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मानसून में बिसुन्दनी-नाहर सागर बांधों के ओवरफ्लो से चिकल्या व लोधा झोपड़ा के ग्रामीण घुटते मजबूरी में: तीनों रास्ते बंद, बच्चों की पढ़ाई और मरीजों की जान खतरे में रहेगी

दिलखुश मीणा

सावर(अजमेर)सावर उपखंड क्षेत्र के राजस्व दर्जा प्राप्त चिकल्या गांव और उसके अंतर्गत आने वाला लोधा झोपड़ा हर साल मानसून में अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हैं। इस बार बिसुन्दनी और नाहर सागर द्वितीय बांधों के ओवरफ्लो के कारण गांव में हालात गंभीर बन गए हैं, जिससे ग्रामीणों की परेशानियां और बढ़ गई हैं।

सोमवार को दोनों बांधों के जलस्तर बढ़ने से खाल उफान मारने लगे हैं और इन दोनों गांवों के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं। इससे छात्र-छात्राओं के लिए पढ़ाई और डेयरी किसानों के लिए दूध की बिक्री समेत पशुपालकों की आमदनी पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है।

तीनों रास्ते बरसात में बंद

गांव तक पहुँचने के लिए मुख्य मार्ग पिपलाज, किडवा झोपड़ा और गोरधा हैं, लेकिन बरसात शुरू होते ही ये सभी रास्ते बंद हो जाते हैं। यहाँ ऊँची पुलिया नहीं है, केवल रपटें बनी हुई हैं, जो बरसाती पानी और तेज बहाव के आगे बेअसर साबित हो रही हैं।

वर्तमान स्थिति:

गोरधा रपट: एक हिस्सा टूटकर ऊपर उठ गया है।

किडवा झोपड़ा रपट: रखे पत्थर बहने लगे हैं।

पीपलाज रपट: कई गड्ढे बन चुके हैं।

इससे गांव का शहर और पंचायत मुख्यालय से संपर्क पूरी तरह कट गया है।

स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरी मार

दोनों गांवों की आबादी लगभग 1000 है, जिनमें 400 से अधिक वोटर शामिल हैं। स्वास्थ्य सुविधा बिल्कुल नहीं है। बरसात में किसी की तबीयत बिगड़े तो मरीज को अस्पताल तक पहुँचाना नामुमकिन हो जाता है। कई बार ग्रामीणों को मरीज को खाट पर उठाकर बहते पानी में जान जोखिम में डालकर निकालना पड़ता है। वही गर्भवती महिलाओं के होने वाली डिलेवरी नार्मल नहीं होने के दशा में चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध कराना बड़ा मुश्किल हो जाता है ।

छात्रों की पढ़ाई प्रभावित

चिकल्या और लोधा झोपड़ा में प्राथमिक विद्यालय हैं, लेकिन कक्षा 5 के बाद की पढ़ाई के लिए बच्चों को पंचायत मुख्यालय या कस्बे तक जाना पड़ता है। बरसात और खाल भराव के कारण रास्ता कटने पर बच्चे स्कूल नहीं पहुँच पाते।

> “हम बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन सड़क और पुलिया की समस्या हर साल उनका भविष्य रोक देती है,” ग्रामीणों ने बताया।

 

2005 की बाढ़ का डर अभी भी ताजा

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 2005 में बिसुन्दनी और नाहर सागर द्वितीय बांध के लगातार ओवरफ्लो से आई बाढ़ में हालात इतने बिगड़ गए थे कि एनडीआरएफ को मोर्चा संभालना पड़ा। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हेलीकॉप्टर से हालात का जायजा लेने पहुँची थीं। आज भी ग्रामीण उस भयावह बाढ़ को याद कर सिहर उठते हैं।

स्थायी समाधान की मांग

ग्रामीणों का कहना है कि गांव उपखंड मुख्यालय से महज 13 किलोमीटर दूर है। अगर ऊँची और मजबूत पुलिया का निर्माण कर दिया जाए, तो यह समस्या स्थायी रूप से खत्म हो सकती है। फिलहाल बनी रपटें हर बरसात में पानी के तेज बहाव के आगे बेअसर हो जाती हैं।

> “अब समय आ गया है कि प्रशासन हमें राहत दे। ऊँची पुलिया बने, तभी बच्चों की पढ़ाई और ग्रामीणों की जान दोनों सुरक्षित रहेंगी।”

बढते जलस्तर को लेकर पंचायत प्रशासन का उचित कदम__

विगत दिनों में हुई अत्यधिक वर्षा के फलस्वरूप ग्राम पंचायत क्षेत्र की खाल एवं नदी में जल की तीव्र आवक हो रही है। इस कारण ग्राम क्षेत्र की समस्त पुलियाओं पर जल प्रवाह अत्यधिक स्तर पर है तथा आमजन हेतु मार्ग आवागमन पूर्णतया अवरुद्ध है।

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