भीलवाड़ा । ( राजेश जीनगर )
पॉलीथिन केरी बेग पर रोक व इस्तेमाल पर पाबंदी को लेकर नगर निगम द्वारा ठोस कार्यवाही और जुर्माना नहीं किए जाने से बे रोक-टोक पोलिथिन का उपयोग धड़ल्ले से जारी है। शहर में लगने वाली सब्जी मंडियों, फल फ्रुट व्यवसायी, किराणा व्यवसायी, फूल माला विक्रेताओं द्वारा धड़ल्ले से जमकर पोलिथिन केरी बेग का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन इस पर जिम्मेदारों का मौन कई सवाल खड़े कर रहा है। नगर निगम भी कार्यवाही के नाम पर महज खानापूर्ति कर इतिश्री कर रहा है। वहीं पोलिथिन केरी बेग के उपयोग करने और भविष्य में इसके भयावह परिणाम को लेकर आमजन गंभीर नजर नहीं आ रहा है। कुछ ऐसे ही नजारे सब्जी मंडी से कैद किए गए। जहां हर कोई हाथों में पोलिथिन केरी बेग थामें नजर आया। नगर निगम क्षेत्र में पॉलीथिन धड़ल्ले से दौड़ लगा रही है तो अधिकारी भी चंद दिनों की चौकसी दिखाने के बाद खामोश बैठ जाते हैं। प्रतिदिन लगभग 90 प्रतिशत दुकानदार व ग्राहक इसका धड़ल्ले से उपयोग कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि कार्यवाही नहीं होती, लेकिन नगर निगम के अधिकारियों द्वारा चंद दुकानदारों से पॉलीथिन बरामद कर जब्त कर लेते है। लेकिन स्थाई रूप से इनके उपयोग पर रोक लग सके ऐसी सख्ती दिखाना मुनासिब नहीं समझते। जिस नगर निगम पर कार्यवाही करने की जिम्मेदारी है, उनके अधिकारियों की उदासीनता पर्यावरण को भी दुषित कर रही है। शहरी क्षेत्र में सब्जी मंडी से लेकर नाश्ते, मिठाई, दूध डेयरी, जनरल स्टोर, किराना स्टोर, कपड़े की दुकान आदि पर पॉलीथिन का उपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। नगर निगम के जिम्मेदारों के सामने भी दुकानदारों के द्वारा पॉलिथीन का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन उसके बावजूद किसी तरह की ठोस कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा रही है। छापेमारी के दौरान भी पोलिथिन केरी बेग विक्रेताओं पर महज खानापूर्ति कर दी जाती है। जिससे भी पोलिथिन केरी बेग पर पुर्णत: प्रतिबंध लगाया जाना संभव नहीं है और नगर निगम द्वारा कार्यवाही के आदेश भी सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जाते है। पोलिथिन केरी बेग उपयोग करने को लेकर जानकारों की मानें तो राज्य सरकारों द्वारा बड़ी बड़ी कंपनियों पर इसके निर्माण पर रोक लगाया जाना आवश्यक है, सिर्फ बाजारों में बंद कर दिए जाने या रोक लगाने से कुछ नहीं होगा। साथ ही पोलिथिन केरी बेग बंद किए जाने के बाद इसके विकल्प के भी प्रयास किए जाने चाहिए। वो विकल्प क्या होंगे, इसके लिए भी सरकारों को सोचना होगा। कैरी बैग के विकल्प पर ध्यान नहीं दिए जाने से प्रतिबंध आज भी लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। पर्यावरण के प्रति गंभीर विशेषज्ञों की मानें तो भविष्य में प्लास्टिक उपयोग के भयावह परिणाम सामने आएंगे। इसलिए सरकारों को भी इस विषय को गंभीरता से लेने की जरूरत है। पोलिथिन केरी बेग व प्लास्टिक का उपजाऊ भूमि पर भी दिनों-दिन बहुत बुरा असर पड़ रहा है।अमानक पॉलिथीन के उपयोग ना करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार द्वारा कई नियम बनाए गए हैं। भारत सरकार ठोस अपशिष्ट निवारण अधिनियम के अनुसार बताया गया है कि 40 माइक्रॉन से कम के मानक की थैली पर्यावरण को प्रदूषित कर रही है।आमजन को खुद भी अपनी मानसिकता में बदलाव करना होगा, साथ ही प्रशासन को भी जागरूकता के लिए कदम उठाने चाहिए। जिस तरह से नगर निगम पॉलीथिन में सामग्री बेचने वाले दुकानदारों से जुर्माना वसूल हो रही है, उसी तरह पॉलीथिन में सामान की खरीदारी करने वाले उपभोक्ता पर भी जुर्माने का प्रावधान किया जाना चाहिए, तभी पोलिथिन के उपयोग पर पुर्णत: अंकुश लगाया जा सकता है। वहीं पॉलीथीन को रिसाइकल नहीं किया जा सकता है। जिससे यह प्रदूषण का कारण बनती है। सबसे ज्यादा नुकसान मवेशियों और जीव-जंतुओं को उठाना पड़ रहा है। पॉलीथिन में खाद्य सामाग्री ले जाने के बाद उसे सड़कों पर फेंक दिया जाता है। जिसे मवेशी खा लेते हैं, जो कि उनके लिए नुकसानदायक हैं। कुड़ा करकट के साथ खुले में पॉलीथीन का कचरा जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड एवं डाईऑक्सीन्स जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे सांस की तकलीफ़, त्वचा में एलर्जी आदि की बीमारियाँ होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। पॉलीथिन के इस्तेमाल से हम ना सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि पशुओ में गंभीर रोगों को भी न्यौता दे रहे हैं और पर्यावरण में ज़हर घोल रहे हैं।