ब्यावर की सड़कों पर रात होते ही एक और शहर जाग उठता है – यह है शराब माफिया का अंधेरा साम्राज्य, जिसे पालने-पोसने वाले हैं कुछ भ्रष्ट अधिकारी, दलाल ठेकेदार और एक बेबस प्रशासन।
सरकारी आदेश कहता है – “रात 8 बजे शराब दुकान बंद।”
जमीनी हकीकत कहती है – “शटर बंद, खिड़की चालू… और बिक्री जारी!”
खुला खेल फर्रुखाबादी – शटर के पीछे बार, नाबालिगों को शराब और अफसरों की आंखों पर पट्टी!
यह कैसा कानून है जो सिर्फ कागजों में जिंदा है?
कैसा प्रशासन है जिसे सब पता है, लेकिन कुछ होता नहीं?
स्मार्ट हलचल|दुकानों में बनाई गई खुफिया खिड़कियां, जहां से रातभर बिकती है शराब। नाबालिग लड़कों को खुलेआम बोतलें दी जाती हैं और “बैठ के पीने” की सुविधा भी लाइसेंस के बिना धड़ल्ले से चल रही है।
प्रश्न उठता है –
क्या ये सब बिना “ऊपर” तक सेटिंग के मुमकिन है?
सरकारी टारगेट और ठेकेदारों की चालबाजियां
सरकार कहती है – “बिक्री कम हुई!”
हकीकत – “बिक्री तो खूब हुई, पर बिल नहीं बने!”
मतलब, सरकार को चुना लगाया गया – और कमीशन गया सीधे जेबों में!
ऐसे में दो ही सच्चाई सामने हैं:
1. सरकार चाहती है कि लोग ज़्यादा पीएं ताकि राजस्व बढ़े।
2. या फिर ठेकेदार, अफसरों से सेटिंग करके दो नंबर की शराब बेच रहे हैं।
अफसरों की चुप्पी – किसके इशारे पर?
जब शराब माफिया खुलेआम बोलता है –
“थाना-चौकी, आबकारी सब सेट हैं, सबकी मंथली सेट है,हमें कोई नहीं छू सकता…” हम …..ग्रुप की दुकान चलाते हैं।
तो यह बयान नहीं, सीधी चुनौती है प्रशासन को!
ये हैं वो धाराएं, जिनमें सबको घसीटा जा सकता है:
IPC 272 – ज़हरीली/अवैध शराब या नाबालिगों को शराब देना
Excise Act 24, 32, 42 – समय सीमा का उल्लंघन, बिना लाइसेंस के बार(बैठा कर शराब पिलाना) संचालन
IPC 166,420 (BNS 198,318) – सरकारी अफसरों की लापरवाही और धोखाधड़ी
लेकिन सवाल यह है –
क्या ये धाराएं सिर्फ आम जनता के लिए हैं?
किस अफसर की जेब में जा रहा है रिश्वत का पैसा?
शटर के पीछे शराब कैसे बिक रही है – क्या CCTV अंधे हो गए हैं?
हर दिन हो रही राजस्व की चोरी का जिम्मेदार कौन?
यह सिर्फ शराब नहीं, जनता के अधिकारों की लूट है। अगर अब भी अफसर और नेता चुप रहे, तो अगली खबर किसी बड़ी जनक्रांति की होगी।
ब्यावर की जनता “अब नहीं सहेंगी – ठेकेदार, अफसर और माफिया का मिलाजुला तमाशा!”