काछोला 28 जनवरी -स्मार्ट हलचल/कस्बे में मंगलवार की रात बड़ी फजीलत वाली रात को मुस्लिम जनों शबे मेराज की रात मनाई। यह रात अरबी कैलेंडर के मुताबिक माह रज्जब-उल-मुरज्जब की 27 वीं शब रात होती है, जिसे शब-ए-मेराज कहा जाता है। इस दौरान मुस्लिम जन व आशिक ए रसूल रातभर जागकर घर में, मस्जिदों में अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते हैं। कुरान शरीफ का पाठ करते हैं।
इससे पहले जामा मस्जिद पेश इमाम मौलाना मोहम्मद शाह आलम ने व उलेमा -ए-कराम ने अपनी तकरीर में शब-ए-मेराज की फजीलत, अहमियत और इस रात कैसे इबादत करें जैसे विषय पर चर्चा की। जामा मस्जिद में बाद नमाज जोहर व असर की नमाज के पूर्व तकरीर में पेश इमाम मौलाना मोहम्मद शाह ने कहा कि अल्लाह ने अपने सबसे प्यारे नबी हजरत मोहम्मद साहब (सअव ) को मेराज की रात अता फरमाई यानी कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब (सअव ) को अपने करीब आने का मौका दिया। उन्होंने कहा कि 27 रज्जब की रात फरिश्ते हजरत जिबरैल आए और उन्हें अल्लाह के हुक्म से बुर्राक की सवारी में आसमानों की सैर कराई। इस रात अल्लाह ने अपने नबी को पास बुलाया और एक बड़ा तोहफा नमाज के रूप में दिया।
मौलाना शाह ने बताया कि इसी रात अल्लाह ने अपने प्यारे नबी पैगंबर हजरत मोहम्मद (सअव ) के मार्फत मुसलमानों पर पांच वक्त की नमाज पढ़ना फर्ज (अनिवार्य) करार दिया। इस बाबत मौलाना शाह ने बताया कि इस रात नमाज का एहतमाम अधिक से अधिक करनी चाहिए और जीवन में पांच समय के नमाज को नहीं छोड़ना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अच्छाई व बुराई और ईमान के बीच का फर्क नमाज है। अल्लाह की वहदानियत और रसूल पर इमान यानी कलमा तैयबा के बाद कोई व्यक्ति ईमान में दाखिल होता है, इसके बाद उन्हें नमाज ,रोजा ,जकात और हज जैसे फर्ज अदा करने होते हैं। इसके अलावा वाल्दैन की सेवा, गरीब,यतीम,बेवाओं की खिदमत,मानव मूल्यों के अन्य आचरण जो कि कुरान हदीस में वर्णित है, उन्हें अपने जीवन में उतारने की जरूरत है।