बिम्सटेक की अध्यक्षता आधिकारिक तौर पर बांग्लादेश को
बैंकॉक: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक पहुंचे हैं। इस दौरान बैंकॉक में पीएम मोदी का गार्ड ऑफ ऑनर के साथ स्वागत किया गया। पीएम मोदी ने थाईलैंड की प्रधानमंत्री पैतोंगतार्न शिनावात्रा के साथ द्विपक्षीय बैठक भी की है। उनका थाईलैंड के राजा महा वजीरालोंगकोर्न के साथ मुलाकात की भी संभावना है। वहीं, विदेश मंत्री एस जयशंकर पहले से ही बैंकॉक में हैं। उन्होंने आज 20वीं बिम्सटेक मंत्रिस्तरीय बैठक में भाग लिया। ऐसे में सवाल उठता है कि बिम्सटेक क्या है और यह भारत के लिए क्यों इतना जरूरी है कि पीएम मोदी और एस जयशंकर इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए बैंकॉक पहुंचे हैं।
1997 में BIMSTEC की स्थापना हुई थी, लेकिन साल 2016 के बाद बिम्सटेक को असल गति मिली। इसका कारण था नरेंद्र मोदी की सरकार। भारत में जैसे ही 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार आई, इसके बाद फॉरेन रिलेशंस पर ज्यादा फोकस किया गया। ऐसे में BIMSTEC को पुनर्जीवित करने में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहम भूमिका निभाई। भारत के नेतृत्व में इसे नया रूप मिला। बता दें कि इस समय थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया है, जिसमें भारत समेत सात देशों के राष्ट्रीय अध्यक्ष हिस्सा ले रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने पर ध्यान दिया। ऐसे में BIMSTEC मंच को उसके लिए उपयोगी माना और कई ठोस कदम उठाए। प्रधानमंत्री ने 2016 में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान गोवा में BIMSTEC नेताओं की एक बैठक आयोजित की थी। इस दौरान ही उन्होंने BIMSTEC को और मजबूत करने का संकल्प भी लिया था।
भारत – BIMSTEC
शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने BIMSTEC को नई गति देने के लिए यूपीआई को इसके सदस्य देशों की भुगतान प्रणालियों से जोड़ने का प्रस्ताव रखा है। दरअसल, इस कदम का मकसद क्षेत्र में व्यापार, कारोबार और पर्यटन को बढ़ावा देना है। एक तरफ भारत और बांग्लादेश में तनाव बढ़ रहा है, तो वहीं अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक सम्मेलन में बांग्लादेश को शुभकामनाएं दी हैं। बता दें कि बिम्सटेक का अगला मेजबान देश बांग्लादेश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक देशों के साथ अपने संबंधों को और गहरा करने के लिए सांस्कृतिक, शैक्षिक और कूटनीतिक पहलुओं पर ध्यान दिया। उन्होंने कई अहम घोषणाएं कीं, जिसमें भारत में वन अनुसंधान संस्थान में बिम्सटेक छात्रों के लिए स्कॉलरशिप प्रदान करना और नालंदा विश्वविद्यालय में स्कॉलरशिप योजना का विस्तार करना भी शामिल है।
अब समझा जाए कि भारत के लिए बिम्सटेक क्यों जरूरी है। दरअसल, नरेंद्र मोदी की जब 2014 में सरकार आई थी, तो इसके छह महीने बाद प्रधानमंत्री काठमांडू में सार्क समिति में शामिल होने पहुंचे थे। इस समिट में भारत का जोर रेल और मोटर व्हीकल एग्रीमेंट लाने पर था, लेकिन इसमें पाकिस्तान सरकार ने अड़चन डाली। इसके अलावा, पाकिस्तान की सरकार ने सार्क में ऑब्जर्वर कंट्री चीन के सड़क परियोजनाओं को पेश करने की वकालत की, जिसके चलते प्रधानमंत्री मोदी नाराज हुए और उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से आधिकारिक मुलाकात भी नहीं की। बाद में 2016 में उरी अटैक के बाद भारत ने सार्क समिति में शामिल होने से इनकार कर दिया। ऐसे में सार्क का विकल्प छोड़कर अब भारत के लिए बिम्सटेक बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
कैसे बढ़ते गए बिम्सटेक के सदस्य
22 दिसंबर 1997 को, म्यांमार बैंकॉक में एक विशेष मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान शामिल हुआ, जिसके परिणामस्वरूप समूह का नाम बदलकर ‘BIMST-EC’ (बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका और थाईलैंड आर्थिक सहयोग) कर दिया गया। छठी मंत्रिस्तरीय बैठक (फरवरी 2004, थाईलैंड) में नेपाल और भूटान को शामिल करने के परिणामस्वरूप संगठन का वर्तमान नाम ‘बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल’ (बिम्सटेक) रखा गया। बिम्सटेक के सदस्य देश व्यापार, निवेश और विकास; कृषि, मत्स्य पालन और पशुधन; पर्यटन; सुरक्षा; पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन; और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करते हैं।
बिम्सटेक के सदस्य देशों की आबादी 1.67 बिलियन है, वहीं कुल जीडीपी $2.88 ट्रिलियन है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस के अनुसार, बिम्सटेक के भीतर व्यापार 2000 में $5 बिलियन से बढ़कर 2023 में $60 बिलियन हो गया है। हालांकि, दो दशकों से चल रही बातचीत के बावजूद, इस क्षेत्र ने अभी तक एक क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप नहीं दिया है।