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खेल भावना और राष्ट्रभक्ति के उत्कृष्ट प्रतीक थे हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद

(राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त)

निखिलेश महेश्वरी

​स्मार्ट हलचल|29 अगस्त 2025 को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की 120वीं जयंती है। मेजर ध्यानचंद का नाम आते ही हॉकी के मैदान में गेंद और स्टिक का अद्भुत संगम, दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देने वाला खेल-कौशल, और खेल के प्रति उनका अतुलनीय समर्पण स्मरण हो आता है। उनके अमूल्य योगदान के सम्मान में देश प्रत्येक वर्ष 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाता है। एक ऐसा दिन, जब खेल केवल प्रतियोगिता का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्रप्रेम, अनुशासन और उत्कृष्टता का प्रतीक बन जाता है ।
भारत के इतिहास पर दृष्टि डालें तो स्पष्ट होता है कि प्रत्येक महापुरुष के जीवन में किसी न किसी खेल का विशेष स्थान रहा है। श्रीकृष्ण की गेंद-खेल और कालिया नाग दमन की क्रीड़ा, भीम का गदा-युद्ध में अप्रतिम कौशल, अर्जुन का धनुष-बाण संचालन अथवा छत्रपति शिवाजी महाराज की सीमोल्लंघन की वीरतापूर्ण खेल-कूद की गतिविधियाँ, ये सभी केवल मनोरंजन के साधन नहीं थे, बल्कि उनके व्यक्तित्व-निर्माण की सुदृढ़ आधारशिला थे । निस्संदेह, इस देश की पावन मिट्टी में खेल-खेल में ही भगवान और वीर जन्म लेते रहे हैं ।
स्वामी विवेकानंद ने भी जब एक दुर्बल युवक को गीता पढ़ने की इच्छा व्यक्त करते सुना, तो पहले उसे गीता पढ़ने के बजाय फुटबॉल खेलने की सलाह दी उनका संकेत स्पष्ट था, मजबूत शरीर और स्फूर्त मन ही ज्ञान को आत्मसात कर सकता है ।
हमारे पारंपरिक भारतीय खेल केवल शारीरिक स्वास्थ्य का साधन नहीं, बल्कि वे मनुष्य के भीतर साहस, संगठन, धैर्य, बलिदान और जीवन-दर्शन जैसे गुणों का विकास करते हैं। उदाहरण के लिए, कबड्डी में “आउट” होकर फिर “इन” होना मानो मृत्यु के बाद नए जीवन का संदेश देता है । निस्संदेह, देशज खेलों में गूढ़ शिक्षा छिपी है, जो खेलते-खेलते सहज ही मन में उतर जाती है ।
राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर हमें अपने देश के पारंपरिक खेलों को स्मरण करते हुए भावी पीढ़ी को उनसे परिचित कराना चाहिए, साथ ही उन्हें आधुनिक खेलों में भी दक्ष बनाना चाहिए, क्योंकि खेल केवल शारीरिक स्फूर्ति का साधन नहीं, बल्कि चरित्र और संस्कारों के संवाहक भी हैं ।
यह खेल दिवस महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के स्मरण का अवसर है, जिनके अद्वितीय खेल कौशल और योगदान के सम्मान में राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया । उनकी जयंती पर विद्यार्थियों और खिलाड़ियों के बीच श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए हमें उनके जीवन और आदर्शों से प्रेरणा लेकर संकल्प करना चाहिए कि हम खेल जगत में न केवल उत्कृष्टता, बल्कि शुचिता और राष्ट्रभक्ति का भी परचम लहराएँगे।
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ। बचपन में उनमें खिलाड़ी जैसे कोई विशेष लक्षण नहीं थे, पर सतत साधना, अभ्यास, लगन और संकल्प से उन्होंने हॉकी में महारथ प्राप्त की, जो उन्हें विश्वविख्यात बना गई । छठी कक्षा तक पढ़ाई के पश्चात 1922 में वे मात्र 16 वर्ष की आयु में प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट, दिल्ली में सिपाही के रूप में भर्ती हुए । उनका असली नाम ध्यान सिंह था, लेकिन चांदनी रात में अभ्यास करने की आदत के कारण साथी उन्हें “चंद” कहने लगे और यही आगे चलकर उनका उपनाम बन गया-ध्यानचंद ।
1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में भारत को लगातार तीन स्वर्ण पदक दिलाने में उनका योगदान निर्णायक रहा। 1936 के बर्लिन ओलंपिक फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8–1 से हराया, जिसमें ध्यानचंद ने तीन गोल किए। जर्मन तानाशाह हिटलर भी उनके खेल-कौशल से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें अपनी सेना में उच्च पद का प्रस्ताव दिया, परंतु ध्यानचंद ने यह कहकर ठुकरा दिया-“मैंने भारत का नमक खाया है, देश से गद्दारी नहीं करूंगा ।”

अपने करियर में उन्होंने 1000 से अधिक गोल किए और ‘हॉकी का जादूगर’ तथा The Magician के रूप में विश्वविख्यात हुए । 1956 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया । 3 दिसंबर 1979 को वे इस दुनिया से सदा-सदा के लिए विदा हो गए, लेकिन उनकी स्मृति आज भी भारतीयों के हृदय में जीवित है ।
“हार हुई तो मत घबराना, विजय मिली तो मत इतराना,
वृत्ति खिलाड़ी भूल न जाना, आज रुके तो कल बढ़ जाना,
विजय-पराजय जो भी आएं, निर्भय होकर खेल
खेल खिलाड़ी खेल, खेल खिलाड़ी खेल ।”

आज खेल जगत अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है, भ्रष्टाचार, डोपिंग, मैच फिक्सिंग, बढ़ती हिंसा और नशे की लत जैसी विकृतियाँ खेलों की शुचिता को आहत कर रही हैं । इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि एक समय खेलों को कैरियर का विकल्प नहीं माना जाता था, किंतु आज परिस्थिति बदल चुकी है । उन्होंने कहा –
“खेल विकास का महत्वपूर्ण पहलू है और मुझे खुशी है कि जहां एक समय बच्चों को खेलने पर माता-पिता से डांट पड़ती थी, वहीं आज माता-पिता को आनंद होता है कि उनके बच्चे खेलों में रुचि ले रहे हैं । मैं इसे शुभ संकेत मानता हूं ।”
खेल प्रशासन में जवाबदेही सुनिश्चित करने तथा खेल क्षेत्र में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, निष्पक्षता और नैतिक आचरण को प्रोत्साहन देने हेतु 1 जुलाई 2023 से राष्ट्रीय खेल नीति (NSP) लागू की गई। इसमें एक एथलीट गोद लें, एक जिला गोद लें, एक स्थल गोद लें, एक कॉर्पोरेट-एक खेल तथा एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम-एक राज्य जैसी अभिनव पहलें शामिल की गई हैं । यह नीति खिलाड़ियों को प्रोत्साहन, पारदर्शिता और सुनियोजित सहयोग प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है ।
राष्ट्रीय खेल दिवस मनाते समय हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि मेजर ध्यानचंद का जीवन परिश्रम, अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और शुचिता का अनुपम उदाहरण रहा है । उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हमें न केवल खेलों में उत्कृष्टता, बल्कि शुचिता और राष्ट्रभक्ति का भी परचम लहराने का संकल्प लेना चाहिए ।
आज देश का सर्वोच्च खेल सम्मान “मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार” उनके नाम से दिया जाता है। फिर भी, उनके अमूल्य योगदान और अद्वितीय राष्ट्रभक्ति को देखते हुए यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि भारत सरकार उन्हें भारत रत्न से विभूषित कर सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करें।

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