अशोक मधुप
स्मार्ट हलचल|भारत के चार दिवसीय आपरेशन सिंदूर को लेकर हुए युद्ध विराम की सबसे बड़ी बात यह है कि भारत और पाकिस्तान दोनों अपनी −अपनी सफलता पर प्रसन्न है। दोनों जश्न मना रहे हैं, किंतु इस युद्ध से सबसे ज्यादा लाभ भारत को हुआ है, और सबसे ज्यादा नुकसान युद्ध से दूर खड़े होकर तमाशा देख रहे चीन को । भारत युद्ध में अपने शस्त्रों विशेषकर मिजाइलों की गुणवत्ता और सटीकता को पूरी दुनिया में साबित करने में कामयाब रहा। इससे भारत में बनी रक्षा प्रणालियों और हथियारों को लेकर माँग अब बढ़ेंगी। हालाकि चीन युद्ध में शामिल नही था किंतु पाकिस्तान उसके अस्त्र −शस्त्रों के बल पर जंग के मैदान में था।चीन के बने उपकरण पहले ही अपनी निम्न क्वालिटी के लिए प्रसिद्ध थे।इस युद्ध में तो उनके निराशाजनक प्रदर्शन ने और चीन के सामान की शाख मिट्टी में मिला दी। चीन अब सफाई में भले ही यह कह रहा है कि उसके उपकरण सही हैं, पाकिस्तानी सैनिकों पर उन्हें चलाना नही आया। चीन अब कुछ भी सफाई ने किंतु कोई भी देश अब ये मानने को तैयार नही कि चीन के शस्त्र किसी काम के हैं। इस चार दिनी युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान चीन को हुआ।चीन अब कुछ भी तर्क दे, कोई भी दावा करे, अब कोई उसकी बात पर यकीन करने वाला नही है।
पाकिस्तान वर्तमान में चीन के बनाए हुए HQ-16 और HQ-9 एयर डिफेन्स सिस्टम का इस्तेमाल करता है। HQ-9 जहाँ 125 किलोमीटर तो HQ-16 लगभग 50 किलोमीटर की रेंज वाला एयर डिफेन्स सिस्टम है। पाकिस्तान के लिए चीन ने इसमें बदलाव किए , इसके बावजूद इसका कोई फायदा नहीं हुआ है।ये सिस्टम न तो भारत के द्रोण रोक सके और नही मिजाइल।यह एक भी भारतीय मिसाइल, ड्रोन या लोइटेरिंग म्युनिशन नहीं पकड़ पाए। भारत ने तो इन डिफेन्स सिस्टम को ही तबाह कर दिया। चीन ने पाकिस्तान को जेएफ−17 लड़ाकू विमान भी बेचा । पाकिस्तान को इसका भी कोई लाभ न मिल सका।पाकिस्तान ने भारत पर हमले के लिए चीन में बने ड्रोन का भी इस्तेमाल किया था। रिपोर्ट्स बताती हैं कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ चीन के विंग लूँग और CH-II ड्रोन इस्तेमाल किए थे। इन्हें भी भारत ने सीमा पर ही मार गिराया है। इनमें से कोई भी ड्रोन भारत के किसी टार्गेट को हिट नहीं कर पाया।
हम जानते हैं कि चीन भारत का प्राकृतिक शत्रु देश है । कितना भी कर लें वह भारत का मित्र नही हो सकता। वह पाकिस्तान का मित्र देश है और आज पाकिसतान को शस्त्र देने वाला सबसे बड़ा आपूर्ति करता देश। इतना जानने के बावजूद हम भारतवासी सस्ते के चक्कर में चीन का बना सामान धड़ल्ले से खरीदते हैं।कभी चीन से विवाद के समय ही हमारी देशभक्ति जागती है, वह भी कुछ दिन के लिए और मात्र फेसबुक तक।यदि आधे भारतवासी ही एक साल के लिए चीन के बने सामान का बायकाट कर दें तो चीन घुटनों में आ जाए।कुछ साल के लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा से मुंह मोड़कर देखिए।चीन रास्ते पर आ जाएगा।
लगभग 50 के आसपास अरब देश हैं किंतु दो अरब देश तुर्की और अज़रबैजान ही इस लड़ाई में पाकिस्तान के साथ पूरी ताकत के साथ खड़े नजर आए। इस लड़ाई में पाकिस्तान ने तुर्की में बने 40 से ज्यादा द्रोण का इस्तमाल किया, हालाकि ये सभी रास्ते में मार दिए गए।
2024 में पर्यटन के लिए 2.75 लाख भारतीय तुर्की गए। 2024 में पर्यटन के लिए 2.5 लाख भारतीय अज़रबैजान के बाकू गए। 2022-2024 के दौरान अज़रबैजान में भारतीय पर्यटकों के आगमन में 68 प्रतिशत की वृद्धि हुई, और अज़रबैजान में औसत प्रवास समय 4-6 दिन है। तुर्की में भारतीयों का औसत प्रवास 7-10 दिन है।कुल मिलाकर, भारतीय अज़रबैजान की अर्थव्यवस्था में सालाना 1,000-1,250 करोड़ रुपये का योगदान करते हैं। भारतीय तुर्की की अर्थव्यवस्था में सालाना 2,900-3,350 करोड़ रुपये का योगदान करते हैं। इस्तांबुल, कप्पाडोसिया और अंताल्या में भारतीयों की सबसे ज़्यादा दिलचस्पी है।विदेश में प्रति भारतीय पर्यटक का औसत खर्च प्रति यात्रा ए से सवा लाख रुपये है। चूंकि भारत का मध्यम वर्ग अतिरिक्त आय के साथ 40 करोड़ तक पहुंच गया है, इसलिए सोशल मीडिया और फिल्मों के माध्यम से लोकप्रियता उन्हें तुर्की और अजरबैजान की ओर आकर्षित कर रही है।भारत के कारण, तुर्की और अजरबैजान में 20,000 प्रत्यक्ष पर्यटन नौकरियों का सृजन हुआ। अप्रत्यक्ष नौकरियां 45,000-60,000 से अधिक हैं। पिछले चार वर्षों में तुर्की के आतिथ्य क्षेत्र में भारतीय निवेश में 35% की वृद्धि हुई है।
अपने दुश्मन देश को लाभ पहुंचाना बंद करने देखिए।सांप और सपोलिए पालना बंद करिए। सब रास्ते पर आ जाएंगे।दुनिया भर के देशों में घूमने के लिए बहुत सी खूबसूरत जगह हैं, सिवाय इन दो देशों के।अगली बार, जब भी यात्रा की योजना बनाएँ, तो इन दो देशों को छोड़ कर कही भी चले जाए, ये ज्यादा ठीक होगा।
इस चार दिन के भारत और पाकिस्तान के संघर्ष के बाद यह तै हो गया कि दुनिया में भारत के अपने शस्त्रों की विश्वसनीयता बढ़ी है।ब्रह्मोस्त्र की तो पहले ही मांग होने लगी थी। अब और ज्यादा मांग आएगी।भारत का शस्त्रों का बाजार बढ़ेगा। निर्यात बढ़ेगा तो देश की अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी। रूस एस −500 बनाने की पहले ही तकनीक भारत को देने को तैयार है। रूस −भारत का विश्वसनीय मित्र है। भारत को चाहिए की समय की मांग को देखते हुए एस − 500 का निर्माण अपने यहां शुरू कर दे।राफेल की तरह दुनिया की सबसे श्रेष्ठ तकनीक खरीदे। अमेरिका मात्र शस्त्रों का सौदागर है। वह किसी देश का मित्र नही हो सकता। भारत को चाहिए कि अमेरिका का बिल्कुल विश्वास न करें।इन चार दिनों के युद्ध में रूस और इस्राइल भारत के साथ खड़े रहे। अब भारत को समय की जरूरत के हिसाब से नए मित्र बनाने होंगे। अपने को मजबूत करना होगा। तुर्की में भूकंप आने पर भारत ‘ऑपरेशन दोस्त’ शुरू किया। इसके तहत तुर्की को मेडिकल सहायता भेजी गई। इस ऑपरेशन के तहत एनडीआरएफ की दो टीमें तुर्की भेजीं।इसमें एक डॉग स्क्वॉड भी शामिल था।भारत की रेस्क्यू टीमों ने मलबे में दबे लोगों को खोजने, उन्हें बाहर निकालने में मदद की। ऑपरेशन दोस्त के तहत भारत ने छह विमान और 30 बिस्तरों वाला मोबाइल अस्पताल, मेडिकल सामग्री सहित सभी जरूरी सामान भिजवाए। तुर्किए में भारत का ऑपरेशन दोस्त 10 दिनों तक चला। इसका बदले तुर्की ने पाकिस्तान की किस तरह मदद की । किस तह शस्त्र भिजवाए, यह हाल में पता चल गया।
अनुमान लगाए जा रहे हैं कि चीन के हथियारों के भारत के खिलाफ फेल होने के बाद अब पाकिस्तान अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों से हथियार खरीदने पर जोर लगाएगा। हालाँकि, उसकी आर्थिक स्थिति को ठीक नही किंतु यह एक हजार साल भी भारत से लड़ने का इरादा रखता है। भले ही उससे दुनिया के आगे भीख मांगनी पड़े। झोली फैलनी पडे।
अमेरिका भारत के विरोध के बावजूद पहले भी पाकिस्तान को युद्ध सामग्री देता रहा है। भात के पुरजोर विरोध के बावजूद उसने पाकिस्तान को एफ −16 विमानों की खेप दी थी।अब चीन से पाकिस्तान का मोहभंग होता देख अमेरिका और मित्र देश पाकिस्तान को अपने खेमें में लेने के लिए कार्य करेंगे।
एक बात और भारत ने पहली बार पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई में चीन से मिले हथियारों का नाम लिया है। भारत ने बताया कि पाकिस्तान ने इन हथियारों का इस्तेमाल भारतीय सेना पर हमला करने के लिए किया था। डीजीएओ एयर मार्शल एके भारती ने सबके सामने पाकिस्तान और चीन की इस सांठ-गांठ के सबूत दिखाए। ये काम तो बहुत पहले से होना चाहिए था।वैसे चीन पर इसका कोई असर होने वाला नही है। उसका ध्येय अपना और अपनी सीमाओं का विस्तार करना है, वह इसमें लगा है। चीन भारत को अपना सबसे प्रबल शत्रु मानता है,वह मानता रहेगा ।भारत अपने दुश्मनों की मदद करन में चीन का नाम ले या न लें को फर्क पड़ने वाला नही है।