बानसूर। स्मार्ट हलचल/कस्बे के निकटवर्ती ग्राम बिलाली में गुरुवार को शीतला माता का लक्खी मेला बड़े ही धूमधाम से आयोजित हुआ। मेले में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ रहीं, श्रद्धांलुओं ने माता के दर्शन और पूजा-अर्चना कर मन्नतें मांगी। श्रद्धालुओं ने ठंडे व्यंजनों का भोग लगाकर माता से सुख-समृद्धि की कामना की। परंपरा के अनुसार छोटे बच्चों के जड़ूले उतारे गए, जिससे मेले का धार्मिक महत्व और बढ़ गया। मेले की सुरक्षा और व्यवस्थाओं को लेकर प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद नजर आया। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष इंतजाम किए गए। भीड़ को नियंत्रित करने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस बल तैनात रहा। इस अवसर पर स्थानीय विधायक देवीसिंह शेखावत भी मंदिर पहुंचे कुछ और शीतला माता के दर पर मत्था टेकर क्षेत्र की खुशहाली व तरक्की की कामना की। मेले की व्यवस्थाओं कों बनाएं रखने के लिए बानसूर एसडीएम अनुराग हरित, नारायणपुर तहसीलदार अनिल कुमार, डीएसपी दशरथ सिंह सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी मौके पर मौजूद रहे और व्यवस्थाओं का जायजा लिया। प्रशासन की सतर्कता से मेला शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित रूप से संपन्न हुआ।
क्षेत्र में आस्था का प्रमुख केन्द्र है शीतला माता मंदिर
यह लक्खी मेला वर्षों से आस्था और परंपरा का प्रतीक बना हुआ है, जहां दूर-दराज से श्रद्धालु माता के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। मेले में लगे विभिन्न प्रकार के झूले, खाने-पीने की दुकानें और अन्य मनोरंजन के साधनों ने भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। श्रद्धालुओं ने मेले का भरपूर आनंद लिया और हर्षोल्लास के साथ इसे संपन्न किया।
बिलाली में 12वीं सदी में प्रकट हुई शीतला माता,चर्म रोगों से दिलवातीं हैं छूटकारा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बिलाली गांव में शीतला माता 12 वीं शताब्दी में प्रकट हुई। उस समय यहां नीमराना के चौहान वंश का राज था। कुल के कुंड निवासी बीला गुर्जर गोत्र दौराता और बीलाड़ कुम्हार गोत्र बासनीवाल को पशु चराने के दौरान एक दिन आकाशवाणी हुई और उसी के अनुसार उन्होंने मंदिर की स्थापना की। इसके साथ ही बिलाली नाम से गांव की नींव रखी। प्रारंभ में माता पीर संजयनाथ की तपोस्थली कूल के कुंड में प्रकट हुई। वहीं बाद में निज स्थान पर स्थापित की गई। शुरुआत में माता का मंदिर कच्चा था। वर्तमान में मंदिर के पुजारी बासनीवाल कुम्हार और राजोरिया सैनी हैं। बिलाली माता का मंदिर विशाल और आधुनिकता लिए हुए हैं। मंदिर के पास में ही अनेक धर्मशालाएं बनी हैं । जहाँ रुकने ठहरने की समुचित व्यवस्था है। मेले में क्षेत्र सहित आसपास के राज्यों से लाखों श्रद्धालु मेले में पहुंचकर माता के मंदिर में धोक लगाते है। वहीं रांदपुआ शीतला अष्टमी से एक दिन पहले और शीतला अष्टमी के बास्योडा को शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाता है। शीतला माता मंदिर शील डुंगरी लुनियावास चाकसु जयपुर के बाद राजस्थान का दूसरा शीतला माता मंदिर यहीं पर है। लोक मान्यता हैं कि यहां चेचक, चर्म रोग, आँखों सम्बन्धी रोग से पीड़ित व्यक्ति ठीक होते हैं। यहां चैत्र कृष्ण अष्टमी को प्रतिवर्ष मेला लगाता है। लोग यहां जात जुड़ल लेकर आते हैं। शीतला माता दौराता गुर्जरों बासनीवाल कुम्हारों और राजौरीया सैनियों की कुल देवी है। माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाता है, जिसे बस्योड़ा कहा जाता है।