कांवड़ की यात्रा शिव भक्तों के लिए महत्वपूर्ण त्योहार से कम नहीं होती। इस महीने का यानी सावन के महीने का शिव भक्ति न जानें कब से इंतजार करते हैं। वहीं आपको बता दें कि इस साल कांवड़ यात्रा 22 जुलाई को निकाली जाएगी यानी सावन के महीने की शुरुआत इसी दिन से हो रही है।
लेकिन क्या आप जानते हैं की कांवड़ यात्रा भी कई प्रकार की होती है। जी हां, कावड़ यात्रा कई तरीके से निकाली जा सकती है। आज का हमारा लेख इसी विषय पर है। आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि कावड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है और सबसे कठिन यात्रा कौन सी होती है।
कांवड़ मुख्यत: चार प्रकार की होती है और हर कांवड़ यात्रा के नियम और महत्व अलग होते हैं। इनमें सामान्य कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़, दांडी कांवड़ हैं। जो व्यक्ति जैसी कांवड़ लेकर जाता है, उसी हिसाब से तैयारियां भी की जाती है। शिव मंदिरों में भी चार कांवड़ को लेकर आने वाले लोगों के लिए उसी हिसाब से तैयारी भी की जाती है। आइए जानते हैं इन कांवड़ों के बारे में…
कितने तरह की होती है कांवड़ यात्रा?
1 – सामान्य कांवड़ यात्रा
बता दें कि इस यात्रा के दौरान कांवरियां बीच में रुक भी सकते हैं और आराम भी कर सकते हैं। हालांकि वह अपना कांवड़ जमीन पर नहीं रख सकते। वरना उन्हें दोबारा से अपनी कांवड़ यात्रा शुरू करनी पड़ती है।
2 – डाक कांवड़ यात्रा
इस यात्रा में कावड़ यात्रा एक भी मिनट नहीं रुकते हैं। वहीं लगातार चलते रहते हैं। ऐसे में मंदिरों में और जगह-जगह पर इन लोगों के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। यह थोड़ी मुश्किल यात्रा मानी जाती है।
3 – खड़ी कांवड़ यात्रा
इस कांवड़ यात्रा में भी कांवरियां लगातार चलते रहते हैं। लेकिन उनके साथ दो से तीन लोग भी चलते हैं जो बीच-बीच में उनके कांवड़ को पकड़ते हैं और उन्हें आराम देते हैं।
4 – दांडी कांवड़ यात्रा
यह कावड़ यात्रा बेहद ही मुश्किल और कठिन मानी जाती है। इस यात्रा के दौरान कांवरिया दंड देते हुए जाते हैं। यह कारण है कि इस यात्रा के दौरान कांवड़ियों को अत्यधिक समय लग जाता है।
कांवड़ यात्रा का महत्व क्या है
कांवड़ यात्रा, भगवान शिव के भक्तों द्वारा अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने के लिए की जाने वाली एक पवित्र तीर्थयात्रा है। इस यात्रा में, श्रद्धालु बांस से बनी कांवड़ में गंगाजल भरकर, उसे अपने कंधों पर लेकर मीलों पैदल चलते हैं और अपने इलाके के शिवालयों में जाकर जलाभिषेक करते हैं। ऐसा माना जाता है कि कांवड़ यात्रा से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। यह यात्रा कठिनाइयों और चुनौतियों से भरी होती है, लेकिन फिर भी श्रद्धालु इसे पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ करते हैं।
कांवड़ यात्रा के नियम क्या हैं
- आप अगर कांवड़ यात्रा में जाना चाहते हैं, तो सबसे पहले मांस, शराब और नशे की चीजों से दूर बना लें। साथ ही आपको यात्रा के दौरान भी ऐसी चीजों को साथ में रखने से परहेज करना चाहिए।
- कांवड़ यात्रा में भगवान शिव के लिए जल गंगा नदी से ही लाया जाता है। आप घर पर रखे किसी अन्य जल से भगवान का जलाभिषेक नहीं कर सकते। याद रखें कि अगर आप कांवड़ यात्रा में जल लाने जा रहे हैं, तो गंगा या किसी अन्य नदी से जल ही लाएं।
- कांवड़ यात्रा पैदल की जाती है। कांवड़ यात्रा में जल लाने के लिए किसी वाहन का प्रयोग न करें। पूरे श्रद्धाभाव के साथ पैदल यात्रा करजे ही जल लाएं।
- कांवड़ यात्रा में आप जो भी जल लाएं, उसे जमीन पर न रखें बल्कि जो कांवड़ आपके भगवान शिव के लिए निर्मित की है, इसी में जल को बांधकर लाएं। कांवड़ यात्रा में जो भी जल आप भगवान शिव के लिए लाते हैं, उसे भूमि पर न रखें।
- कांवड़ यात्रा के दौरान भगवान शिव के नाम का उच्चारण करते हुए आना चाहिए।
कांवड़ यात्रा करने के लाभ
पौराणिक मान्यता है कि आप अगर भगवान शिव के भक्त हैं, तो आपको जीवन में एक बार तो कांवड़ यात्रा करनी ही चाहिए। कांवड़ यात्रा करने वाले भक्त को भगवान शिव की कृपा मिलती है। आप अगर पूरे भक्ति भाव के साथ भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं, तो इससे आपके सारे कष्ट दूर होते हैं और आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके अलावा कांवड़ यात्रा से जुड़ी एक और मान्यता है कि अगर आपसे भूल से कोई पाप या गलती हो जाती है, तो आप भगवान शिव का जलाभिषेक करके उनसे माफी भी मांग सकते हैं। भगवान शिव आपको जरूर क्षमा करेंगे और आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी।