Homeअध्यात्मभाद्रपद अमावस्या: पितरों की तृप्ति और शनिदेव की कृपा का पर्व

भाद्रपद अमावस्या: पितरों की तृप्ति और शनिदेव की कृपा का पर्व

विजय कुमार शर्मा
स्मार्ट हलचल|भाद्रपद मास का विशेष महत्व है। इस मास की अमावस्या तिथि इस वर्ष शनिवार, 23 अगस्त 2025 को पड़ रही है। जब अमावस्या शनिवार को आती है तो इसे शनिश्चरी अमावस्या कहा जाता है। यह दिन अपने आप में अत्यंत पुण्यदायी और शुभ फलदायी माना जाता है।
भाद्रपद अमावस्या को ही पिठोरी अमावस्या और कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है। इस तिथि का संबंध पितरों की तृप्ति, संतान-सुख और दीर्घायु से है।
इस दिन स्नान, दान, तर्पण और पितृ पूजन का महत्व शास्त्रों में स्पष्ट किया गया है। विशेष रूप से गंगा, यमुना, नर्मदा और शिप्रा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना, पितरों के लिए जल अर्पण करना और दान करना परम कल्याणकारी होता है। जो लोग नदी स्नान करने में असमर्थ होते हैं, वे घर पर ही स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित कर सकते हैं।
भाद्रपद अमावस्या का एक और महत्व है,इस दिन वर्ष भर पूजा-पाठ और श्राद्ध कर्मों के लिए आवश्यक कुशा घास एकत्र की जाती है। यही कारण है कि इसे कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है।
पितृ पक्ष की शुरुआत से पूर्व आने वाली यह अमावस्या पितरों की कृपा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करती है। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितर धरती पर आते हैं और उनके निमित्त किया गया श्राद्ध-तर्पण परिवार में सुख-समृद्धि लाता है।
इस दिन व्रत रखने और विधिवत पूजा करने वाली महिलाओं को संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
दान के रूप में इस दिन विशेषकर काले तिल, सरसों का तेल, काला कंबल, छाता, वस्त्र, जूते-चप्पल, अनाज, तेल-घी और भोजन का दान करना श्रेष्ठ माना गया है।
शनिश्चरी अमावस्या के योग में शनिदेव की आराधना भी विशेष फलदायी मानी गई है। सरसों के तेल से शनिदेव का अभिषेक करें, नीले फूल अर्पित करें, काले तिल से बने व्यंजन का भोग लगाएँ और “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जप करें। इसी प्रकार इस दिन भगवान विष्णु और माता महालक्ष्मी की पूजा भी करनी चाहिए। पंचामृत से अभिषेक, पीले चंदन और तुलसी पत्र अर्पण करने से परिवार में लक्ष्मी-कृपा बनी रहती है।
पीपल के वृक्ष की पूजा और परिक्रमा भी अमावस्या पर शुभ मानी गई है। पीपल के नीचे दीपक जलाना और शनिदेव का स्मरण करना जीवन से नकारात्मकता को दूर करता है।
भाद्रपद अमावस्या पर गाय, कौवे और कुत्तों को भोजन कराने की भी परंपरा है। यह कर्म पितरों को संतुष्ट करता है और उनके आशीर्वाद से घर-परिवार में सुख-शांति आती है।
संक्षेप में, भाद्रपद अमावस्या एक ऐसा पर्व है जिसमें पितरों की तृप्ति, संतान-सुख, दान-पुण्य और देवताओं की आराधना,सब एक साथ करने का अवसर मिलता है। यह तिथि जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है।

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