पूर्व में रेंजर प्रभुलाल,फॉरेस्टर विश्राम मीणा और सहायक वनपाल शंकर माली को किया गया था निलंबित।
ग्रामीणों का सवाल किसके संरक्षण पर इतना बड़ा जंगलकांड,कोन है मुख्य सरगना..?
शाहपुरा@(किशन वैष्णव )उपखण्ड क्षेत्र के बोरड़ा बावरियान रेंज के जंगल में लगभग 800 बीघा जंगल के बेरहम उजाड़ से शुरू हुआ विवाद अब राजस्थान सरकार के शीर्ष स्तर तक पहुँच चुका है। बड़े पैमाने पर हुई अवैध बबूल कटाई, मशीनों से की गई सफाई और वन अधिकारियों की भारी लापरवाही उजागर होने के बाद राज्य सरकार ने गुरुवार को आईएफएस उप वन संरक्षक डीएफओ भीलवाड़ा गौरव गर्ग को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। कार्मिक विभाग द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि जांच पूर्ण होने तक डीएफओ गौरव गर्ग जयपुर में उपस्थिति देंगे।इस पूरे प्रकरण की शुरुआत कुछ सप्ताह पहले तब हुई जब खुलासा हुआ कि बोरड़ा बावरियान क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय कटाई माफिया ने करीब 15 जेसीबी और भारी मशीनों का उपयोग कर बड़े हिस्से को साफ कर दिया था। कटाई रोकने पहुँची टीम पर हमले की कोशिश तक हुई और मशीनें जंगल से रातों-रात गायब कर दी गईं।स्थानीय सूत्रों से जानकारी यह भी थी कि स्थानीय वन कर्मचारियों द्वारा कटान रोकने का भी प्रयास किया था हालांकि सतर्कता व सूचना तंत्र में गंभीर कमियों को स्वीकार किया गया।भारी मात्रा में बबूल कटाई मामले में जांच रिपोर्ट के आधार पर मुख्य वन संरक्षक अजमेर ख्याति माथुर ने 6 नवंबर को पहला बड़ा कदम उठाते हुए क्षेत्रीय वन अधिकारी प्रभुलाल, फॉरेस्टर वनपाल विश्राम मीणा, सहायक वनपाल शंकर लाल को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था।जबकि ग्रामीणों के अनुसार यह सामने आया कि कटाई रोकने के दौरान विश्राम मीणा और उनकी टीम ने अपनी जान जोखिम में डालकर जंगल को बचाने की कोशिश की थी । ग्रामीणों का कहना है कि कार्रवाई गलत दिशा में गई और जिन्होंने माफिया से भिड़कर जंगल बचाया, उन्हीं को सजा दे दी गई जबकि बड़े तस्कर आज भी खुले घूम रहे हैं।मामला यहीं नहीं रुका। कटाई में उपयोग की गई मशीनरी के बारे में वन विभाग को समय पर जानकारी न देना, कटान का क्षेत्रफल लगातार बढ़ते रहना, वन तस्करों की गिरफ्तारी न होना और विभागीय निगरानी तंत्र पूरी तरह फेल होना इन सभी बिंदुओं के बाद सरकार ने अब कार्रवाई को और आगे बढ़ाते हुए डीएफओ गौरव गर्ग तक को निलंबित कर दिया है। आदेश में कहा गया है कि निलंबन अवधि के दौरान वे जयपुर मुख्यालय में रहेंगे और किसी भी तरह की फील्ड ड्यूटी या दखल नहीं देंगे।800 बीघा क्षेत्र में हुई अवैध कटाई सबसे बड़ी पर्यावरणीय आपदाओं में से एक माना जा रहा हैं। इससे वन क्षेत्र, स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, चराई भूमि, जंगली जीवों के आवास और मिट्टी के संरक्षण पर बड़ा खतरा पैदा हो गया है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि लंबे समय से सक्रिय तस्कर गैंग को दबंगई और राजनीतिक संरक्षण के कारण किसी ने नहीं रोका, और कार्रवाई केवल निचले स्तर के कार्मिकों तक सीमित रही। कई गांवों के लोगों ने फॉरेस्टर विश्राम मीणा के समर्थन में विरोध प्रदर्शन भी किया तथा मांग की कि वास्तविक दोषियों को पकड़कर जंगल को बचाने वाले कर्मचारियों को नहीं, बल्कि माफिया को सजा मिले। एफ आई आर दर्ज होने के बावजूद अब तक किसी बड़े माफिया की गिरफ्तारी नहीं हुई, जो पूरे मामले को और विवादास्पद बनाता है।अब सूत्रों से संकेत मिले है हैं कि विभागीय जांच अब उच्च स्तर पर होगी और आवश्यकतानुसार और भी बड़े अधिकारी कार्रवाई के दायरे में लाए जा सकते हैं।राजस्थान के वन विभाग में यह मामला वर्षों बाद पहली बार है जब फील्ड स्टाफ से लेकर डीएफओ तक एक ही कार्रवाई श्रृंखला में निलंबित हुए हैं। यह घटना न केवल प्रशासनिक विफलता का बड़ा उदाहरण बनकर सामने आई है, बल्कि जंगल बचाने के लिए संघर्ष कर रहे कर्मचारियों और ग्रामीणों की पीड़ा का भी प्रतीक बन गई है।मामले में यह भी सवाल खड़े हो रहे है कि किसके संरक्षण और इशारे में इतना बड़ा जंगलकांड हुआ है,ओर इस जंगलकांड का मुख्य आरोपी कोन है।सरकारी अफसर किसकी मिलीभगत से इतने बड़े जंगलकांड में सहयोगी बने होंगे।


