Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगक्या हुआ 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के नारे का ?

क्या हुआ ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के नारे का ?

>अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/चुनाव आयोग ने शुक्रवार को हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा कर दी। कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड के लिए चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा न किये जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ महज नारा है।कांग्रेस नेता के अनुसार “हमने सोचा था कि चारों राज्यों के चुनावों की घोषणा हो जाएगी, क्योंकि गुरुवार को प्रधानमंत्री ने लाल किले से बहुत ऊंची आवाज में कहा था कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लागू करना बहुत जरूरी है। अगर वह इन चारों राज्यों के लिए एक साथ चुनाव नहीं करा सकते तो ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का नारा क्यों देते हैं।”
कांग्रेस का यह भी कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर के लोग शिकायत कर रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीन लिया गया है। कांग्रेस पार्टी इस मांग में उनके साथ खड़ी है। इसके उलट जम्मू-कश्मीर में एलजी की शक्तियों को बढ़ा दिया गया है। यह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है और “हम इसी मुद्दे पर पूरा चुनाव लड़ेंगे”।
चुनाव आयोग के अनुसार महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों को फिलहाल टाल दिया गया है। इसके दो कारण बताए जा रहे- पहली वजह जम्मू-कश्मीर के चुनाव हैं और दूसरा कारण महाराष्ट्र के कई इलाकों बाढ़ के हालात हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि इन्हीं दो वजहों से महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव कराना अभी मुश्किल है। आपको याद होगा कि 2019 में महाराष्ट्र और हरियाणा में एक साथ चुनाव हुए थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। इसके साथ ही अलग-अलग राज्यों में करीब 50 सीटों पर उपचुनाव भी वेटिंग लिस्ट में है।भले ही महाराष्ट्र और झारखंड में अभी चुनाव घोषित नहीं किया गया है, इसका मतलब ये नहीं है कि दोनों राज्यों में चुनाव ज्यादा देर से होंगे। महाराष्ट्र में 26 नवंबर 2024 तक और झारखंड में 5 जनवरी 2025 तक नई विधानसभा का गठन होना जरूरी है। झारखंड के पास थोड़ा समय है, लेकिन महाराष्ट्र के पास नहीं। यही कारण है कि महाराष्ट्र के चुनाव अक्सर हरियाणा के साथ ही कराए जाते हैं। हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 को समाप्त हो रहा है, जो महाराष्ट्र से कुछ ही दिन पहले है। दिल्ली में 23 फरवरी 2025 तक नई विधानसभा का गठन होना है, जो झारखंड की समय सीमा के एक महीने बाद है।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि महाराष्ट्र चुनाव को इस बार अलग से क्यों कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का चुनाव कार्यक्रम एक नया पहलू है जो 2019 के चुनावी चक्र में नहीं था। जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने से सुरक्षा के मद्देनजर कई चुनौतियां हैं। हाल ही में हुए आतंकी हमलों और एक दशक बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, भारत निर्वाचन आयोग के पास बहुत काम है। इसलिए भारत निर्वाचन आयोग अभी सिर्फ हरियाणा जैसे छोटे राज्य में ही चुनाव करा पाएगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने दूसरा कारण बताते हुए कहा कि महाराष्ट्र में बाढ़ ने ब्लॉक स्तरीय अधिकारियों के काम को प्रभावित किया है। इससे राज्य में मतदाता सूची से जुड़ी कुछ प्रक्रियाओं में देरी हुई है। उम्मीद है कि जल्द ही यह काम पूरा हो जाएगा। हालांकि, वरिष्ठ भारत निर्वाचन आयोग अधिकारी महाराष्ट्र और झारखंड दोनों जगहों का दौरा कर चुके हैं, लेकिन मुख्य चुनाव आयोग राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू के नेतृत्व में पूरा आयोग अभी तक समीक्षा के लिए इन दोनों राज्यों का दौरा नहीं कर पाया है।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के दूसरे पहलु को देखें तो प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के लालकिले से घोषणा के बाद ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ यानी वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर चर्चा अब अपने चरम पर हो गई है। जबकि इसकी संभावना पर विचार करने के लिए बनी उच्चस्तरीय समिति ने भी हाल ही में को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। 191 दिनों में तैयार हुई 18,626 पन्नों की इस रिपोर्ट में 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति को साझा किए थे ।
सबसे बड़ी बात कि इसमें 32 राजनीतिक दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है। अब सवाल उठता है कि क्या इस रिपोर्ट के बाद देश में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए रास्ता साफ हो जाएगा या फिर अभी इसे कई संवैधानिक सवालों की कसौटी पर खरा उतरना होगा? इसके अलावा इस आर्टिकल में हम ये भी जानेंगे कि एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में होंगे कितने संशोधन करने होंगे और अगर ऐसा हो गया तो इस प्रक्रिया को लागू होने से देश का कितना पैसा बचेगा।
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ ये स्लोगन ही अपने आप में इस सवाल का जवाब है। आसान भाषा में समझाएं तो वन नेशन वन इलेक्शन का अर्थ है एक साथ सभी राज्यों के विधानसभा और देश का लोकसभा चुनाव संपन्न हो जाए। दुनिया के कई देशों में ऐसा पहले से हो रहा है। यहां तक कि भारत में भी 1967 तक लोकसभा और राज्यों के विधानसभा का चुनाव एक साथ ही संपन्न होता था।
जबकि, फिलहाल की बात करें तो स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, फिलीपींस, बोलिविया, कोलंबिया, कोस्‍टोरिका, ग्वाटेमाला, गुयाना और होंडुरास जैसे देशों में भी राष्ट्रपति प्रणाली के तहत राष्ट्रपति और विधायी चुनाव एक साथ होते हैं। यहां तक कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान का फॉर्मेट भी काफी हद तक वन नेशन वन इलेक्शन जैसा ही है।
सवाल यह भी है कि अगर देश में वन नेशन वन इलेक्शन वाला फॉर्मेट लागू करना है तो फिर इसके लिए संविधान में कितने संशोधन करने होंगे। रिपोर्ट्स की मानें तो वन नेशन वन इलेक्शन को देश में लागू करने के लिए संविधान में कम से कम 18 संशोधन करने होंगे। इसके अलावा अनुच्छेद 325 और 324 ए में भी बदलाव करने होंगे।वहीं बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा था कि अगर सरकार देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना चाहे तो इसके लिए संविधान के 5 अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा। इसके अलावा विधानसभाओं के कार्यकाल और राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रावधानों को भी बदलना होगा।
वन नेशन वन इलेक्शन से देश का कितना पैसा बचेगा ये जानने से पहले समझ लीजिए कि भारत में चुनाव कराने में कितना पैसा खर्च होता है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में जब लोकसभा के चुनाव हुए थे तो उसमें 55000 करोड़ रुपए का खर्च आया था। वहीं इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 के लोकसभा चुनाव में 1115 करोड़ का खर्च हुआ था। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में 3870 करोड़ का खर्च हुआ था।
वहीं साल 2022 में जब पांच राज्यों के चुनाव हुए थे तब चुनाव आयोग ने पंजाब, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, गोवा और उत्तराखंड में हुए विधानसभा चुनावों में हुए खर्च की जानकारी देते हुए बताया था कि इन राज्यों के चुनाव में 500 करोड़ से ज्यादा की रकम सिर्फ चुनाव प्रचार में ही खर्च हो गई थी। अब आते हैं इस सवाल पर कि अगर देश में सभी चुनाव एक साथ करा दिए जाएं तो फिर कितना खर्च बच सकता है।इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें लॉ कमीशन की एक रिपोर्ट पर नजर डालनी होगी, जिसमें कहा गया था कि अगर 2019 के लोकसभा चुनाव और देश के अलग-अलग राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ करा दिए जाएं तो 4500 करोड़ का खर्च और ज्यादा बढ़ जाएगा। हालांकि, इसके बाद धीरे-धीरे ये खर्च कम होने लगेगा और लेकिन, ये खर्च कितना कम होगा इसके बारे में कोई ठोस शोध फिलहाल मौजूद नहीं है।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
logo
AD dharti Putra
RELATED ARTICLES