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किताबो के बोझ तले दब रहे अभिभावको के सपने, आखिर कोई क्यो करेगा सुनवाई


School is ruining the dreams of children and parents


शिक्षा के मंदिर बने लूट की दुकाने, खुलेआम चल रहा कमीशन का खेल।

ओम जैन

शंभूपुरा।स्मार्ट हलचल/सालभर अभिभावक जैसे तैसे करके फीस भरकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए अच्छे विद्यालयों में पढ़ाते है लेकिन साल पूरा होते ही जैसे ही नया सत्र शुरू होता है, भारी भरकम कीमती किताबो कॉपियों का बोझ फिर उन्हें दबा देता है, ओर मजबूरन उन्हें 4 गुनी कीमतों में अपने बच्चो के लिए पाठ्यक्रम खरीदना ही पड़ता है।

नया सत्र शुरू होते ही स्कूलो में लगे काउंटर

सरकार द्वारा रोक के बावजूद धड़ल्ले से कॉपिया किताबे विद्यालय परिसर में बेची जा रही है, कुछ अभिभावकों ने बताया कि चाहे अभिभावकों के साथ कुछ भी हो लेकिन जिला मुख्यालय पर बैठे प्रसासनिक ओर विभागीय अधिकारी कुछ नही बोलेंगे क्योंकि यह सब कमीशन का खेल है जो चलता आ रहा है और चलता ही रहेगा, चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय सहित जिले के विभिन्न क्षेत्रों में सर्वे पर पता चला कि कुछ अधिकांश विद्यालय तो अपने ही विद्यालय परिसर में किताबो कॉपियों की दुकाने खोलकर बैठ गए और खुलकर लूट रहे लेकिन इनके ऊपर जांच तो दूर खुद इनके विभाग वाले ही इनपर आंच तक नही आने देते।

मोटा कमीशन सब स्कूल संचालको की जेब मे

जानकारी जुटाने पर एक बुक एजेंसी ने बताया कि हमारे द्वारा किसी भी विद्यालय की बुक्स जो वो सलेक्ट करते उस पर एमआरपी पर 65 प्रतिशत कमीशन दिया जाता है, जिसमे से अभिभावकों को तो सिर्फ़ एमआरपी पर ही खरीदना पड़ता है बाकी सब स्कूल संचालको कि जेब मे जा रहा है, इससे सिर्फ जिला मुख्यालय पर ही करोड़ो रुपये काला धन के रूप में स्कूल संचालको की जेब मे जा रहे है जिससे सीधा सीधा राजस्व हानि तो हो ही रही साथ ही अभिभावकों की जेब भी खाली कर रहे है।

चार गुने भाव मे कॉपिया ओर लेनी भी अनिवार्य

किताबो ओर कॉपियों पर ये अपने स्कूल का नाम छपवाकर जैसे अपना ब्रांड बना रहे है और मोटी एमआरपी की किताबो का सलेक्शन करते ताकि ज्यादा कमा सके, वही कॉपियों पर तो लूट मानो दिन में तारे दिखाने जैसी है, चार गुनी रेट में कॉपियां उपलब्ध करवा रहे और वो भी कोई अभिभावक बाहर से नही ले सकते, सब वही से लेना अनिवार्य कर रखा है, जिससे ये निजी विद्यालय तो शिक्षा विभाग के सभी नियम ताक में रखकर खुली लूट करने से बाज नही आ रहे।

शिक्षा विभाग की खामियों का अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा

शिक्षा विभाग के नियमो की तो धज्जिया उड़ाते हुए ये बड़े बड़े निजी विद्यालय शिक्षा विभाग को ही आईना दिखा रहे है, जबकि सिस्टम में काफी खामियां है जिसमे सुधार की आवश्यकता है जैसे 5 साल से पहले यूनिफॉर्म में बदलाव ना हो, किसी भी विद्यालय की ड्रेस ओर बुक्स शहर के सभी दुकान पर उपलब्ध हो, कॉपिया लेने की कोई अनिवार्यता नही होनी चाइये, ओर हर विद्यालय का कक्षावार पाठ्यक्रम का मूल्य भी तय हो ताकि शिक्षा व्यवसाय बनकर ना रह जाए।

शिक्षा के मंदिर में कमीशन का धंधा

विद्यालयों को वैसे तो शिक्षा का मंदिर कहा जाता है लेकिन इन्ही मन्दिरो में लूट, भ्रष्टाचार खुलकर सामने आ रहा है, इससे हर अभिभावक परेशान है लेकिन कमीशन का यह मोटा खेल अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक जा रहा है तो फिर यहाँ कोन अपना मुह खोले, कोई 5 रुपये कि चीज के हमसे 6 ले ले तो हम सब चिल्लाने लगते है लेकिन यहाँ 5 के सीधे 20-25 किये जा रहे है लेकिन फिर भी जिम्मेदार चुप है तो इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि यह सब मिलिभग का खेल है जो अभिभावकों पर भारी पड़ रहा है।

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