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महिलाओं को राजनीतिक आरक्षण तो मिला पर हिंसक घटनाओं से रक्षण कब मिलेगा ?political reservation for women

महिलाओं को राजनीतिक आरक्षण तो मिला पर हिंसक घटनाओं से रक्षण कब मिलेगा ?

अशोक भाटिया

स्मार्ट हलचल/महिलाओं को राजनीतिक आरक्षण बिल संसद में पास होकर कानून बन गया । अब चुनाओं में महिलाओं को उनका हक मिलेगा पर इसके साथ ही सवाल यह भी उठता है कि महिलाओं पर हो रही हिंसक घटनाओं से रक्षण कब मिलेगा ? यह प्रश्न हाल में घटित कुछ महिलाओं और खासकर नाबालिग लड़कियों पर हो रही घटनाओं के कारण उठना लाजमी है ।सबसे पहले बात करें उज्जैन की हाल की घटना । क्यों डराती है उज्जैन की घटना, बार-बार इस तरह की वारदात कैसे हो रहीं? कानून में बलात्कार के खिलाफ सजा के नए नए प्रावधान जोड़ने की बात हो रही है, पर बलात्कार की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। एक महीने के अंदर कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिनके बारे में पढ़ या सुन कर दिल कांप जा रहा है। उज्जैन में सीसीटीवी फुटेज में एक 12 साल की लड़की को खून से लथपथ देख कर किसका कलेजा मुँह को नहीं आया होगा। जब उसका मेडिकल कराया गया तो पता चला कि लड़की के साथ बलात्कार किया गया था। 28 सितंबर को लुधियाना जिले की माछीवाड़ा पुलिस ने दो साल की बच्ची के अपहरण और यौन उत्पीड़न करने के आरोप में 32 वर्षीय एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। सीकर पुलिस ने एक 15 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने और फिर उसे मार डालने के जुर्म में दो आरोपियों को इसी रविवार को गिरफ्तार और एक नाबालिग को निरुद्ध किया है। दो दिन पहले मदुरै में एक सोलह साल की लड़की को सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट ने बचाव करते हुए उसे विभाग के निगरानी केंन्द्र में भेजा गया। इस लड़की के साथ उसके गांव का ही एक ड्राइवर शादी के नाम पर कई महीने तक बलात्कार करता रहा। लड़की आठ महीने के गर्भ से थी। पिछले महीने दिल्ली में भी एक लड़की के मुंहबोले मामा को बलात्कार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। लड़की मानसिक रूप से इतनी डरी हुई थी कि उसे दौरे पड़ने लगे थे। नाबालिगों के साथ दुष्कर्म का यह एक सिलसिला सा बन गया है।

गौरतलब है कि 2014 में जबसे मोदी सरकार आई है, तब से लगातार लोगों ये देखा है कि कई बार भाजपा के अपने नेता ही , चाहे कुलदीप सिंह सेंगर का नाम या दो-तीन महीने पहले मिर्जापुर में एक लोकल भाजपा नेता के द्वारा भी इस तरह की घटना को अंजाम दिया गया जिसमें लड़की प्रेग्नेंट हो गई। इस तरह की घटनाएं जब हो रही हैं, तो देखा जा रहा है कि जो बलात्कारी हैं, जो महिलाओं पर अत्याचार कर रहे हैं उनको एक तरह से छूट मिल जा रही है। उनका महिमामंडन हो रहा है, उनको माला पहनाया जा रहा है, वो बेल पर छूट कर आ रहे हैं। तो उनको जिस तरह से सम्मानित किया जा रहा है, ये एक बहुत गलत मेसेज समाज में भेज रहा है। ये मेसेज है कि आप महिलाओं के साथ कुछ भी करिए, आप बच्चियों के साथ कुछ भी करिए, आप बच जाएंगे। बिल्किस बानों की तरह जब घटनाएं होती हैं, और सरकार का सख्त रिस्पॉन्स नहीं जाता है तो इसका मतलब तो यही होता है कि इन सब चीजों को खुली छूट मिली हुई है।

इसके अलावा दलित महिलाओं कि बात करें तो उनके साथ सबसे ज्यादा अत्याचार उत्तर प्रदेश में हो रहा है। लेकिन हम नहीं देख रहे हैं कि कोई सामाजिक संगठन सामने आ रहा है। दलित के नाम पर राजनीति बहुत से लोग कर रहे हैं, दलितों के नाम पर समाज में बहुत से लोग घूम रहे हैं। लेकिन इस मुद्दे को लेकर कोई सामने नहीं आ रहा है कि कैसे हम कमिटीज बनाएं, संगठन बनाएं? कैसे हम लोगों को एकजुट करें? लोगों के अंदर जो ये डर है, इसको हम कैसे खत्म करें? पुलिस थाना जाना एक मामूली बात हो जाए। ऐसा न हो कि पुलिस थाना जाने में भी लोगों को डर लगे। पूरा कम्युनिटी जब साथ रहेगा, जब साथ जाएंगे पुलिस थाने, तो बात दूसरी होगी। और अकेले जब कोई जाएगा तो हो सकता है दूसरा बलात्कार उसके साथ हो जाए। थाने में ही हो जाए। तो ये एक पहलू है, जिसको समाज में एक पॉजिटिव इन्वॉलमेंट के साथ लोगों को करना पड़ेगा और हल करना पड़ेगा।

जैसे यह सुना जा रहा है कि केंद्र सरकार बलात्कार के लिए अधिकतम सजा के रूप में मौत की सजा का विधान लेकर आ रही है। केंद्र सरकार ने ब्रिटिश काल की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को बदलने का प्रस्ताव संसद में पेश कर दिया है। विधेयक में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए दंड को और अधिक कठोर बनाने का प्रस्ताव है। खास कर सामूहिक बलात्कार के लिए अधिकतम सजा के रूप में मौत की सजा की परिकल्पना की गई है। शादी के झूठे बहाने या नौकरी या पदोन्नति जैसे प्रलोभन देकर किसी महिला को यौन संबंध बनाने के लिए बरगलाने के कृत्य को एक अलग अपराध के रूप में चिह्नित किया गया है। आईपीसी में नाबालिगों के बलात्कार से संबंधित प्रावधानों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है – पहली जहां पीड़िता की उम्र 12 साल से कम है और दूसरी जहां उसकी उम्र 16 साल से कम है। इस बदलाव पर व्यापक चर्चा करने की जरुरत है। जब तक बलात्कारियों के मन में मौत का डर नहीं बैठेगा तब तक यह घिनौना अपराध नहीं थमेगा। बलात्कार एक यौन हमला है, और इसके दोषियों को इस अपराध की परिणति मालूम होनी चाहिए। भारत में बलात्कार की सजा भारत में महिलाओं के खिलाफ बलात्कार चौथा सबसे आम अपराध है। 2013 में दिल्ली गैंग रेप मामले के बाद कई कानूनों में संशोधन किया गया, सहमति की उम्र भी 16 से बढ़ाकर 18 कर दी गई। यहां तक कि बलात्कार की परिभाषा का भी विस्तार किया गया। बलात्कार के मामलों के लिए सरकार द्वारा फास्ट-ट्रैक कोर्ट प्रणाली भी लागू की गई है। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 में बलात्कार की सज़ा का प्रावधान है । उसी धारा की उपधारा 2 में प्रावधानित है कि सज़ा कठोर कारावास होगी, जो 7 वर्ष से कम नहीं होगी और जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है ।
अप्रैल, 2018 के बाद से 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार के दोषी किसी भी व्यक्ति को मौत की सजा भी हो सकती है। दुनिया में कहां है बलात्कार के लिए मौत की सजा 1। मिस्र, यहां बलात्कारी को तब तक फांसी दी जाती है जब तक उसकी मौत न हो जाए 2। संयुक्त अरब अमीरात– यहां भी रेप की सजा मौत है। 3। चीन- चीन में रेप को एक क्रूर अपराध माना जाता है और रेपिस्ट को मौत की सजा दी जाती है। 4। अफगानिस्तान- यहां बलात्कारी को फांसी दे दी जाती है या सिर में गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। अपराध के 4 दिन के अंदर सजा दे दी जाती है 5। ईरान- यहां बलात्कारी को मौत की सजा दी जाती है। 6। उत्तर कोरिया- अपराधी को फायरिंग दस्ते द्वारा या तो उसके सिर या महत्वपूर्ण अंगों में गोली मार दी जाती है।

हमारे यहाँ कैसे रुकेगी यह बर्बरता पुलिस रिफॉर्म्स की बात दशकों से की जा रही है पर अभी भी पुलिस द्वारा दोषी व्यक्ति को खोजने, जांच विधियों और सबूतों को संरक्षित करने के तरीके पुराने ही हैं। बलात्कार के मामलों की जाँच के लिए पुलिस में एक नई शाखा स्थापित की जानी चाहिए, जैसे कि एंटी गुंडा स्क्वाड। स्कूलों में शिक्षकों को फीडबैक एकत्र करना चाहिए और घर पर माता-पिता को बच्चों के साथ किसी भी दुर्व्यवहार के बारे में नियमित रूप से चर्चा करनी चाहिए। विश्वविद्यालयों, निगमों, अस्पतालों या किसी भी बड़े संस्थान में यौन उत्पीड़न पैनल स्थापित किए जाने चाहिए। कुछ भद्दे इशारों और हरकतों को ज्यादातर नजरअंदाज कर दिया जाता है क्योंकि महिलाओं के पास शिकायत करने के लिए उचित जगह नहीं होती है या वे इसे उजागर करने से बहुत डरती हैं क्योंकि वे इस मुद्दे को बढ़ाना नहीं चाहती हैं। पैनल महिलाओं के प्रति किसी भी नकारात्मक दृष्टिकोण की पहचान करने के लिए अंतर्दृष्टि दे सकता है और अपराध को पहले स्थान पर होने से रोक सकता है।

यह भी जरुरी है कि हर इलाके में रहने वाले गुंडों पर नजर रखने और आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों की निगरानी के लिए पुलिस द्वारा स्वयंसेवकों की नियुक्ति की जानी चाहिए। अभी तक बलात्कारियों को पकड़ने के लिए समाज को जिम्मेदारी नहीं दी जाती। छेड़छाड़ से सख्ती से निपटा जाना चाहिए क्योंकि मनोरंजन के लिए महिलाओं को छेड़ना कोई ऐसा कार्य नहीं है जिसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए। छोटे बच्चों को सेक्स और यौन अपराधों के प्रति संवेदनशील बनाना जरुरी है। बलात्कार को रोकने के लिए राज्य सरकारों की प्रतिबद्धता भी जरुरी है। जब सरकार के संकल्प से आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लग सकता है तो बलात्कारियों पर क्यों नहीं ?

अशोक भाटिया,

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