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कानपुर में अपराधियों के खिलाफ जारी कमिश्नरेट पुलिस का अभियान, गोविंद नगर में चाकू मारने वाले दो गिरफ्तार

– मोबाइल मांगने के बदले जिसको मारा थप्पड़
उसी ने चाकू से कर दिया कातिलाना हमला

सुनील बाजपेई
कानपुर। स्मार्ट हलचल/यहां दीपावली समेत सभी त्योहारों को सकुशल और शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने में सफलता के बाद इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार सिंह की अगुवाई वाले गोविंद नगर में पीड़ितों की हर संभव सहायता और घटनाओं के सटीक खुलासे के साथ ही कानून और शांति व्यवस्था के पक्ष में अपराधियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई भी लगातार जारी है ,जिसके क्रम में रतन लाल नगर के चौकी प्रभारी मनीष चौहान और सब इंस्पेक्टर धन सिंह की टीम ने मोबाइल मांगने और बदले में थप्पड़ मारने के विवाद में गुजैनी निवासी युवक सूरज को चाकू मार कर घायल करने वाले राहुल उर्फ पत्तुर को उसके विधि विरोधी साथी सहित गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।
कुल मिलाकर प्रभारी निरीक्षक के रूप में इंस्पेक्टर प्रदीप कुमार सिंह और रतनलाल नगर के चौकी प्रभारी के रूप में मनीष चौहान की चुनौती पूर्ण नियुक्ति के बाद लगातार गश्त और सूचनाओं पर तत्काल पहुंच उसका निस्तारण करने के साथ ही निर्दोष फंसे नहीं और अपराधी बचे नहीं वाली विचारधारा के अनुरूप निष्पक्षता और पारदर्शिता के साथ पीड़ितों की संतुष्टि पूर्ण सहायता में कठोर परिश्रम से मिलने वाली सफलता समय से भोजन तथा पर्याप्त निंद्रा से भी सेवानिवृत होने तक ना खत्म होने वाली दुश्मनी भी लगातार बरकरार किए हुए है।
जहां तक किसी की भी किसी भी पद या स्थान पर नियुक्ति का सवाल है। इसके आध्यात्मिक पक्ष के मुताबिक स्थानांतरण या किसी भी पद पर नियुक्ति के रूप में आपके कदम धरती के उस स्थान पर भी पड़ते हैं ,जहां जन्म के बाद पहले कभी नहीं पड़े होते और उन लोगों से भी मुलाकात होती है ,जिनसे पहले कभी नहीं मिले होते। अगर पुलिस द्वारा पीड़ितों की सहायता की बात करें तो इस संदर्भ में भी आध्यात्मिक दृष्टिकोण जिस आशय की पुष्टि करता है। उसके मुताबिक अगर कोई पीड़ित सहायता के लिए आता है तो इसका मतलब है कि उसके रूप में ईश्वर ,अल्लाह और गॉड ही हमारी ,आपकी या किसी की भी अधिकार सम्पन्नता, सक्षमता और सेवाभाव के प्रति कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी की परीक्षा लेने ही आया है।
खास बात यह भी कि किसी भी पीड़ित की परेशानी का निस्तारण संबंधित के प्रति दुआओं का भी सृजक होता है जो कि उसके जीवन में फलित भी अवश्य ही होती हैं।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण के मुताबिक ऐसा इसलिए क्योंकि किसी के प्रति भी दुआओं और बद्दुआओं के रूप में बोले गए शब्द कभी नष्ट नहीं होते। ….और अगर होते तो हमारी या किसी की भी मोबाइल से बात नहीं होती ,क्योंकि अजर, अमर, अविनाशी अक्षर से शब्द और शब्द से बने वाक्य ही लिखने, पढ़ने और बोलने के रुप में ही इस संसार का संचालन करते हैं। मतलब अगर कुछ लिखा न जाए , पढ़ा ना जाए या कुछ कहा और बोला ना जाए तो इस संसार का संचालन हो ही नहीं सकता। मतलब यदि सक्षम पद वाला कोई भी मौन धारण कर ले तो सारी लोक व्यवस्था ही ठप हो जायेगी।
इसी के साथ साधारण या फिर किसी सक्षम पद के रूप में पुलिस विभाग में सेवारत होना भी संसार के अन्य सभी पदों और विभागों की अपेक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि संसार के संचालन की ईश्वरीय व्यवस्था में जितनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका पुलिस विभाग की है, उतनी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका संसार के किसी अन्य विभाग अथवा किसी अन्य सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं , पुलिस विभाग में किसी भी पदधारक के रूप में यह महत्वपूर्ण भूमिका संसार में इंसान के जन्म के पहले शुरू होती है और मरने के बाद भी जारी रहती हैl यहां जन्म से पहले मतलब शिकायत पर इस आशय की जांच और विवेचना के रुप में कि पेट में बच्चा किसका है और मृत्यु के बाद भी इस आशय से कि हत्या किसने की है? मतलब जन्म के पहले से लेकर मृत्यु के बाद तक जैसी इतनी बड़ी भूमिका पुलिस के अलावा संसार के किसी भी विभाग या उसके सर्वोच्च पद धारक की भी कदापि नहीं है। यहां तक कि किसी की हत्या के रूप में मृत्यु के बाद व्यक्ति के कर्मों का फल दंड के रूप में, आजीवन कारावास या फांसी के रूप में दिलाने की अधिकार पूर्ण सक्षमता भी पुलिस के अलावा संसार में अन्य किसी की भी कदापि नहीं है।
यही नहीं जन्म से लेकर मृत्यु तक के बीच के समय यानी जीवन को व्यक्ति के कर्मों के अनुरूप सुख या दुख में बदलने के साथ ही उचित पात्र लोगों के जीवन को बचाने और अपराध के रूप में जनहित के विपरीत आचरण करने वाले के जीवन को मृत्यु (मुठभेड़) के रूप में समाप्त करने की भी क्षमता , सक्षमता और समर्थता शरीर धारी के रूप में वह रखता है ,जिसे पुलिस कहते हैं। इसी से प्रमाणित होता है कि ईश्वर , अल्लाह और गॉड संसार में व्यक्ति के अच्छे बुरे कर्मों का फल पुलिस विभाग में छोटे से लेकर बड़े पद धारक कर्मयोगियों के रूप में देता भी है।
यह भी सच है कि लगभग हर पुलिस कर्मी का कर्तव्य पथ उसके निजी जीवन के संदर्भ में बहुत कंटक पूर्ण भी होता है। फिर भी वह इन सभी जूझते हुए अपने कर्तव्य का पालन करने में कसर नहीं रखता। शायद इसीलिए किसी ने कहा है –
अपने दुख सब भूल कर, परहित जान गंवाय।
नींद, नारि ,भोजन तजे, वही पुलिस में जाय।

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