बानसूर । स्मार्ट हलचल|उपखंड क्षेत्र के छोटे से गांव सुदा की ढाणी तन बूटेरी में 15 अप्रैल 1991 को माता मूर्ति देवी व पिता जयराम गुर्जर के घर एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में जन्मे शहीद नायक दयाराम गुर्जर का नाता बचपन से ही संघर्षों सें रहा। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव बुटेरी में ही पूरी हुई जबकि 10 वीं कक्षा की पढ़ाई राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय लोयती से पूरी की।12 वीं कक्षा राजकीय सरदार उच्च माध्यमिक विद्यालय कोटपूतली से पास करने के दयाराम ने अपना रुख बीकानेर की तरफ किया यहां उन्होंने पॉलिटेक्निक कॉलेज में एडमिशन लिया। इस दौरान दयाराम को पूरी तरह से समझ में आ रहा था कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर हैं। उनके पिता ऊटं-गाड़ी चला कर परिवार का पालन पोषण रहें थे। आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय होने के कारण दयाराम के दिमाग में एक बात घर कर गई थी कि उनको जल्दी से जल्दी नौकरी लगना है। दयाराम बीकानेर में रहकर पॉलिटेक्निकल के साथ हीं फिजिकल फिटनेस और कंपटीशन की तैयारी भी करने लगे। इस दौरान दयाराम ने दो बार दिल्ली पुलिस कॉन्स्टेबल की लिखित परीक्षा और शारीरिक दक्षता पास की तथा एक बार चंडीगढ़ पुलिस कांस्टेबल की लिखित परीक्षा पास की लेकिन आयु कम होने के कारण इनको अयोग्य घोषित कर भर्ती प्रक्रिया सें बाहर कर दिया गया।
पॉलिटेक्निकल के अंतिम वर्ष के दौरान अलवर में बी.आर.ओ द्वारा आयोजित हो रही भारतीय सेना की भर्ती की शारीरिक दक्षता पास की ओर लिखित परीक्षा की तैयारी में जुट गए।
पॉलिटेक्निकल के अंतिम वर्ष की लिखित परीक्षा और भारतीय सेना की लिखित परीक्षा एक ही दिन आयोजित हो रही थी दयाराम ने आर्मी की लिखित परीक्षा को वरीयता दी और परिक्षा में पास भी हुए।
1 जनवरी 2011 को भारतीय सेना के राजपूत रेजीमेंट सेंटर फतेहगढ में ट्रेनिंग के लिए चले गए 9 महीने की कठिन ट्रेनिंग लेकर 28 वीं बटालियन में बतौर सिपाही के पद पर शामिल हुए।
28 राजपूत में रहते हुए दयाराम ने बहादुरी और कार्यकुशलता का परिचय दिया। दयाराम पढ़ाई-लिखाई में ठीक ठाक होने के कारण भारतीय सेना में अफसर के पद पर पदोन्नति के लिए तीन बार लिखित परीक्षा पास की लेकिन हर बार इंटरव्यू में बाहर हो जाते थे। कार्यकुशलता से ड्यूटी करने के साथ-साथ घातक कमांडो आर्मी कोर्स करके कमांडो की उपाधि भी हासिल की।
18 मार्च 2018 को मणिपुर में बर्मा बॉर्डर पर ड्यूटी के दौरान स्थानीय नक्सली हमले में दयाराम को दाहिने पैर की जांघ में गोली लगी। जिससे दयाराम घायल हो गए। इस हमले में दयाराम ने स्काउट गाइड की भूमिका निभाई थी इसके बाद अक्टूबर 2018 में दयाराम तीन वर्ष के लिए 804 स्पेशल टास्क फोर्स बेंगलुरु में पोस्टिंग पर चले गए। यहां तीन साल ड्यूटी करने के बाद सितंबर 2021 को छुट्टी के साथ यूनिट में पोस्टिंग आए और छुट्टी काटने के बाद अपनी यूनिट 28 राजपूत ( जयपुर ) में चले गए। इस दौरान यूनिट कि ज्यादातर नफरी गंगानगर में इंदिरा गांधी नहर के किनारे युद्ध अभ्यास कर रही थी तो दयाराम को भी युद्ध अभ्यास में शामिल होने का आदेश मिला और दयाराम गंगानगर चले गए। कई दिनों से चल रहे युद्धाभ्यास ऑपरेशन साइलेंट कैनाल क्रासिंग में दयाराम को भी शामिल होने का मौका मिला।
28 अक्टूबर 2021 को दयाराम नहर को एक किनारे से दूसरे किनारे पर जाने के लिए पानी में तैरते हुए पार कर रहे थे तभी नहर में पानी का बहाव तेज हो गया लगातार तेज बहाव के चलते दयाराम व उनके साथी होश गंवा बैठे बाकी चार साथियों ने जैसे तैसे करके बराबर चल रही नाव को पकड़ लिया लेकिन दयाराम नाव से थोड़ी दूर होने के कारण नाव को पकड़ नहीं पाए और पूरी तरह से हताश होने लगे और धीरे-धीरे पानी में डूबने लगे इस दौरान बाकी साथियों की जान बच गई और दयाराम ने पानी के अंदर ही दम तोड़ दिया और वीरगति को प्राप्त हो गए। भारत सरकार ने दयाराम गुर्जर को बैटल कैजुअल्टी का दर्जा दिया है। दयाराम गुर्जर के अलावा दो भाई भीम सिंह औंर छोटूराम भी सेना में तैनात हैं और मां भारती की सेवा में समर्पित हैं। आपकों बतादे कि
दयाराम गुर्जर की शादी 17 मई 2005 को निर्मला देवी के साथ हुई । दयाराम गुर्जर के हैप्पी व मीनल सिंह दों बेटियां हैं जिनका सपना भी पिता की तरह सेना में जाकर देश सेवा करना हैं।


