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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिकता का संगम रू भीलवाड़ा में विचार गोष्ठी

भीलवाड़ा- हरिशेवा संस्कृत शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय, भीलवाड़ा में शनिवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी क्रियान्वयन एवं शिक्षा संस्कृति न्यास के परिचय विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर शिक्षा जगत से जुड़े विद्वानों, शिक्षकों और संस्थान के प्रतिनिधियों ने भाग लेकर शिक्षा नीति की बारीकियों पर चर्चा की।

प्राचार्य श्यामलाल सांगावत ने बताया कि इस गोष्ठी का उद्देश्य नई शिक्षा नीति के विभिन्न आयामों की जानकारी देना और विद्यालय स्तर पर उसके कार्यान्वयन की दिशा में ठोस कदम उठाना है। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल रोजगार का साधन नहीं, बल्कि समाज में चरित्रवान और जिम्मेदार नागरिक तैयार करने का माध्यम भी है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर डॉ. राजीव सक्सेना मौजूद रहे। क्षेत्रीय संयोजक नितिन कासलीवाल, चित्तौड़ प्रांत कार्यवाह डॉ. शंकरलाल माली और संस्था सचिव ईश्वरलाल आसनानी सहित अनेक शिक्षाविदों ने विचार व्यक्त किए।

क्षेत्रीय संयोजक नितिन कासलीवाल ने शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का परिचय देते हुए बताया कि संस्था 24 मई 2007 से शिक्षा क्षेत्र में सक्रिय है। उन्होंने न्यास की अब तक की उपलब्धियों को विस्तार से बताते हुए 10 विषय, 3 आयाम और 3 विभागों की जानकारी दी। कासलीवाल ने कहा कि न्यास का प्रमुख उद्देश्य भारतीय शिक्षा परंपरा और संस्कारों को संरक्षित कर विद्यार्थियों को जीवन मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान करना है।

चित्तौड़ प्रांत कार्यवाह डॉ. शंकरलाल माली ने अपने संबोधन में कहा कि शिक्षा का असली मकसद छात्रों को ज्ञानवान बनाने के साथ-साथ उन्हें चरित्रवान, पर्यावरणप्रेमी और समाजोपयोगी बनाना है। उन्होंने नई शिक्षा नीति की सराहना करते हुए कहा कि इससे विद्यार्थियों के भीतर मूल्यपरक शिक्षा का विकास होगा और वे जिम्मेदार नागरिक बनेंगे।

मुख्य अतिथि प्रोफेसर डॉ. राजीव सक्सेना ने भारत में अब तक लागू हुई शिक्षा नीतियों का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति 2020 भारतीय ज्ञान परंपरा और छात्र की अभिरुचि के अनुरूप बनाई गई है। इसमें विद्यार्थियों को अपनी रुचि और प्रकृति के अनुसार विषय चयन करने की स्वतंत्रता दी गई है। उन्होंने इसे रोजगारपरक, ज्ञान, चरित्र और कौशल आधारित बताते हुए कहा कि यह नीति आने वाले समय में देश को नई दिशा प्रदान करेगी।

संस्था सचिव ईश्वरलाल आसनानी ने सुझाव दिया कि पाठ्यक्रम में जो अंश हटाए गए हैं, उन्हें पुनः जोड़ा जाना चाहिए ताकि विद्यार्थी भारतीय ज्ञान परंपरा से पूरी तरह से जुड़ सकें। वहीं, डॉ. रूपा पारीक ने व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में आवश्यक संशोधन का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि रोजगारपरक शिक्षा के साथ-साथ जीवन मूल्यों को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

गोष्ठी में शिक्षाविद श्यामलाल सांगावत, दर्गालाल बारठ, सत्यदेव पत्रिया, लेहरूलाल जाट, जगदीशचंद्र बांगड़, सुशीला जाट, दुर्गेश जोशी और नानूराम कुम्हार सहित कई शिक्षक और शिक्षा प्रेमी उपस्थित रहे। सभी ने एकमत होकर यह कहा कि शिक्षा नीति 2020 भारतीय संस्कृति और आधुनिक आवश्यकताओं का संगम है, जिसका सही क्रियान्वयन विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर भारत की राह पर अग्रसर करेगा।

अतिथियों का स्वागत मोहनलाल शर्मा और संतूराम खंडेलवाल ने किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में विद्यालय परिवार ने सक्रिय सहयोग दिया।

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