूर्ण कार्य है, साहित्य में भाषा की भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि नई पीढ़ी का रुझान अंग्रेजी की तरफ बढ़ता जा रहा है ऐसे में उच्च कोटि के हिंदी साहित्य को अंग्रेजी में अनुवादित कर नई पीढ़ी तक पहुंचाना आवश्यक है। इसी तरह चंद्रशेखर शर्मा, मोहनलाल गुर्जर, सुनील व्यास, डॉ नंदन नंदवाना, सत्यनारायण नागोरी ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन नारायण सिंह राव द्वारा किया गया। वीणा वैष्णव द्वारा मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की गई। कमल अग्रवाल द्वारा साकेत साहित्य संस्थान का परिचय प्रस्तुत किया गया। इसी तरह अन्य वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए।
छगन प्रजापत ने अपने पिता की स्मृति में किए ट्री गार्ड भेंट:
संगोष्ठी के शुभारंभ से पहले सूचना केंद्र परिसर में साहित्य प्रेमी जनों ने कदम, कचनार, अमरूद आदि पौधों का पौधारोपण किया। जिला कलेक्ट्रेट में कार्यरत प्रथम श्रेणी सहायक लेखाधिकारी छगन प्रजापत ने अपने पिता रामनारायण प्रजापत की स्मृति में सूचना केंद्र में पांच ट्री गार्ड भेंट किए ताकि ये पौधे सुरक्षित रूप से बड़े होकर वृक्ष का रूप ले सकें। ट्री गार्ड भेंट करने पर कार्यक्रम में प्रजापत का अभिनंदन अतिथियों द्वारा किया गया।
साहित्य की अनेक विधाओं में परदेशी का है प्रचुर साहित्य:
परदेशी ने नौ वर्ष की उम्र में परदेशी उपनाम रखकर लेखन आरंभ किया। चौदह वर्ष की उम्र में परदेशी का लिखा ‘चितौड़’ खंड काव्य प्रकाशित हुआ, जिसकी राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने काफी प्रशंसा की थी। परदेशी ‘भारत सोवियत मैत्री संघ’ और ‘प्रगतिशील लेखक संघ, मुम्बई’ के संस्थापक सदस्य थे। 1954 में धर्मयुग में प्रथम उपन्यास ‘चट्टानें’ धारावाहिक प्रकाशित हुआ। 1962 में राजस्थान साहित्य अकादमी ने परदेशी के उपन्यास ‘जय महाकाल’ को सर्वश्रेष्ठ उपन्यास का पुरस्कार दिया। 1939 से 1947 की अवधि में सोलह काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिवर्ष परदेसी की स्मृति में ‘परदेसी साहित्य सम्मान’ भी प्रदान किया जाता है।
परदेशी ने उपन्यास, कहानियां, राजनीति, धर्म दर्शन, बाल साहित्य, सभी विधाओं में लिखा है। वे अपने कुछ उपन्यासों के कारण काफी चर्चित रहे हैं। परदेशी के प्रमुख उपन्यायों में चट्टानें (1954), पाप की पुजारिन, न्याय के सींग (1974 में ‘रंग’ में धारावाहिक), कच्ची धूप (1954 में ‘मानव मासिक’ में धारावाहिक), दूध के बादल, औरत, रात और रोटी (1956), भगवान बुद्घ की आत्मकथा, औरत एक : चेहरे हजार (1954 में ‘गोरी’ में धारावाहिक), बड़ी मछली : छोटी मछली (1958), जय महाकाल (1961), त्याग का देवता (1965), सपनों की जंजीरें (1961), मैला सपना, जय एकलिंग, कुआरी किरण, जयगढ़ का जोगी, आत्मसिद्धा, काला सोना, मोम की पुतली, सिंदूर की हथकडिय़ां आदि शामिल है।