स्मार्ट हलचल/बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की टेंशन बढ़ी हुई है। इस टेंशन की वजह विपक्षी दल नहीं बल्कि सरकार में प्रमुख सहयोगी दल और बिहार के सीएम नीतीश कुमार हैं। नीतीश कुमार का अप्रत्याशित और ‘अनियमित’ व्यवहार जारी रहने के कारण भाजपा “किंकर्तव्यविमूढ़” है । बताया जाता है कि भाजपा का एक धड़ा उनके ‘खराब स्वास्थ्य’ के नतीजों को लेकर चिंतित है। हालांकि पार्टी उनके नेतृत्व में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने पर अड़ी हुई है।
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार उस स्थान को प्राप्त कर चुके हैं जहां पहुंचने का नसीब विरलों को ही मिलता है। फिलहाल देश की समकालीन राजनीति में देखें तो अजातशत्रु कहलाने का दावा केवल नीतीश कुमार ही कर सकते हैं। खुद लालू परिवार आज चौतरफा नीतीश कुमार पर हमले कर रहा है। पर नीतीश कुमार का साथ पाने के लिए परिवार के लोग अलग विचार रखते हैं। नीतीश कुमार तमाम विरोध के बावजूद अपने विरोध के स्तर को कम से कम लालू परिवार के लिए बहुत निचले स्तर पर नहीं ले जाते हैं। जबकि आरजेडी के साथ गठबंधन खत्म होने के बाद एक दौर ऐसा था तेजस्वी कितने दिनों तक एक्स पर लगतार नीतीश के लिए बहुत ही अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते रहे। नीतीश कुमार देश के एक मात्र ऐसे नेता हैं जिनके पक्ष और विपक्ष दोनों में बराबर शुभचिंतक हैं। एनडीए के खिलाफ इंडिया गठबंधन को धरातल पर लाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। जब से नीतीश कुमार ने इंडिया गुट को छोड़ा तब से लगातार यह गठबंधन कमजोर होता गया।यह नीतीश के व्यक्तित्व का ही कमाल है कि सिर्फ 2 परसेंट सजातीय वोट के साथ वे बिहार की राजनीति में 3 दशकों से सेंटर ऑफ अट्रेक्शन बने हुए हैं।
इस सबके बावजूद किसके दिन कब फिरते है और कब वह विवादों के घेरे में फंस जाता है कहा नहीं जा सकता । नीतीशकुमार भी कुछ समय से विवादों के घेरे में है । ताजा विवाद गुरुवार को पटना में हुआ। सेपक टकराव विश्व कप 2025 के उद्घाटन के बाद राष्ट्रगान की घोषणा होने पर कुमार अचानक मंच से उतर गए और प्रतिभागियों से हाथ मिलाने लगे। बाद में जब राष्ट्रगान बजा तो वे मुस्कुराते हुए खड़े हो गए और खड़े लोगों की ओर हाथ हिलाया।राष्ट्रगान का अपमान करने के कारण कुमार को राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में विपक्ष की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। उनके इस हालिया कृत्य ने खूब वाहवाही बटोरी और विपक्षी दलों, राजद और कांग्रेस को आगामी राज्य चुनावों में इसका फायदा उठाने का मौका दे दिया, उनका तर्क है कि उनके स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए उन्हें एक और कार्यकाल नहीं दिया जा सकता।
सूत्रों ने कहा कि भाजपा को जेडीयू और एलजेपी के साथ एक और कार्यकाल जीतने का भरोसा है, लेकिन पार्टी की चिंता यह है कि सार्वजनिक रूप से कुमार के अप्रत्याशित व्यवहार ने अक्सर विरोधियों को मौका दिया है। हालांकि, पार्टी का मानना है कि कुमार एक मूल्यवान भागीदार बने रहेंगे और आरजेडी के ‘जंगल राज’ की यादें ‘सत्ता विरोधी भावना’ की किसी भी संभावना को खत्म कर देंगी।
नीतीशकुमार का व्यवहार एक समान नहीं रहा है। ऐसे दिन भी आए हैं जब कोई दुर्घटना नहीं हुई और वे नियंत्रण में दिखे, जैसे कि उनकी ‘प्रगति यात्रा’ के दौरान, भले ही वे कई दिनों तक लोगों की नजरों में रहे हों। लेकिन ऐसे भी दिन आए जब कुमार ने इस तरह का व्यवहार किया कि उनके विरोधियों ने उनका मजाक उड़ाया और उनके समर्थकों को इसे सही ठहराना मुश्किल हो गया। भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा कि हमें उम्मीद है कि नीतीश कुमार अपने उतार-चढ़ाव भरे तरीकों से उबरेंगे।
राष्ट्रीय जनता दल की सांसद मीसा भारती ने शुक्रवार को उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सोचना चाहिए कि बिहार किसके हाथ में है। भारती ने कहा कि राष्ट्रगान के दौरान बिहार के सीएम नीतीश कुमार शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक नहीं दिखे। मैं पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पूछना चाहती हूं कि क्या आपको उनकी मानसिक स्थिति ठीक लगी। वह हर दिन महिलाओं, बच्चों का अपमान करते रहते हैं। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सोचना चाहिए कि बिहार किसके हाथ में है।
कहा तो यहाँ तक जाता है कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार की सेहत ठीक नहीं है। वे अपने को बीमार भले न बताएं या मानें, पर यह सत्य अब छिपा नहीं है। पटना में चल रहे एक अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन के वक्त होने वाले राष्ट्रगान के दौरान नीतीश कुमार की असामान्य हरकत सबने देखी ऐसी घटनाएँ लंबे समय से चली आ रही इस आशंका की पुष्टि हुई कि वे मानसिक तौर पर सहज और सचेत नहीं हैं। उनकी बीमारी का पहला संकेत तो उसी दिन सार्वजनिक हो गया था, जब दो साल पहले उन्होंने अपने जनता दरबार में खुद को ही खोजना शुरू किया था। वे बार-बार अपने अधिकारियों से गृह मंत्री को बुलाने की जिद कर रहे थे। अधिकारी भी हतप्रभ थे। किसी की यह कहने की हिम्मत नहीं हुई कि जिसे आप खोज रहे हैं, वह तो आप खुद हैं। नीतीश कुमार ही सीएम की जिम्मेवारी के साथ गृह मंत्री भी हैं। अधिकारियों और नीतीश के करीबी नेताओं ने इतना भर ही किया कि जनता दरबार का सिलसिला रोक दिया गया।
पता नहीं, इस बीमारी का पता चलने पर उनकी पार्टी जेडीयू के नेताओं या सरकार में शामिल भाजपा के नेताओं ने भी क्यों उनके इलाज की जरूरत नहीं समझी। संभव है कि उनका इलाज हो भी रहा हो, लेकिन इस बारे में कभी किसी ने कोई जानकारी बिहार की 13 करोड़ जनता को देने की जरूरत नहीं समझी। नतीजतन नीतीश कुमार की असामान्य हरकतें बढ़ती गईं। विपक्ष ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना लिया है। सत्ता पक्ष उन्हें फिट साबित करने का अनावश्यक प्रयास कर रहा है। जहां नीतीश कुमार को अपनी इस हालत के लिए सहानुभूति की जरूरत है, वहां उन्हें दुत्कारने की कोशिश विपक्ष की ओर से हो रही है।
नीतीश कुमार के बारे में लोगों की यह आम धारणा रही है कि वे गंभीर नेता हैं। नपे-तुले और सधे शब्दों में अपनी बातें रखने वाले नीतीश के स्वभाव में अचानक आए इस परिवर्तन को विपक्ष ने राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने राष्ट्रगान के वक्त नीतीश कुमार की हरकतों को राष्ट्रगान का अपमान माना है और इसे राष्ट्रवाद से जोड़ कर उन्हें कठघरे में ख़ड़ा करने की कोशिश की है। उनके बेटे तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार को बीमार बता कर उनका उपहास उड़ा रहे हैं। लालू की पत्नी और बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी के स्वर में जरूर व्यंग्यात्मक सहानुभूति दिखती है। उन्होंने कहा है कि नीतीश कुमार को अब सीएम पद छोड़ देना चाहिए। उन्हें अपने बेटे निशांत को ही सीएम बना देना चाहिए।
नीतीश कुमार की असामान्य हरकतों का कुछ हद तक एहसास तब भी हुआ था, जब 2020 के चुनाव में उनकी झुंझलाहट लोगों ने पहली बार महसूस की। नार्थ बिहार की एक सभा में जब कुछ लोगों ने उनके खिलाफ नारे लगाए तो वे भड़क गए थे। उन्होंने कहा था कि वोट देना है तो दीजिए, वर्ना उनकी सभा से चले जाइए। उन्हीं दिनों उन्होंने यह भी कह दिया था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। तेजस्वी यादव ने जब पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख लोगों को नौकरी देने की घोषणा की, तब भी नीतीश तिलमिलाए थे। उन्होंने कहा था कि नौकरी के लिए तेजस्वी क्या पैसा अपने बाप के घर से लाएंगे। तब इन बातों को चुनावी प्रतिस्पर्धा में चलने वाले शब्दवाण मान कर लोगों ने उनमें आए बदलाव को खारिज कर दिया था। उसी वक्त इस पर ध्यान दिया गया होता तो शायद स्थिति आज इतनी नहीं बिगड़ती।
भाजपा नेताओं की बोलती अब बंद है। जेडीयू नेता भी समस्या की गंभीरता का हल निकालने के बजाय नीतीश को राष्ट्रवादी साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा करते वक्त वे भूल जा रहे हैं कि इसे न नीतीश कुमार के साथ उचित व्यवहार कहा जा सकता है और न बिहार की जनता के साथ यह न्याय ही है। नीतीश कुमार को बेहतर इलाज की जरूरत है, न कि बचाव की। भाजपा को भी साफ मन से यह सोचने की जरूरत है कि सिर्फ चुनावी लाभ के लिए नीतीश कुमार को सीएम बनाए रखना अच्छा नहीं। जेडीयू का दुर्भाग्य यह है कि नीतीश कुमार अब तक जेडीयू में सुप्रीमो की भूमिका में रहे हैं। उनके बारे किसी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं। नीतीश के इर्द-गिर्द रहने वाले अधिकारी भी स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ पा रहे हैं।
नीतीश कुमार के स्वभाव में बदलाव 2020 से लगातार दिखते रहे हैं। अशोक चौधरी के घर श्रद्धांजलि सभा में पहुंचे नीतीश ने उन पर ही फूल उछाल दिए थे। एक मौके पर तो उन्होंने अशोक चौधरी और विजय सिन्हा के सिर टकरा दिए थे। इसी साल महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर वे सैल्यूट के वक्त ताली बजाने लगे थे। कभी पीएम मोदी तो कभी भाजपा नेता रविशंकर के पैर छूने की उन्होंने कोशिश की। अफसरों के आगे हाथ जोड़ने या पैर छूने के प्रयास भी उन्होंने किए। महिलाओं के बारे में सदन और सदन के बाहर उन्होंने असहज टिप्पणी की। हालांकि बाद में उन्होंने अपनी गलती मान कर माफी भी मांगी थी। उनकी इन हरकतों की वजह से ही शायद अधिकारियों ने उनके कार्यक्रमों से मीडिया को दूर रखना शुरू किया। वे तो मीडिया के लोगों के सामने भी एक बार हाथ जोड़ते नजर आए थे।
बहरहाल भाजपा के सामने यह भी सचाई है कि बिहार में आज की तारीख में कम सीटों के साथ सरकार चलाने की ताकत किसी में नहीं है। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के पास भाजपा से कम विधायक हैं। इसी तरह आरजेडी से भी जेडीयू के विधायक कम हैं। पर भाजपा हो या आरजेडी मुख्यमंत्री बनाने के लिए सभी नीतीश कुमार की ओर ही देखते हैं। यह नीतीश कुमार का जादू ही है कि अगर वो एक बार आरजेडी के साथ जाने की बात कर दें तो उनकी सभी गलतियों को परिवार माफ कर देगा।आश्चर्य की बात यह है कि भाजपा हो या जेडीयू-आरजेडी किसी के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जिसके चलते नीतीश कुमार को इग्नोर किया जा सके। नीतीश अगर बीमार हैं तो भी अन्य नेताओं के मुकाबले उनकी स्थिति बेहतर है। इसलिए उनके रिजाइन करने की बात बेमानी हो जाती है।आरजेडी भले ही मांग कर रही है कि नीतीश कुमार रिजाइन कर दें। पर आरजेडी नेताओं को पता है कि नीतीश कुमार की जगह कोई दूसरा लेता है तो वो उनके लिए और मुश्किल होनी तय है।