>अशोक भाटिया
स्मार्ट हलचल/लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन के बाद सबकी नजर इस पर थी कि राहुल गांधी किस सीट से लोकसभा में जाएंगे। राहुल इस बार उत्तर प्रदेश की रायबरेली और केरल की वायनाड संसदीय सीट से चुनाव जीते थे। ऐसे में उन्हें एक सीट छोड़नी थी। राहुल ने वायनाड सीट से इस्तीफा देते हुए रायबरेली सीट से अपनी सांसदी बनाए रखी। वायनाड से इस्तीफा देने के साथ ही कांग्रेस ने यह भी ऐलान कर दिया कि वायनाड सीट पर होने वाले उपचुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा उम्मीदवार होंगी। प्रियंका अगर वायनाड से चुनाव जीतती हैं तो संसद में गांधी-नेहरू परिवार एक नया कीर्तिमान रच देगा।लंबे इंतजार के बाद साल 2019 में प्रियंका गांधी जब सक्रिय राजनीति में आईं तभी से उनके चुनाव लड़ने को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जाने लगे थे। कभी उनके लिए उत्तर प्रदेश की परंपरागत अमेठी सीट, तो कभी मां सोनिया गांधी की रायबरेली सीट तो कभी वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के दावे किए जाने लगे। लेकिन वह कभी भी चुनावी समर में नहीं उतरीं।
हालांकि अब पार्टी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को वायनाड सीट से उपचुनाव में उतारने का ऐलान कर दिया। अब तक खुद को चुनाव प्रचार तक सीमित रखने वाली प्रियंका अब पहली बार चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाएंगी। प्रियंका अब अगर अपनी पहली चुनावी बाधा को पार कर लेती हैं तो संसदीय इतिहास में यह ऐतिहासिक क्षण होगा।यदि प्रियंका गांधी वायनाड से लोकसभा उपचुनाव जीत लेती हैं, तो यह पहली बार होगा कि जब गांधी-नेहरू परिवार से मां, बेटा और बेटी एक साथ संसद में होंगे। सोनिया गांधी इस समय राज्यसभा सांसद हैं तो राहुल गांधी रायबरेली से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं।
हालांकि इससे पहले कई बार इस गांधी-नेहरू परिवार के कम से कम 2 सदस्य एक समय में संसद में रहे हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहने के दौरान उनके दामाद फिरोज गांधी लोकसभा सांसद रहे थे। फिरोज गांधी पहले 1952 में फिर 1957 में रायबरेली लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। इस दौरान पीएम नेहरू भी लोकसभा सांसद (फूलपुर सीट) थे। इंदिरा गांधी पहली बार 1964 में राज्यसभा की सदस्य बनने के साथ अपने संसदीय करियर की शुरुआत की थी। जबकि उन्होंने 1967 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता था।
1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी सांसद चुनी गईं थी तब उनके बेटे संजय गांधी भी अमेठी सीट से लोकसभा सांसद चुने गए थे। संसद में पहली बार गांधी-नेहरू परिवार से मां-बेटे की जोड़ी सांसद बनी थी। लेकिन कुछ महीने बाद एक विमान हादसे में संजय की मौत हो गई। ऐसे में यहां पर कराए गए उपचुनाव कराया गया। संजय गांधी के बड़े भाई राजीव गांधी ने 1981 में अमेठी सीट पर हुए उपचुनाव में अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और लोकसभा पहुंचे। तब इंदिरा गांधी भी लोकसभा सांसद थीं और उनके बेटे भी सांसद चुने गए थे।
फिर साल 2004 में गांधी-नेहरू परिवार से मां-बेटे की जोड़ी फिर से संसद पहुंची। सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद चुनी गईं और उनके बेटे राहुल गांधी ने अमेठी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करते हुए अपनी पहली चुनावी बाधा पार की।फिरोज और इंदिरा की दूसरी संतान संजय गांधी का परिवार भी लगातार राजनीति में बना हुआ है। संजय की पत्नी मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी की जोड़ी भी संसद में 3 बार बनी रही। वरुण गांधी ने अपने चुनावी करियर की शुरुआत 2009 में पीलीभीत सीट से चुनाव जीतकर की। तब आंवला सीट से मेनका गांधी से सांसद चुनी गई थीं। 2014 में वरुण सुल्तानपुर से सांसद बने तो मां मेनका पीलीभीत से लोकसभा पहुंचीं। 2019 में वरुण पीलीभीत से तीसरी बार सांसद चुने गए तो मेनका ने सुल्तानपुर से जीत हासिल की।
हालांकि 2024 में मेनका कड़े संघर्ष के बाद चुनाव हार गईं जबकि उनके बेटे को बीजेपी ने मैदान में नहीं उतारा था। दूसरी ओर, 2004 से लेकर अब तक सोनिया और राहुल के रूप में मां-बेटे की यह जोड़ी संसद में बनी हुई है। लेकिन इस समय सोनिया लोकसभा की जगह राज्यसभा की सदस्य हैं।अब ठीक 20 साल बाद 2024 में मां-बेटे की यह बेमिसाल जोड़ी एक कदम आगे बढ़ाते हुए अपने साथ एक बेटी को भी शामिल करने जा रही है। अगले 6 महीने के अंदर वायनाड सीट पर उपचुनाव कराया जाएगा। उपचुनाव में अगर प्रियंका जीत हासिल करती हैं तो 6 महीने बाद सोनिया गांधी के परिवार के 3 सदस्य एक साथ संसद में दिखेंगे तो मेनका के परिवार का कोई सदस्य संसद में नहीं दिखेगा।
पर इन सब बातों में एक पेच भी है ।वायनाड से प्रियंका को उम्मीदवार बना कर कांग्रेस इस जीत को आसान समझ रही है पर भाजपा इतनी आसानी से वाक ओवर भी नहीं देने वाली । भले ही गांधी परिवार का साउथ से भी पुराना रिश्ता रहा है। इंदिरा गांधी 1978 का उपचुनाव कर्नाटक के चिकमगलूर से जीतीं थीं। इसके बाद 1980 में इंदिरा ने आंध्र के मेडक सीट से जीत हासिल की। 1999 में सोनिया गांधी ने भी अपना राजनीतिक करियर दक्षिण से किया था। वे 1999 में अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ी थीं और दोनों सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, बाद में बेल्लारी सीट उन्होंने छोड़ दी थी
वायनाड से प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने के फैसले के बाद सोशल मीडिया समेत राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि इस सीट से बीजेपी किसे उम्मीदवार बनाएगी। चर्चा ये भी है कि बीजेपी तेज तर्रार नेता स्मृति ईरानी को वायनाड सीट से उतार सकती है। भले ही स्मृति ईरानी इस बार अमेठी से के एल शर्मा के सामने लोकसभा चुनाव हार गई हों, लेकिन 2019 में वे कांग्रेस के गढ़ अमेठी से राहुल गांधी को हरा चुकी हैं। ऐसे में बीजेपी उन्हें इस सीट से उतार कर मुकाबला दिलचस्प बना सकती है।
गौरतलब है कि बीजेपी टिकटों को लेकर पहले भी चौंकाने वाले फैसले करते आई है। 1999 में जब सोनिया गांधी के बेल्लारी से डेब्यू करने की बात सामने आई थी, तब बीजेपी ने इस सीट से सुषमा स्वराज को टिकट देकर चुनावी मुकाबले को दिलचस्प बना दिया था। सुषमा ने इस सीट पर सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। हालांकि, वे इस चुनाव में हार गई थीं। सोनिया गांधी को 414000 वोट मिले थे। जबकि सुषमा स्वराज ने साढ़े तीन लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे। सोनिया गांधी इस चुनाव में करीब 56000 वोट से चुनाव जीत पाई थीं।
एक चर्चा में माधवी लता का भी नाम आ रहा है । माधवी लता एक अभिनेत्री होने के साथ-साथ राजनीतिज्ञ भी हैं। उन्होंने तेलुगु और तमिल फिल्मों में अभिनय किया है। माधवी ने 2008 की फिल्म ‘नचावुले’ में मुख्य भूमिका में अपनी शुरुआत की। फिल्म व्यावसायिक रूप से सफल रही और तीन नंदी पुरस्कार जीते। बाद में उन्होंने स्नेहीटुडा (2009), अरविंद 2 (2013), और अंबाला (2015) जैसी फिल्मों में अभिनय किया। 2018 में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं और 2019 आंध्र प्रदेश विधान सभा चुनाव में गुंटूर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा। हाल ही में 2024 के चुनाव में वह खूब चर्चा में रही पर वह चुनाव हार गई । हैदराबाद सीट से माधवी लता AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी से 338087 वोटों से हार गईं। ओवैसी को 661981 वोट मिले। जबकि माधवी लता को 323894 मत मिले। हार के बाद भी उसके लिए नारा गूंजा ‘ खूब लड़ी मर्दानी ……. । भाजपा की उस पर भी नज़र रह सकती है ।