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शिव कथा में उमड़ रहा है भक्तो का सैलाब, पांचवे दिन शिव भजनों पर झूमे शिव भक्त

सांवर मल शर्मा

आसींद । विगत 5 दिवस से राजस्थान के भीलवाड़ा की पावन भूमि पर शनिदेव मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में आयोजित ओघड दानी भोलेनाथ की कल्याणकारी श्री शिव महापुराण पुराण कथा का वाचन परमपूज्या कृष्णप्रिया जी की अमृतमई वाणी में किया जा रहा है जिसमे भारी संख्या में शिव भक्तों का आगमन हो रहा है… साथ ही यूट्यूब चैनल के लाइव प्रसारण से माध्यम से हजारों लोग इस पुण्यमयी कथा से जुड़ रहे है..

कथा के पंचम दिवस पर परमपूज्या कृष्णप्रिया जी ने बताया कि महादेव अत्यंत भोले है.. बहुत थोड़े में ही भक्तों पर रीझ जाते हैं.. इसलिए उन्हें भोलेनाथ के नाम से पुकारा जाता है.. वे अपने पास कुछ भी नहीं रखते सब कुछ भक्तों पर लुटा देते है.. उनका प्रत्येक कार्य संसार के कल्याण के लिए ही होता है.. चाहे वह विष पीना हो या वासुकी नाग को धारण करना.. समुद्र मंथन से जब अमृत निकला तो उसे देवों ने पिया लेकिन जब हालाहल विष निकला तो उसे महादेव ने पिया इसीलिए वह नीलकंठ महादेव है..

आगे कथा में बेलपत्र क़ी अद्भुत महिमा का वर्णन करते हुए देवी जी ने बताया कि महादेव को बेलपत्र अति प्रिय है… किसी के घर में अगर बेलपत्र का वृक्ष लगा हो तो उसे अनेकों कन्यादान अनेकों महादान का फल प्राप्त होता है.. जो व्यक्ति प्रतिदिन बेलपत्र के नीचे गीत दीपक जलाता है उसकी दुर्गति कभी नहीं होती.. जो शिवलिंग पर प्रतिदिन बेलपत्र चढ़ता है उसे पर माता लक्ष्मी की अति प्रसन्न होती हैं.. बेलपत्र की तीन पत्तियां ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों का स्वरूप मानी जाती है.. शिव पर बेलपत्र चढ़ाने की विधि का वर्णन करते हुए पूजा देवी जी ने कहा कि जहां  बेलपत्र का चिकनाहट वाला हिस्सा शिव को अर्पित करना चाहिए.. जिसकी डंडी हमारी ओर व मुख भोलेनाथ क़ी ओर होना चाहिए..  अगर आप धन चाहते हैं तो हल्दी कुमकुम में गंगाजल मिलाकर  बेलपत्र पर श्री  लिखकर उन्हें अर्पित करें और अगर आप नारायण भगवान की भक्ति चाहते हैं तो बेलपत्र पर राम का नाम लिखकर उसे शिवजी पर चढ़ायें..

भगवान शिव पर भूल कर भी केतकी का पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए.. उन्हें कुछ फूल अत्यंत प्रिय है जैसे कनेर, आक का फूल, इत्यादि..वही, विष्णु भक्तों को विष्णु रूप से, राम भक्तों को राम रूप से, शिव भक्तों को शिव रूप से दृष्टिगोचर होता है। इस तरह मूलतः शिव एवं विष्णु एक ही हैं। वही महेश्वर हैं तथा समस्त प्राणियों के हृदय में रहते हैं भगवान भोलेनाथ और नारायण में कोई अंतर नहीं है.. जो कोई इनमें भेदभाव करता है वह अपने सारे पुण्य को नष्ट कर लेता है और पाप का भागी होता है… शास्त्रों में कहा गया है कि अगर शिवमंदिर के बगीचे के फूल अगर नारायण पर चढ़ा दिए जाएं तो आसानी से मुक्ति प्राप्त होती है…जो भोलेनाथ की भक्ति करतें है भोलेनाथ उन्हें भगवान नारायण क़ी दिव्य भक्ति प्रदान करते हैं इसका साक्षात उदाहरण है नरसी जी..

हम मनुष्य हैं हमारे स्वभाव है गलती करना.. जाने अनजाने हमसे बहुत सारी गलतियां हो जाती हैं… सत्य और धर्म सबको पता है कि क्या करना चाहिए क्या नहीं क्या सही है क्या गलत फिर भी हम बहुत सारी गलतियां कर बैठते हैं.. लेकिन अगर हम सच्ची श्रद्धा से भगवान भोलेनाथ पर एक लोटा जल अर्पित करते हैं तो हमारे जाने अनजाने में किए गए सारे पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं और हमारे मन की मालीनता भी दूर होती है..

श्री शिव महापुराण एक पवित्र और महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो भगवान शिव की महिमा और उनके अवतारों का वर्णन करता है।  शिव महापुराण कथा कल्पवृक्ष के समान है जो की मनोकामना को पूरी करती है, और भगवान शिव के विविध रूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का विशद् वर्णन किया गया है।इसमें शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्त्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है।इसमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों और उनके अवतारों और भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए अनेक साधनों का वर्णन किया गया है।उन्होंने बताया कि विषय आदि से जीव बंधा है तथा शिव कृपा से ही वह पाश (बंधन) मुक्त हो सकता है। शिव पुराण में शिव को पंचदेवों में प्रधान अनादि सिद्ध परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है। शिव-महिमा, लीला-कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा-पद्धति, अनेक ज्ञानप्रद आख्यान और शिक्षाप्रद कथाओं का सुन्दर संयोजन है। इसमें भगवान शिव के भव्यतम व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव- जो स्वयंभू हैं, शाश्वत हैं, सर्वोच्च सत्ता है, विश्व चेतना हैं और ब्रह्माण्डीय अस्तित्व के आधार हैं।

इस दौरान कथा वाचक कृष्णाप्रिया जी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि वर्तमान दौर में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो दुखी न हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता है कि हम भगवान का स्मरण करना ही छोड़ दें। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। भगवान का नाम स्मरण करने मात्र से हर एक विषम परिस्थिति को पार किया जा सकता है। इसलिए हम सभी को भगवान के नाम का स्मरण करना चाहिए।

देवी जी ने बताया कि हमें अपने माथे पर तिलक अवश्य धारण करना चाहिए… इस शरीर रूपी गाड़ी का ड्राइवर बुद्धि होती है… अगर यह अच्छे से काम करेगी तो हमारा जीवन रूपी सफर भी बहुत आनंदमय और भक्तिमय रहेगा.. इसीलिए आज्ञा चक्र पर भगवान का तिलक होना आवश्यक होता है ताकि हमें हर समय भगवान का स्मरण होता रहे..

भगवान शिव देव, दानव और मनुष्य सभी प्राणियों के देव हैं, इसीलिए महादेव हैं।भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार के समय पुत्र प्राप्ति के लिए, राम अवतार के समय लंका विजय पाने के लिए भगवान शंकर की उपासना की। भगवान शिव अनादि काल से पूजे जाते हैं.. उनके द्वारा ही ब्रह्मा विष्णु महेश का निर्माण हुआ जो की सृष्टि का निर्माण, संचालन और संहार करतें है..

शिव पुराण में बताया गया है कि जो व्यक्ति बुद्धि भष्ट हो जाने से परस्त्रीगामी हो जाते हैं। उन्हें घोर नरक में जाना पड़ता है जैसा कि चंचला के पति बिन्दुग को नरक भोगन पड़ा था। लेकिन चंचला ने शिव पुराण के श्रवण से पति को पाप से मुक्ति दिलाई थी।
शिव पुराण की कथा से संतानहीन लोगों की गोद भी शिवजी भरते हैं। गंभीर रोगी, भाग्यहीन व्यक्ति को भी शिव पुराण की कथा से लाभ मिलता है। इसलिए भक्ति भाव और मन में श्रद्धा रखकर विश्वास के साथ शिव पुराण की कथा का श्रवण करना चाहिए। मन में अविश्वास होने पर फल की प्राप्ति नहीं होती है।

आगे कथा में रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करते हुए पूजा देवी जी ने बताया कि- भगवान शिव को रुद्राक्ष अति प्रिय है.. रुद्राक्ष का अर्थ है रुद्र का अक्ष यानि भगवान रुद्र की आंखें.. रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओ से हुई है.कठोर तब के बाद जब भगवान शिव ने आंखें खोली तो उनके आंसू धरती पर गिरे जिससे रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई..
रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन करने से हमें भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। रुद्राक्ष की पूजा करने से हमें मानसिक शांति और सुख प्राप्त होता है। रुद्राक्ष की पूजा करने से हमें भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है..मूल वैसे तो रुद्राक्ष 17 प्रकार के पाए जाते हैं परंतु 11 प्रकार के विशेष प्रयोग में आते हैं..समान आकार-प्रकार वाले, चिकने, मजबूत, स्थूल, कण्टकयुक्त (उभरे हुए छोटे-छोटे दानोंवाले) और सुन्दर रुद्राक्ष अभिलषित पदार्थों के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले हैं। जिसे कीड़ों ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमे उभरे हुए दानें न हों, जो व्रणयुक्त हो तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो, इन पाँच प्रकार के रुद्राक्षों को त्याग देना चाहिये। जिस रुद्राक्ष में अपने-आप ही डोरा पिरोने के योग्य छिद्र हो गया हो, वही यहाँ उत्तम माना गया है। जिसमें मनुष्य के प्रयत्नसे छेद किया गया हो, वह मध्यम श्रेणी का होता है। रुद्राक्ष-धारण बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाला है।रुद्राक्षधारी पुरुष अपने खान-पान में मदिरा, मांस, लहसुन, प्याज, सहिजन, लिसोड़ा, आदि को त्याग दें।एक मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् शिव का स्वरूप है। वह भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करता है। जहाँ रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहाँ से लक्ष्मी दूर नहीं जातीं। उस स्थान के सारे उपद्रव नष्ट हो जाते हैं तथा वहाँ रहने वाले, लोगों की सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण होती हैं। दो मुखवाला रुद्राक्ष देवदेवेश्वर कहा गया है। वह सम्पूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है। तीन मुखवाला रुद्राक्ष सदा साक्षात् साधन का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याएं प्रतिष्ठित होती हैं। चार मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् ब्रह्मा का रूप है। वह दर्शन और स्पर्श से शीघ्र ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है। पाँच मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् कालाग्निरुद्ररूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा सम्पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। पंचमुख रुद्राक्ष समस्त पापों को दूर कर देता है। छः मुखोंवाला रुद्राक्ष कार्तिकेय का स्वरूप है। वह मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पापों से मुक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है। ऐसे ही आगे विभिन्न मुखी रुद्राक्ष की विभिन्न विभिन्न महिमा बताई

कथा के दौरान देवी जी ने कहा कि भगवान की समक्ष जाकर केवल सांसारिक वस्तुएं ही ना मांगे अपितु भगवान की प्रेम भक्ति और कृपा मांगे… सदा उन्हें स्मरण करने कावरदान मांगे.. और उनसे कहें कि- हे भगवान मैं पतित हूं, दुराचारी हूं, अल्पज्ञ हूं मुझ में बहुत कमियां है लेकिन आप तो ओघडदानी है.. मेरी पात्रता दिखी बिना ही मेरे अवगुण देखे बिना ही मुझे अपनी निर्मल भक्ति प्रदान करें.. और सच्ची मानिए जिस दिन से भगवान की आप पर कृपा हो जाएगी संसार की सारी वस्तुएं सारे लोग आपके अनुकूल हो जाएंगे..भक्तों को भगवान अपने बालक की तरह समझते हैं..

कथा में अनेक अनेक शिव भजनों का गायन किया गया  इस दौरान श्रद्धालुओं को धार्मिक भजनों पर नृत्य करते हुए भी देखा गया।शिव महापुराण का पंचम दिन, भक्तों ने लिए एक अत्यंत पवित्र और ज्ञानवर्धक अनुभव किया । उन्होंने बताया यह उन्हें भगवान शिव के साथ गहरा संबंध स्थापित करने और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को समृद्ध बनाने का अवसर प्रदान करता है।

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