अशोक भाटिया , मुंबई
स्मार्ट हलचल/मोदी सरकार ने एक फैसले के तहत राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) पर लगी उस पाबंदी को हटा लिया गया है, जिसके कारण सरकारी कर्मचारियों को संघ के कार्यक्रम में जाने पर मनाही थी। 58 साल पहले ये फैसला इंदिरा गांधी की सरकार ने लिया था, जिसे केंद्र की मोदी सरकार ने पलट दिया है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी करते हुए सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटाया है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस आदेश का स्वागत किया है। केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकारों द्वारा जारी उन आदेशों में संशोधन किया गया है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाया गया था।आरोप है कि पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर कर्मचारियों को कड़ी सजा देने तक का प्रावधान लागू किया गया था। रिटायर होने के बाद पेंशन लाभ इत्यादि को ध्यान में रखते हुए सरकारी कर्मचारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने से बचते थे।
सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रम में जाने पर प्रतिबंध लगाने के फैसले को सही बताते हुए सरकार ने तब दलील दी थी कि आरएसएस की वजह से कर्मचारियों की तटस्थता प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, यह भी बताया गया था कि इसे धर्मनिरपेक्ष समाज के लिए उचित नहीं माना जाएगा। यानी अगर सरकारी कर्मचारी आरएसएस की शाखा में गए, तो धर्मनिरपेक्षता के लिए ये ठीक नहीं होगा। और इसीलिए सिविल सेवा (आचरण) नियम 1964 का हवाला देते हुए सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस कार्यक्रम में जाने पर बैन लगा दिया गया था।
अब जब राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर लगा प्रतिबंध केंद्र सरकार ने हटा दिया है तब इसको लेकर विवाद उफान पर है। विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है। वहीं इस मामले में सरकार ने अपने पक्ष में करीब पांच दशक पहले के दो कोर्ट के आदेश की चर्चा की है। इसमें एक केस पंजाब और हरियाणा राज्य के हाई कोर्ट का है, तो वहीं दूसरा मैसूर हाई कोर्ट का।
साल 1965 में रामफल नाम के व्यक्ति को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में भाग लेने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि इस मामले में उन्होंने अपनी भागीदारी स्वीकार की थी। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर विरोध जताया था कि आरएसएस कोई राजनीतिक दल नहीं है और इसलिए यह किसी नियम का उल्लंघन नहीं है। लेकिन पंजाब सरकार ने ये विचार किया कि आरएसएस एक राजनीतिक दल है और इसलिए उनकी भागीदारी आचरण नियमों के विरुद्ध थी।इसी कारण उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इस बर्खास्तगी के आदेश के खिलाफ रामफल ने हाई कोर्ट में रिट याचिका की। इस याचिका को अदालत ने इस लिए स्वीकार कर लिया क्योंकि कि सरकार के पास ऐसा कोई तथ्य नहीं था, जिससे यह माना जा सके कि आरएसएस एक राजनीतिक दल है। इसके बाद साल 1967 में इस अदालत ने रामफल की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया।
सरकार मौजूदा समय में अपना पक्ष रखने के लिए एक मैसूर उच्च न्यायालय के फैसले को भी बता रही है। इसमें एक सरकारी अधिकारी का प्रमोशन सिर्फ इसलिए नहीं किया जा रहा था क्योंकि वे आरएसएस के सक्रिय सदस्य थे। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। यहां कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया आरएसएस एक गैर-राजनीतिक और सांस्कृतिक संगठन है। इसमें गैर-हिंदुओं के प्रति कोई घृणा या दुर्भावना नहीं है। साल 1966 में कोर्ट ने आदेश दिया कि आरएसएस के सदस्य प्रमोशन के लिए अयोग्य नहीं ठहराए जाएंगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक पिछले कई वर्षों से समय-समय पर राष्ट्रीय आपदा की परिस्थितियों में मदद के लिए आगे रहता है। लेकिन 1958 में सरकारी कर्मचारियों को संघ गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रतिबंधित किया गया था। हालांकि लोगों ने संघ को राजनैतिक दल नहीं बल्कि एक सामाजिक संगठन माना है।
साल 2000 में संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह ने सरकारी कर्मचारियों के द्वारा संघ की गतिविधियों मे भाग लेने पर प्रतिबंध लगाने अथवा हटाने की कार्यवाही में हस्तक्षेप न करते हुए इसके निर्णय का अधिकार सरकारों पर छोड़ दिया था। बता दें, ब्रिटेन में न्यायपालिका तथा पुलिस विभाग में काम कर रहे कर्मचारियों को छोड़कर बाकी के सभी शासकीय कर्मचारियों को सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों, यहां तक की राजनैतिक पार्टी की गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार है।
ज्ञात हो कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर कांग्रेस के कार्यकाल में तीन बार प्रतिबंध लगाया गया था। लेकिन इसके बावजूद आरएसएस की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया और निरंतर आरएसएस का कारवां आगे बढ़ रहा है।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर कांग्रेस की सरकार में जो तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है उसमें सबसे पहले आजादी के तुरंत बाद प्रतिबंध लगा था। 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके पीछे की वजह ये थी कि महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया था। उस दौरान 18 महीने तक संघ पर प्रतिबंध लगा था। ये प्रतिबंध 11 जुलाई, 1949 को तब हटा जब देश के उस वक्त के गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की शर्तें तत्कालीन संघ प्रमुख माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने मानी थी। जानकारी के मुताबिक इन शर्तों में संघ को अपना संविधान बनाने और उसे प्रकाशित करने की बात थी। जिसमें चुनाव की खास अहमियत होगी और लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव होगा। इसके साथ ही आरएसएस की देश की राजनीतिक गतिविधियों से पूरी तरह से दूरी बनाकर रखेगा।
आरएसएस को दूसरी बार प्रतिबंध का सामना कांग्रेस सरकार में आपातकाल के दौरान करना पड़ा था। हालांकि इस दौरान सिर्फ संगठन ही नहीं पूरे देश बहुत सारे संगठन, मीडिया पर प्रतिबंध लगा था। दरअसल इंदिरा गांधी ने साल 1975 जब देश में इमरजेंसी लगाई थी, उस वक्त आरएसएस ने इसका जमकर विरोध किया था। इस विरोध के कारण बड़ी संख्या में आरएसएस के लोगों को जेल में डाला गया था। इस दौरान आरएसएस पर 2 साल तक पाबंदी लगी हुई थी। इमरजेंसी के बाद जब चुनाव की घोषणा हुई थी, तो जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया था। इसके बाद साल 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई थी, उस वक्त संघ पर लगा प्रतिबंध हटाया गया था।
इसके अलावा आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध साल 1992 में लगा था। दरअसल पहली बार बीजेपी ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा था, इस चुनाव में पार्टी महज 2 सीटों पर सिमट गई थी। लेकिन इसके बाद बाबरी मस्जिद ने राजनीतिक में बड़ा उलटफेर किया था। 1986 में अयोध्या के विवादित परिसर का ताला खोल दिया गया और वहां से मंदिर-मस्जिद की राजनीति गर्मा गई थी। जानकारी के मुताबिक 1986 से 1992 के बीच सामाजिक खूब टकराव हुआ था। इस कारण जगह-जगह हिंसा हुई और लोगों की जान गई थी। इसके बाद साल 1992 में अयोध्या में भीड़ ने विवादित ढांचे का गुंबद गिरा दिया था। उस वक्त देश की स्थिति देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन लंबी जांच के बाद आरएसएस के खिलाफ कुछ नहीं मिला था। नतीजतन आखिर में तीसरी बार भी 4 जून 1993 को सरकार को आरएसएस पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा था।
बता दें कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) दुनिया का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन है और इसके स्वयंसेवक देश भर में सक्रिय हैं। भारतीय जनता पार्टी के ज्यादातर बड़े नेता संघ से जुड़े हुए हैं, जिनमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं, जिन्होंने संघ में लंबे समय तक अपनी सेवा दी है। गौरतलब है कि आरएसएस की स्थापना केशव बलराम हेडगेवार ने की थी। संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 विजयदशमी के दिन की गई थी। यही वजह है कि हर साल आरएसएस विजयादशमी पर अपना स्थापना दिवस मनाता है। उस वक्त डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने एक छोटे समूह के साथ की थी। आरएसएस की कार्यशैली का मूल आधार दैनिक शाखा को माना जाता है जिनकी संख्या आज 65 हजार बताई जाती है । संघ दुनिया के लगभग 80 से अधिक देशों में कार्यरत है। संघ के लगभग 50 से ज्यादा संगठन राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है व लगभग 200 से अधिक संघठन क्षेत्रीय प्रभाव रखते हैं। जिसमे कुछ प्रमुख संगठन है जो संघ की विचारधारा को आधार मानकर राष्ट्र और समाज के बीच सक्रिय है।