अंजनी सक्सेना
“सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालम् ओंकारं अमलेश्वरम्॥
स्मार्ट हलचल|श्री शिवमहापुराण के इस श्लोक में “ओंकारं अमलेश्वरम्” का उल्लेख है, जो यह दर्शाता है कि ओंकारेश्वर (और इसके सह स्वरूप ममलेश्वर) एक ही दिव्य शक्ति के रूप हैं।
“ओंकारतीर्थमासाद्य सर्वपापैः प्रमुच्यते।
नर्मदातटमासाद्य शिवलोकं स गच्छति॥”
स्कंद पुराण के रेवाखंड में नर्मदा महात्म्य में भी ओंकारेश्वर तीर्थ की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसमें कहा गया है कि नर्मदा तट पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग समस्त पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। जो ओंकार तीर्थ की यात्रा करता है वह समस्त पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त करता है।
भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से चतुर्थ श्रीओंकारेश्वर मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के ओंकार पर्वत पर विराजमान हैं। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की विराट और विशाल महिमा का वर्णन अनेक शास्त्रों और पुराणों में मिलता है। भगवान महादेव के यहां ज्योतिर्लिंग के रुप में विराजमान होने को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैंँ
विंध्याचल पर्वत की कहानी
एक बार नारदजी भ्रमण करते हुए विंध्याचल पर्वत पर पहुँचे। वहाँ पर्वतराज विंध्याचल ने नारद का स्वागत किया और कहा, “मैं सर्वगुण संपन्न हूँ, मेरे पास सब कुछ है, सभी प्रकार की सम्पत्तियाँ हैं।”
विंध्याचल के गर्व भरे शब्द सुनकर नारद जी चुपचाप खड़े रहे। तब विंध्याचल ने नारद से पूछा कि उन्हें मुझमें क्या कमी नज़र आई?
तब नारद बोले, “आपके पास सब कुछ है, लेकिन आप सुमेरु पर्वत से ऊँचे नहीं हैं।”उस पर्वत का भाग देवताओं के लोक में पहुँच गया है, और तुम्हारे शिखर का भाग वहाँ कभी नहीं पहुँचेगा।” यह कहकर नारदजी वहाँ से चले गए। किन्तु यह सुनकर विंध्याचल को बहुत दुःख हुआ और तभी उन्होंने भगवान शिव की आराधना करने का निश्चय किया। जहाँ साक्षात ओंकार विद्यमान है, वहाँ उन्होंने शिवलिंग स्थापित किया और प्रसन्न मन से छह महीने तक निरंतर आराधना की। इससे भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और वहाँ प्रकट
होकर उन्होंने कहा, “मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम कोई भी वरदान माँग सकते हो।”
तब विंध्य ने कहा, “आप मुझ पर सचमुच प्रसन्न हैं, अतः मुझे बुद्धि दीजिए जिससे आपका कार्य सिद्ध हो सके।” तब भगवान शिव ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम जिस प्रकार का कार्य करना चाहते हो, वह पूर्ण होगा।
वरदान देने के बाद कुछ देवता और ऋषिगण भी वहाँ आ गए और भगवान शिव से प्रार्थना की कि, “हे प्रभु! आप सदैव यहीं रहेंगे।”तब लोक कल्याण करने वाले भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया और वह ओंकार लिंग दो लिंगों में विभाजित हो गया। विंध्य पर्वत द्वारा निर्मित पार्थिव लिंग को परमेश्वर लिंग और भगवान शिव द्वारा स्थापित लिंग को ओंकार लिंग कहा जाता है। परमेश्वर लिंग को अमलेश्वर लिंग भी कहते हैं और तभी से ये दोनों शिवलिंग इस धराधाम में प्रसिद्ध हैं।
राजा मान्धाता की कहानी
राजा मान्धाता ने भी इस पर्वत पर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और प्रकट हुए। तब राजा मान्धाता ने भगवान शिव से सदा के लिए यहीं विराजमान होने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने राजा मान्धाता का अनुरोध स्वीकार कर लिया इसीलिए इस नगरी को ओंकार-मांधता भी कहा जाता है।
देवताओं और दैत्यों के संघर्ष की कहानी
देवताओं और दानवों के युद्ध में एक बार दानवों ने देवताओं को पराजित कर दिया। देवता इसे सहन नहीं कर सके और दुखी होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। उनकी भक्ति देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए तथा दानवों को पराजित किया।
कुबेर के स्नान की कथा
भगवान शिव ने अपनी जटाओं से कावेरी नदी का निर्माण किया था, जिसमें कुबेर ने स्नान किया था। कावेरी नदी ओंकार पर्वत के चारों ओर बहती हुई यहीं नर्मदा नदी में मिल जाती है। इसलिए यहां पहले कुबेर के दर्शन किए जाते हैं। इसे नर्मदा और कावेरी का संगम कहा जाता है।
शिव पार्वती खेलते हैं चौपड़
एक अन्य मान्यता यह भी है कि शिव-पार्वती नर्मदा तट पर चौपड़ ( साँप-सीढ़ी या लूडो जैसा खेल) खेलते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि रात्रि के समय जब मंदिर परिसर में कोई नहीं होता, तब भगवान शिव और माता पार्वती यहां चौपड़ खेलते हैं। रात्रि में भगवान की शयन आरती के पश्चात मंदिर के पुजारी चौपड़ की गोटियाँ और उनके पांसे जमाकर रख देते हैं। प्रातः काल जब पुजारी मंदिर के गर्भ गृह में पहुंचते हैं तो ये गोटियां और पांसे ऐसे बिखरे हुए मिलते हैं जैसे कोई अभी अभी चौपड़ खेलकर गया हो।
यह मान्यता भगवान शंकर के प्रति उनके भक्तों के भक्ति भाव और श्रद्धा से जुड़ा एक प्रतीक है जो यह बताता है कि यह स्थान आज भी देवाधिदेव महादेव की दिव्य उपस्थिति का केंद्र है।