>अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/भारत में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, जिसकी चर्चा समय-समय पर होती रहती है लेकिन अब इस प्रदूषण से होने वाली मौतों से जुड़ा आंकड़ा सामने आया है, जो बेहद चौंकाने वाला है। द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली, बेंगलुरु और मुंबई सहित भारत के 10 सबसे बड़े और सबसे प्रदूषित शहरों में औसतन रोज होने वाली मौतों का 7।2 प्रतिशत हिस्सा प्रदूषण से जुड़ा है यानी इन शहरों में रोज 7।2 प्रतिशत मौतें अधिक प्रदूषण के चलते हो रही हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश के 10 शहरों में हर साल लगभग 33,000 मौते वायु प्रदूषण के कारण हो रही है उनमे से अकेले 5100 की मौत मुंबई जैसे शहर में हो रही है । मुंबई में बढ़ते वायु प्रदूषण से न केवल जीवन का नुकसान हुआ है बल्कि आर्थिक नुकसान भी हुआ है। एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वायु प्रदूषण (Air Pollution) के कारण शहर की अर्थव्यवस्था को लगभग 2।1 अरब डॉलर का झटका लगा है। मालूम हो कि, ग्रीनपीस ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर पर्यावरण के प्रभाव पर अध्ययन किया है।
एक अध्ययन में पाया गया है कि खराब वायु गुणवत्ता के कारण सांस लेना मुश्किल हो सकता है – और आपके शरीर को ठीक होने में कुछ दिन लग सकते हैं। वायु प्रदूषण का एक प्रकार कारखानों, बिजली संयंत्रों और कार के निकास से निकलने वाले महीन कण (2।5 माइक्रोमीटर व्यास या उससे कम) हैं। दूसरा महत्वपूर्ण प्रकार ओजोन है, जो शहरी धुंध का मुख्य घटक है। जब आप उच्च स्तर के महीन कणों या ओजोन में सांस लेते हैं, तो आपके फेफड़े चिड़चिड़े हो सकते हैं। बाहरी वायु प्रदूषण को अस्थमा, दिल के दौरे, स्ट्रोक और कैंसर से जोड़ा गया है।
अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने और समय से पहले मृत्यु के बीच संबंध है। सार्वजनिक नीतियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य जगहों पर वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद की है। विशेषज्ञ समय-समय पर वायु प्रदूषण के स्तर और मृत्यु और बीमारी की दरों के वैज्ञानिक विश्लेषण की जांच करते हैं ताकि वायु गुणवत्ता मानकों का पुनर्मूल्यांकन किया जा सके।
हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में डॉ. फ्रांसेस्का डोमिनिकी के नेतृत्व में एक शोध दल ने वायु प्रदूषण के अल्पकालिक जोखिम से वृद्धों में मृत्यु के जोखिम का अनुमान लगाने का प्रयास किया। टीम ने यह भी जांच की कि क्या आबादी के कुछ उपसमूह विशेष रूप से असुरक्षित हो सकते हैं। इस अध्ययन को NIH के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल हेल्थ साइंसेज (NIEHS) द्वारा समर्थित किया गया था।
टीम ने वायु प्रदूषण पूर्वानुमान मॉडल और कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क का उपयोग करके 39,000 से अधिक ज़िप कोडों के लिए दैनिक वायु प्रदूषण के स्तर का अनुमान लगाया, यहाँ तक कि देश के निगरानी रहित ग्रामीण क्षेत्रों में भी। फिर उन्होंने 2000 से 2012 तक के मृत्यु रिकॉर्ड के आधार पर 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के 22 मिलियन वयस्कों के लिए मृत्यु के दिनों के आसपास प्रदूषण के स्तर को देखा। मृत्यु के दिनों (22 मिलियन मौतों के लिए) के वायु प्रदूषण के स्तर की तुलना अन्य दिनों (76 मिलियन नियंत्रण दिनों) के दौरान प्रदूषण के स्तर से की गई।
शोधकर्ताओं ने पाया कि जब सूक्ष्म कणों या ओजोन से वायु प्रदूषण रुक-रुक कर बढ़ता है, तो 2 दिन की अवधि में मौतों में काफी वृद्धि होती है। प्रति क्यूबिक मीटर में 10 माइक्रोग्राम सूक्ष्म कणों या 10 पार्ट प्रति बिलियन ओजोन की प्रत्येक रुक-रुक कर, वृद्धिशील वृद्धि मौतों में वृद्धि से जुड़ी थी।
बड़े डेटासेट ने शोध दल को आयु, लिंग, नस्ल, आयु और आय स्तर के आधार पर प्रभावों का अध्ययन करने में भी सक्षम बनाया। वायु प्रदूषण से होने वाली मृत्यु के सबसे अधिक जोखिम वाले लोग 85 वर्ष से अधिक उम्र के, महिला, अश्वेत या आर्थिक रूप से वंचित थे।
डोमिनिकी कहते हैं, “यह प्रदूषण के अल्पकालिक जोखिम और मृत्यु दर का अब तक का सबसे व्यापक अध्ययन है।” “हमने पाया कि वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ मृत्यु दर लगभग रैखिक रूप से बढ़ती है। वायु प्रदूषण का कोई भी स्तर, चाहे कितना भी कम क्यों न हो, मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।”
विशेषज्ञ वायु प्रदूषण के अध्ययन के परिणामों का उपयोग यह आकलन करने के लिए कर सकते हैं कि क्या वायु गुणवत्ता मानक सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पर्याप्त हैं।
ध्यान रहे कि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में गत दिनों अचानक मौसम ने करवट ली थी तब धूल के गुबार के साथ चली तेज हवा ने मुंबई वासियों को खासा परेशान किया। मुंबई के उपनगर ठाणे, अबंरनाथ, बदलापुर, कल्याण और उल्लासनगर में करीब 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चली। धूल भरी आंधी और बारिश से दिन में ही अंधेरा सा होने लगा। मुंबई एयरपोर्ट पर ऑपरेशन अगले आदेश तक बंद कर दिया गया था । कई नेशनल और इंटरनेशनल फ्लाइट्स डायवर्ट की गई हैं थी । लोगों को भी घरों में रहने की हिदायद दी गई है थी । अमूमन मुंबई में प्रदूषण का स्तर लंबे समय तक बिगड़ा नहीं रह । समुद्र की हवा चलने से प्रदूषण खत्म हो जाता है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा। आइए समझते हैं कि आखिर मुंबई की एयर क्वालिटी इतनी खराब क्यों होती जा रही है:-
मुंबई की एयर क्वालिटी खराब होने की कई वजहें हैं। लेकिन सबसे बड़ी वजह कंस्ट्रक्शन वर्क्स (निर्माण के कामों) को माना जा रहा है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई में बहुत से कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। ये वास्तव में धूल भरे प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। BMC ने बीते साल 20 अक्टूबर को एक बयान में कहा था, “वर्तमान में मुंबई में 6000 लोकेशन पर कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। ये जलवायु परिवर्तन मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन की एयर क्वालिटी पर नेगेटिव असर डाल रहा है।”
हाई राइज बिल्डिंग और कॉमर्शियल टावरों के लिए पुरानी इमारतों को गिराया जा रहा है। शहर में भीड़भाड़ को कम करने के लिए मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट्स भी चल रहे हैं। इनमें एक कोस्टल रोड और मेट्रो लाइनें शामिल हैं।
नई और हाई राइज बिल्डिंगें हवा के पैटर्न को बदल रही है। इससे समुद्री हवा का असर कम हो रहा है। समुद्र से आने वाली हवा मुंबई के पार्टिक्यूलेट मैटर और डस्ट मिक्स के साफ करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। इसीलिए पिछले महीने मुंबई के कई इलाकों में कई दिनों तक प्रदूषण का स्तर 300 से पार हो गया था।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह दूसरा साल है, जब मुंबई में एयर पॉल्यूशन का लेवल बढ़ा हो। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर रिसर्च एंड एडवोकेसी अनुमिता रॉय चौधरी के मुताबिक, “मुंबई में इस महीने की शुरुआत में दर्ज किया गया पॉल्यूशन लेवल पिछले साल के इसी समय की तुलना में बहुत ज्यादा था। प्रदूषण मुंबई के लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है। यह शहर के लिए एक चेतावनी है।”
मुंबई शहर के अधिकारियों ने बिल्डरों को कंस्ट्रक्शन साइटों पर 11 मीटर ऊंचे बैरिकेड लगाने का आदेश दिया है, जो धूल को कंट्रोल करे। इसके साथ ही कंस्ट्रक्शन साइटों और प्रमुख सड़कों पर धूल के कणों को कम करने के लिए एंटी-स्मॉग मशीनें तैनात की जाएंगी। खुले मैदानों में कूड़ा जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। हालांकि, नियमों का पूरी तरह से पालन नहीं हो रहा। इस महीने कई दिनों तक मुंबई शहर का AQI 200 से ऊपर चला गया, जो सुरक्षित सीमा से 3 गुना ज्यादा है।
मुंबई के प्रदूषण में दूसरा बड़ा योगदान सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों की संख्या भी है। मुंबई में प्राइवेट कारों की संख्या हर दिन बढ़ती जा रही है। प्रति किलोमीटर 600 कारें सड़कों पर दौड़ती हैं। वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के क्लीन एयर एक्शन विभाग के प्रोग्राम डायरेक्टर श्रीकुमार ने कहा कि मुंबई का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम सबसे अच्छा माना जाता था, लेकिन बीते कुछ समय में हालात बदले हैं। इस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है।
श्रीकुमार कहते हैं, “गाड़ियों की संख्या 40 लाख तक पहुंच गई है, ये बहुत बड़ा फिगर है। बाहर से आने वाली जो 7-8 लाख गाड़ियां हैं, उन्हें भी इसमें शामिल करके डेटा को देखा जाए, तो पता चलेगा कि मुंबई वास्तव में कितना कार्बन उत्सर्जन झेल रहा है। हमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए फिर से जागरुकता लानी होगी।” बता दें मुंबई में गाड़ियों की संख्या दो दशकों में करीब 300 फीसदी बढ़ी है। इसमें 35% वाहन 15 साल से पुरानी कैटेगरी के हैं, जो वाहनों से हुए PM10 उत्सर्जन का 49% उत्सर्जित करते पाए गए हैं।
मुंबई में बढ़ते प्रदूषण के पीछे क्लाइमेट चेंज भी एक वजह हो सकता है। ‘स्क्रॉल’ की रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्र के ऊपर तापमान में असामान्य गिरावट ने मुंबई में तटीय हवाओं की गति को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। क्योंकि अरब सागर में कम हवा चलने के कारण प्रदूषक तत्वों का फैलाव नहीं हो सका। इससे एयर पॉल्यूशन की स्थिति और खराब हो गई।