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सिलिकोसिस पीड़ितों के 259 मामलों पर उच्च स्तरीय बैठक, समाधान की दिशा में तेज़ी, फिर भी कई मामले लंबित

भीलवाड़ा । राजस्थान में सिलिकोसिस पीड़ितों की समस्याओं को लेकर सरकार की सक्रियता तेज़ हुई है। भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया ब्लॉक में 20 मई को सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान द्वारा आयोजित जनसुनवाई में सामने आए 259 मामलों को लेकर 6 जून को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग एवं विशेष योग्यजन विभाग की उच्च स्तरीय बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में संबंधित विभागों के अधिकारी, अभियान प्रतिनिधि एवं सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे।

जनसुनवाई के दौरान पीड़ितों ने मुआवज़ा में कटौती, स्थानीय जांच सुविधा की अनुपलब्धता, तकनीकी परेशानियों, पेंशन तथा पालनहार योजना से वंचित रहने जैसी गंभीर समस्याएं सामने रखीं। इसके पश्चात 23 मई को एडीएम भीलवाड़ा एवं एसडीएम-बीडीओ बिजोलिया के साथ बैठक एवं 27 मई को विस्तृत सुझाव-पत्र सौंपा गया।

बैठक में लिए गए प्रमुख निर्णय:

स्थानीय जांच सुविधा सुलभ: अब हर मंगलवार गुलाबपुरा से डॉक्टर बिजोलिया सीएचसी पर आकर पीड़ितों की जांच करेंगे। साथ ही सीएचसी की आईडी पोर्टल से जोड़ दी गई है।

मेडिकल बोर्ड प्रक्रिया में सुधार: रेडियोलॉजिस्ट की आईडी अपडेट कर दी गई है और लंबित मामलों पर कार्यवाही शुरू हो चुकी है।

प्रमाण पत्र प्रक्रिया में तेजी: एडीएम स्तर से डीटीओ को निर्देश जारी कर दिए गए हैं।

मृत्यु सहायता मामलों की समीक्षा: खान विभाग को आवश्यक सूचनाएं भेजी जा रही हैं।

पेंशन और पालनहार योजनाएं: संबंधित विभागों को सूची भेजी गई है, और केस-दर-केस जांच जारी है।

रीइम्बर्समेंट में देरी: पोर्टल अपडेट लंबित है, निदेशक ने शीघ्र समाधान का आश्वासन दिया।

प्रमाणन में असंगति: डीएसएपी समीक्षा के बावजूद बुलावा नहीं आने पर गैर-प्रमाणित मानना अनुचित है — नीति में स्पष्टता की मांग।

भ्रष्टाचार के आरोपों से हड़कंप

जनसुनवाई में डूंगरसिंह पुत्र कूपसिंह पर पीड़ितों से लाखों रुपए वसूलने और जल्दी मुआवज़ा दिलवाने के नाम पर दलाली के आरोप लगे हैं। साथ ही, भीलवाड़ा अस्पताल के डॉक्टर सुरेंद्र मीना और रेडियोग्राफर घनश्याम पर भी जांच के नाम पर रिश्वत मांगने की शिकायतें सामने आई हैं। अभियान से जुड़े प्रतिनिधियों ने इन मामलों की स्वतंत्र जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि ऐसे मामले नीति की विश्वसनीयता को गहरा आघात पहुंचाते हैं।

जमीनी स्तर की चुनौतियाँ अभी भी कायम

राज्य के कई जिलों में अब तक सिलिकोसिस की जांच और प्रमाणन की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। ब्यावर जैसे इलाकों में फरवरी 2024 के बाद कोई प्रमाण पत्र जारी नहीं हुआ। कई जिलों में पोर्टल बंद होने की वजह से पीड़ित बिना प्रमाणन और पहचान के मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं।

सिलिकोसिस नीति 2019 के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग

राज्य सरकार से यह स्पष्ट मांग की गई है कि “राजस्थान सिलिकोसिस नीति 2019” के तहत रोकथाम के प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाए। इसके अंतर्गत कार्यस्थलों पर धूल नियंत्रण प्रणाली, नियमित स्वास्थ्य जांच, पीपीई किट का वितरण, श्रमिकों को प्रशिक्षण तथा नियोक्ताओं की जवाबदेही तय करना शामिल है। जो खनन मालिक या ठेकेदार इन प्रावधानों का पालन नहीं कर रहे, उनके खिलाफ जुर्माना, लाइसेंस रद्द करने या आपराधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।

असंगठित इकाइयों का पंजीकरण अनिवार्य हो

बैठक में यह भी कहा गया कि जो छोटी खदानें, इकाइयाँ एवं कार्यशालाएं बिना पंजीकरण के संचालित हो रही हैं, उन्हें शीघ्र चिन्हित कर पंजीकृत किया जाए ताकि निगरानी की जा सके और श्रमिकों के शोषण पर रोक लगे।

बैठक में सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान राजस्थान के भंवर मेघवंशी के नेतृत्व में कमल कुमार, मुकेश निर्वासित, राजेंद्र शर्मा, पारस बंजारा, राजेश, रिज़वान अहमद, कोमल वर्मा, नीरज, अनिर्वाण और सकील खान जैसे प्रतिनिधि भी मौजूद रहे। सभी ने एक स्वर में सिलिकोसिस पीड़ितों की पीड़ा को समझने और उनके लिए ठोस व स्थायी समाधान लागू करने पर बल दिया।

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