गांव की रामलीला बनी बच्चों और ग्रामीणों की पसंद
अजय सिंह (चिंटू)
आसलपुर — स्मार्ट हलचल|श्री आदर्श रामलीला मंडल एवं ग्राम जनता आसलपुर के सहयोग से श्री चौक वाले बालाजी प्रांगण में 22 सितंबर से 02 अक्टूबर तक रामलीला का भव्य मंचन होगा।मंडल अध्यक्ष ओमपाल सिंह ने बताया कि प्रथम नवरात्रि (22 सितंबर) को नवनिर्मित रामलीला भवन का उद्घाटन समारोह आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर यज्ञ-हवन, गणेश स्थापना, ग्रह प्रवेश तथा प्रसाद वितरण किया जाएगा। भवन निर्माण में सहयोग करने वाले भामाशाहों का सम्मान भी किया जाएगा।
निर्देशक पवन दाधीच के अनुसार, रामलीला मंचन की सभी तैयारियाँ पूर्ण कर ली गई हैं। कलाकार रोजाना शाम को अपने-अपने पात्रों की रिहर्सल कर रहे हैं। निर्देशक परीक्षित सिंह ने बताया कि 11 दिवसीय इस रामलीला मंचन में सिर्फ स्थानीय कलाकार ही अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे।
विजयदशमी के दिन ग्राम के फील्ड में 41 फीट ऊँचे रावण के पुतले का दहन किया जाएगा, जिसमें हजारों दर्शकों की उपस्थिति होने की संभावना है। अभ्यास कार्यक्रमों में चन्द्रप्रकाश सारस्वत, अंजनी दाधीच, मालूराम पारीक, रामलाल कुमावत, रामावतार सरस्वा, त्रिवीण शर्मा, अनुराग कुमावत, महेश पारीक, चेतन प्रजापति, लोकेश कुमावत, गोकुल प्रजापति, राघव दाधीच, मनीष दाधीच सहित कई कलाकार भाग ले रहे हैं।
गांव के बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग सभी इस आयोजन में अपनी कला एवं अभिनय से योगदान दे रहे हैं। मंडल का कहना है कि इस बार रामलीला में कुछ नए दृश्य और पात्र शामिल किए गए हैं ताकि दर्शकों को नया और ताज़ा अनुभव मिले। गांव के बच्चे उत्साहित होकर कहते हैं कि – “जैसे हम टीवी पर देखते हैं, वैसा ही नज़ारा यहां मंच पर जीवंत देखने को मिलता है। यहां मज़ा भी आता है, हंसी-मज़ाक और कॉमेडी भी होती है। सच कहें तो टीवी से भी ज्यादा अच्छा अनुभव हमें रामलीला में मिलता है।” रामलीला सिर्फ धार्मिक आयोजन भर नहीं, बल्कि पूरे गांव का सांस्कृतिक पर्व है। ढाणी-ढाणी से लेकर आस-पास के गांवों और दूर-दराज़ से बड़ी संख्या में लोग इसे देखने आते हैं। महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग सभी उत्साह से मंचन का आनंद लेते हैं। यहां हर दृश्य रोमांचक होता है—कभी युद्ध का दृश्य दर्शकों को सांसें थामने पर मजबूर कर देता है, तो कभी हास्य-व्यंग्य से भरे प्रसंग तालियों और ठहाकों से गूंज उठते हैं। यही वजह है कि ग्रामीणों के लिए रामलीला सालभर का सबसे बड़ा सांस्कृतिक उत्सव बन चुकी है, जिसमें हर कोई जुड़कर सामूहिकता और परंपरा का अनुभव करता है।


