नीरज मीणा
महुवा।स्मार्ट हलचल/उपखंड मुख्यालय के प्राचीन के किले स्थित श्री कृष्ण गोपाल गौशाला रजिस्टर्ड मे गुरुवार को गौशाला कमेटी द्वारागोपाष्टमी के अवसर पर गौ माताऔ का विधि विधान से पूजा अर्चना कर गौ माता को हरा चारा, पालक, गुड, कैला, हरी सब्जी, खिलाकर गौ माताऔ का आशीर्वाद लिया
गोपाष्टमी के अवसर पर दिनभर महिलाओं का गौशाला में ताता लगा रहा महिलाओं द्वाराद्वारा गौ माताऔ की पूजा अर्चना कर परिक्रमा देकर अपने परिवारों की दीर्घायु की कामना की
इस अवसर पर गौशाला के मंत्री व्यवस्थापक गोपुत्र अवधेश अवस्थी ने सभी गौ भक्तों कोगोपाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि
“गावो विश्वस्य मातरः।”
अर्थ: — गाय समस्त विश्व की माता है।गौ माता सभी जीवों का पोषण करती है, शांति, समृद्धि और पवित्रता का स्रोत है।आज कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी — गोपाष्टमी पर्व है,जो ब्रजभूमि से आरंभ होकर पूरे भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र रूप से मनाया जाता है।
गोपाष्टमी, गायों की रक्षा और सेवा के प्रतीक के रूप में पूजनीय है।
इसी सेवा भाव के कारण भगवान श्रीकृष्ण को ‘गोविंद’ नाम प्राप्त हुआ।
कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक श्रीकृष्ण ने
गायों, ग्वालों और गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था।
इसी घटना की स्मृति में अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है।
गोपुत्रअवधेश अवस्थी ने बताया किशास्त्र कहता है की
> “शाण्डिल्य ऋषिरुवाच —
सर्वलोकहितायेश गोसेवा तव शोभना।
गमनं गोचरे क्रिष्ण शुभमस्तु तव प्रभो॥”
अर्थ: — शाण्डिल्य ऋषि ने कहा — हे प्रभु! सभी लोकों के हित के लिए आपका गौसेवा का यह आरंभ अत्यंत शुभ हो। गोचर (चरागाह) की ओर आपका गमन मंगलमय हो।
इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में प्रथम बार गायों की सेवा व चराई का कार्य आरंभ किया था।
ऋषि शाण्डिल्य ने शुभ मुहूर्त देखकर उन्हें गोसेवा के लिए जाने की अनुमति दी थी, और वही दिन था गोपाष्टमी।
गोपाष्टमी का आध्यात्मिक अर्थ:
हिंदू संस्कृति में गाय मातृत्व का प्रतीक मानी जाती है।
जैसे माता अपने पुत्र को सदा सुख देती है, वैसे ही गौमाता समस्त प्राणियों को शांति, समृद्धि और कल्याण प्रदान करती हैं।
गौमाता हमारे जीवन में धन, धान्य, शुभता और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
शुक्लाष्टमी कार्त्तिकस्य स्मृता गोपाष्टमी बुधैः ।
तद्दिने वासुदेवोऽभूद् गोपः पूर्वं तु वत्सपः ।।
तत्र कुर्याद् गवां पूजां गोग्रासं गोप्रदक्षिणाम् ।
गवानुगमनं कुर्यात् सर्वकामानभीप्सितः ।।
कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी कहा जाता है। पूर्वकाल में इसी दिन भगवान् वासुदेव गोप और वत्स के रक्षक हुये थे। प्रातःकाल के समय गौओं को स्नान कराये। गन्ध-पुष्पादि से उनका पूजन करे और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकार से अलंकृत करके उनके गोपालों (ग्वालों) का पूजन करे, गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करे और थोड़ी दूरतक उनके साथ जाय तो सब अभीष्ट-सिद्धि होती है। इसी गोपाष्टमी को सायंकाल के समय गायें चरकर वापस आवें, उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पञ्चोपचार पूजन करके कुछ भोजन करावे और उनकी चरणरजको मस्तकपर धारण करके ललाट पर लगावे तो उसमे सौभाग्य की वृद्धि होती हैं
इस अवसर पर श्री कृष्ण गोपाल गौशालाकमेटी अध्यक्ष विजय शंकर बोहरा, उपाध्यक्ष ओमप्रकाश अग्रवाल एडवोकेट, मंत्री व्यवस्थापक गौ पुत्रअवधेश अवस्थी, कोषाध्यक्ष डॉक्टर माधव खंडेलवाल, पंडित महेश आचार्य,विनोद जादौन, नेमीचंद खेड़ली वाले, सतीश टुडियाना वाले, कृपांशु अजमेरा , राजकुमार करीरी वाले, सुनील जैन, जीतू गुर्जर, राजीव गुर्जर,, सहित कमेटी के पदाधिकारीगण सहित हजारों महिला पुरुष उपस्थित रहे थे


